रविवार, 4 अक्टूबर 2020

चुप क्यों रहते हो

चुप क्यों रहते हो
कुछ भी नहीं कहते हो 
कैसे सहते हो 
श्मशान में रहते हो या समाज में रहते हो 

सवाल रह-रहकर यही आता है 
इन दरिंदों को क्यों सहा जाता है 
शायद यह हमें हमारी बहन-बेटियों से ज्यादा प्यारे हैं
इसलिए साल दर साल यह बढ़ते जा रहे हैं 

यह दरिंदे कहां से आते हैं 
इनके हौसले क्यों इतने बढ़ जाते हैं 
खुलेआम यह अपना परचम लहराते हैं 
हैवानियत शर्मा जाए पर यह कहां शर्माते हैं 

प्रशासन का तो यह मखौल उड़ाते हैं 
कौन है जो इन को बचाते हैं 
वह कोख़ भी शर्मसार हो जाती है 
जो इनको दुनिया में लाती है 

क्या यह तादाद में हमसे ज्यादा है 
या शक्तिशाली समाज से ज्यादा है 
अगर नहीं तो हम क्यों इनसे ख़ौफ खाते हैं 
क्यों नहीं इनका कोई इंतज़ाम सजाते हैं 

रोश तो सभी जताते हैं 
अखबार, टीवी, सड़क सब जगह गुस्सा दिखाते हैं 
कानून भी आए दिन बनाते हैं 
फिर कहां हम हार जाते हैं 

जब तक इनको डराया नहीं जाएगा 
इनका हैवान पनपता जाएगा 
दरिंदों के खिलाफ जिस दिन 
समाज दरिंदगी के वक्त खड़ा हो जाएगा 
उस दिन यह सिलसिला थम जाएगा 

उसका शोर किसी के कानों में तो आया होगा 
बस,खेत, मकान या मैदान 
कोई तो चीखें ज़रूर सुन पाया होगा 

क्या शक्ल इस दुनिया को हिंदुस्तान दिखाएगा 
खुद को कैसे राम, कृष्ण, भगत, गांधी, सुभाष और आजाद का भारत कहलाएगा 

दुर्गा काली का खप्पर जब बाहर आएगा 
तभी नारी सुरक्षित समाज बन पाएगा 
शायद वह सीख हमने कुछ अलग तरह से मानी है 
बुरा न देखो, सुनो और कहो 
जो गांधी की जुबानी है 

इसलिए हर बार बस चुप्पी हमने ठानी है 
अरे क्या कहा था बापू ने और क्या हमने उनकी मानी है
बापू ने भी अब सोचा होगा 
ऐसा आजाद भारत तो ख्वाब में भी ना देखा होगा 

आज अपने ही अत्याचारी हैं
बहन बेटी लाचार बेचारी है 

कब भारत का जनमानस जागेगा 
जब इनकी हवस का प्रेत हर घर में नाचेगा
कुछ अब करना होगा 
इनकी हवस की बलि कब तक चढ़ना होगा 
इनकी हवस की बलि कब तक चढ़ना होगा...?

बुधवार, 9 सितंबर 2020

किट्टू

मैं रोज़ सुबह जल्दी उठने का आदी हूं। सुबह जल्दी उठता हूं, घर की छत पर जाता हूं और वहां टहलता हूं। कभी-कभी पड़ोस की छतों पर भी जाता हूं, बहुत सी लड़कियां तो सिर्फ मेरी वजह से ही छत पर सुबह जल्दी आती हैं, उनको मेरे साथ खेलना अच्छा लगता है और मुझे भी उनके साथ खेलना अच्छा लगता है। 
लेकिन सुबह मुझे सोनिया की बाहों से निकलने में बड़ी मुश्किल होती है, सारी रात मुझे बाजुओं में कस कर सोती है। ख़ैर कुछ दिन पहले मैं रोज की तरह उठा, छत पर गया और टहल रहा था कि मैंने उसे देखा...मेरी आंखें मानो मेरे चेहरे से निकलने को थीं... वाह!...क्या गज़ब की लगती थी वह।
छज्जे की मुलगेढी पर जब चलती थी तो लगता था कि रैंप वॉक कर रही है। मेरी आंखें और मुंह खुला का खुला रह गया । क्या कमाल की बिल्ली थी वह...अगर यह मेरी जिंदगी में आ जाए, तो मैं सारी कायनात इसके लिए छोड़ दूं। चौंक क्यों गए? 
मैं एक बिल्ला हूं तो बिल्ली पर ही तो मरूंगा ना। 
काश उस वक्त कुछ और मांगता तो शायद वह भी मिलता।
वो मेरे पास आई और हमारे बीच बहुत अच्छी-अच्छी मियाऊं-मियाउं यानी बातें हुईं।  मैं उसे चुपचाप अपने घर में नीचे ले गया, उसे पलंग के नीचे छुपा दिया।  सोनिया ने मुझे आवाज दी, "आ जाओ किट्टू, चलो दूध पी लो", मैंने सोनिया के जाने के बाद उसे बाहर बुलाया और अपना दूध पिलाया। 
सोनिया के बॉय फ्रेंड को बिल्लियां पसंद नहीं हैं पर वो सोनिया की वजह से मुझे कुछ नहीं कहता लेकिन एक और बिल्ली घर में देखते ही वह पागल हो गया। उसने मीनू पर गेंद से हमला किया। मेरी बेज्जती तो मैं सह लेता लेकिन मेरी प्रेमिका मीनू की बेज्जती मुझसे बर्दाश्त नहीं हुई। मैं तीन दिन तक घर नहीं गया।

मीनू की तरह ही उसके साथ सड़क पर रहा। कचरे के डिब्बे से खाना निकाल कर खाया, मीनू ने मुझे खाना ढूंढ़ना सिखाया। मैं जिंदगी में कभी खाली ज़मीन पर नहीं सोया, ठंडा नहीं गुनगुना दूध पिया है मैंने हमेशा ,
मैंने मीनू के लिए सब कुछ छोड़ दिया था लेकिन मीनू मुझे ही धोखा दे रही थी। तीसरे दिन मैंने उसे किसी दूसरे बिल्ले के साथ देखा...कैसे देखा मैं बता नहीं सकता... मुझे यकीन नहीं हुआ अपनी आंखों पर...और कल जब मैं घर आया तो मैंने देखा कि राजू घर में एक कुत्ता ले आया है। सोनिया मुझे भूल गई और अब उस कुत्ते के साथ खेल रही थी। अब उस घर में मेरे लिए कोई जगह नहीं है, मैं पालतू से आवारा बन गया हूं। अब मैं सड़कों पर जीना सीख रहा हूं, ख़तरनाक कुत्तों से बचना, लोगों के दरवाजों पर जाकर उन्हें अट्रैक्ट करना सीख रहा हूं। कुछ अच्छे लोग कभी-कभी मुझे दूध भी पिला देते हैं। काश अगर मैं बोल पाता तो उनसे कहता कि प्लीज़ मुझे पाल लो घर में,
घर में रख लो, मैं बड़ा प्यारा बिल्ला हूं, घर में रहना चाहता हूं। आपका मन लगा कर रखूंगा । प्लीज़... मुझे घर दे दो... कोई तो इस सिर पर छत दे दो...प्लीज...

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

मृणाली

वो शक्ल से मासूम-सी, भोली-सी दिखने वाली साफ़ दिल की लड़की जिसने जिंदगी का लगभग हर दौर देखा था, लेकिन उसकी हल्की-सी भी झलक उसके चेहरे पर नहीं दिखती थी। लंबा-सा गोरा चेहरा, पतली-सी पीपनी जैसी मधुर आवाज़ और बनावटी मर्दानापन। 
अक्कड़ मिजाज़ी ही मेरे लिए उसकी पहचान थी।

मेरी दोस्ती किसी से जल्दी नहीं होती, लेकिन उससे पहली नज़र टकराते ही दोस्ती हो गई। मेरे दोस्तों ने मेरी खिंचाई शुरू कर दी, कि कॉलेज के फर्स्ट ईयर में ही थर्ड ईयर की सीनियर को फंसा लिया और फंसाया भी तो उसे जिसके आस-पास लड़के फटकने से भी डरते हैं। मैंने उन्हें समझाया, 
"अबे कमीनों, सिर्फ अच्छी दोस्त है मेरी",
तो उन्होंने उल्टा मुझे बॉलीवुड फिल्मों का एगज़ामप्ल देते हुए समझाया कि बेटे, "एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं होते"। आधा कचरा तो इन बॉलीवुड फिल्मों ने फैलाया है, पहले तो गुस्सा आया कि किस वाहियात-सी फिल्म का वाहियात-सा डायलॉग है? लेकिन फिर पता चला कि सल्लू भाई की फिल्म है, सोचा जाने दो, जब भाई को डायलॉग मारने से नहीं छोड़ा तो तुम क्या चीज हो प्रयाग पांडे।  गोली मारो ! हाथी चले बाजार, कुत्ते भौंके हज़ार। 
हमारी दोस्ती भी बड़ी ही अजीब तरह से हुई, मैडम ने हमारे भोले- भाले दोस्त सतीश इलाहबादी के सबके सामने चांटा मार दिया। अब सतीश इलाहबादी जो हैं वो तोतले हैं, बेचारे कहना कुछ चाहते हैं और मुख-मंडल से निकलता कुछ और ही है। अब बेचारे ने मैडम को बोला, "गुड मॉर्निंग" लेकिन मुंह से निकला कुछ, मैडम ने समझा कुछ और धर दिया चांटा गाल पर बेचारे के...बस फिर क्या था, मियां इलाहबादी हमारे पास आए रोनी-सी सूरत लेकर। अब हमारे दोस्त के कोई चांटा मार दे, ये हमसे बर्दाश्त नहीं।  अब पिता जी हमारे दरोगा... आधे से ज़्यादा सीनियर तो हमारे मोहल्ले के थे, जिनमें से तीन-चार स्कूल में हमारे जूनियर थे। 
लेकर गए कैंटीन इलाहबादी को और कहा, 
"बताओ कौन है?" इलाहाबादी ने उंगली का इशारा किया। हमारा गुस्से से तिलमिलाता चेहरा देखकर कॉलेज में इलाके के सीनियर भी खड़े हो गए। उनके सामने जैसे ही हम खड़े हुए, उन्होंने तो कोई भाव ही नहीं दिया। 
हमने कहा, "सुनिए"... 
क्या एटीट्यूड था उनका, हमारी आवाज का तो मानो दम ही निकल गया। फिर तो हमारे मुंह से सिर्फ इतना निकला 

"गुड मॉर्निंग मैडम! हम प्रयाग पांडे, फ्रॉम फर्स्ट ईयर। उधर से सीनियर ने बोला था कि मैडम को विश करके आओ, विश कर दिया अब चलते हैं"। 

फिर क्या...? फिर तो दोस्ती हो गई, पता चला कि मैडम ने अब तक 200 से ऊपर लड़कों का दिल तोड़ा है और इस कतार में अब हमारा नंबर है।
वह बिल्कुल मेरी तरह थी... कोई नियम-कानून नहीं, बस जब जो करने का मन है वही करना है। अपनी कमाई से कॉलेज में लॉ (वक़ालत) कर रही थी, आठवीं के बाद घर से रुपए लेना बंद कर दिया था... क्योंकि पापा पोस्ट ऑफिस में नौकरी करते थे। दो छोटे-भाई बहन, अब भाई की भी  उम्र हो गई थी स्कूल जाने की, तो मृणाली को स्कूल छोड़ना पड़ा...बस उसकी बगावत वहीं से शुरु हो गई थी।
मैंने आज तक उसके जैसी लड़की नहीं देखी... घर का सारा काम करती थी, छोटे भाई-बहन को पढ़ाती थी, अकेले ही दुकान से घर तक गैस का भरा सिलेंडर लेकर आती थी। मतलब आज कल लड़के भी जितना काम नहीं करते, वो लड़की हो कर चुटकियों में कर देती थी।
मेरे अलावा सारे कॉलेज से अकड़ कर बात करती थी। बस मेरे आगे ही शांत हो जाती थी और मैं...? मैं तो अब मैं से हम पर आ गया था। अब किसी से लड़ाई झगड़ा करने की फुर्सत ही नहीं थी, सारा वक्त उसके साथ निकल जाता था। मैं उससे कहता, "इतना मत अकड़ा कर, कोई किसी दिन तेरी फाइल निपटा देगा।" 
तो वह बोलती, "अरे परागी लाल, अपने दम पर जीती हूं। किसी के बाप का डर नहीं मुझे, किसी माई के लाल की हिम्मत नहीं कि हाथ लगा दे"। सच भी था, किसी की हिम्मत नहीं थी कि उसे हाथ लगा देता। 
उसका मानना था कि रिश्तो में मिलावट नहीं होनी चाहिए, इसलिए कभी अपने दिल की बात नहीं कहती थी। सिर्फ दोस्ती तक ही मामला रखती थी, लेकिन उस पागल को कौन समझाता कि हमारे रिश्ते में मिलावट तो हो चुकी थी। मैं तो फिर भी नहीं कहता, क्योंकि हमारा भी एक सपना था कि हम लड़की को नहीं, बल्कि लड़की हमारे पास आकर हमारा कॉलर पकड़े और बोले, "सुन बे तुझसे प्यार करती हूं, जा... जो करना है कर ले"। 
एक दिन बड़ी उदासी से मेरे पास आई, चेहरा उतरा हुआ था। बड़ी से बड़ी बात पर भी उदास नहीं होती थी। मैं पूछने ही वाला था कि, 
"क्या हुआ?"
उसने मेरा कॉलर पकड़ा, जोर से...थोड़ा मुझे झुकाया, थोड़ा खुद ऊपर उठी, उसकी आंखों में आंसू थे... बोली, "सुन, तुझसे बहुत प्यार करती हूं मैं और हमेशा करती रहुंगी। तुझे जो करना है कर लेना, बस मुझे भूलना मत कभी...थोड़ा सा और ऊपर उठकर मुझे होठों पर किस किया और बिन कुछ कहे उल्टे पांव लौट गई। उस दिन के बाद कॉलेज नहीं आई वो, वापस जाते वक्त उसके कदम बहुत भारी लग रहे थे। मैं उसके घर भी गया पर किसी ने बात नहीं की, दरवाज़े से ही लौटा दिया। बहुत पता करने की कोशिश की लेकिन...फिर कॉलेज में एक दिन उसकी सहेली ने बताया कि उसके पिताजी ने आत्महत्या की धमकी दी थी, क्योंकि वह शादी नहीं करना चाहती थी। उस दिन के बाद वो कहां गई, उसके घर वालों को भी नहीं पता। 
लेकिन मैं उसे आज तक ढूंढ़ रहा हूं...

मंगलवार, 30 जून 2020

हाथ उठाओ

सुनो तुम छिप कर रहना
अपना चेहरा न किसी को दिखाना 
अगर सामने है आना
तो हथियार साथ ज़रूर लाना

इस भ्रम में न रहना की 
ये मर्दों का समाज है
हर गली-मोहल्ले, चौराहे पर
सिर्फ नामर्दों की जमात है

मिलेगा कोई हज़ार में
एक मर्द
गीदडों के बीच शेर सा फंसा हुआ
सिर्फ उस एक के भरोसे भी बाहर न आना

अपना स्वाभिमान अगर है बचाना
तो खुद ऐसे हैवानों के खिलाफ
काली या दुर्गा बन कर बाहर आना
रक्त पात से तुम कतई न घबराना

वीर, शौर्य, साहस सब तुम से जन्म पाते हैं
इन नाली के गंदे कीड़ों को मसलने में देर न लगाना
जिस वक्त तुम्हारे हाथों इनका संघार होगा 
वही वक्त इनकी नस्ल का काल होगा

इसके लिए सीखनी होगी कला आत्म रक्षा की
सिर्फ वार से सुरक्षा की
क्योंकि गुहार इनको समझ नहीं आती 
समस्या ये है कि समाज को भी इन पर शर्म नहीं आती

शर्म आए भी कैसे 
दरवाज़े सारे उसके बंद है
नपुंसक हम हमाम में आधे से ज़्यादा नंगे हैं
अपने ज़हन के अंधेरे कमरों में सबने दामन चीरे हैं

कब तक ख़ुद की आज़ादी का मोल चुकाओगी
कब तक सब से गुहार लगाओगी 
तुम कब खुद के लिए अपना हाथ उठाओगी
तुम कब खुद के लिए अपना हाथ उठाओगी

शनिवार, 27 जून 2020

तकलीफ़

कहां से लाते हो हिम्मत जुर्म करने की
किसी बेगुनाह के साथ गुनाह करने की

ख़्याल क्या एक बार भी नहीं आता होगा
घर पर इनके भी तो माता, बहन, बेटी का साया होगा

ज़रूर उस मां ने आज सूनी कोख़ की गुहार की होगी
जब औलाद की ऐसी हैवानियत देखी होगी

अब दिन का जागना रात का सोना भी 
कितना खौफ़नाक होगा

अपने ही जिस्म से दरिंदों की हवस की बास का एहसास
हर पल ज़हन और जिस्म पर पड़े निशान

सवाल तो ख़ुदा से होगा उसका
किस गुनाह की सज़ा मिली उसको

औरत होना गुनाह हो गया उसका
क्यो सीता का तिनका उसको जन्म से ही न मिला

ये कैसा ईश्वर का अन्याय 
एक ओर सीता की छाया में भी इतना तेज

त्रिलोक विजयी छुए तो जल जाए
पर यहां जिसका मन वो तार तार कर जाए

उस दरिंदे ने भी कभी शायद 
दुर्गा के आगे सिर झुकाया होगा

पर वहां माता ने भी अपना फरसा नहीं चलाया होगा
सज़ा काफ़ी नहीं है दरिंदों की

इसलिए रोज़ ये सिर उठाते हैं
काश कोई ऐसा वक्त आए जहां ये कभी सिर ना उठाएं 

फिर कोई फूलन, निर्भया या दामिनी
हवस की शिकार न होने पाए

अब जब भी ऐसा कोई सामने आए
तो सिर्फ दुर्गा आए
तो सिर्फ दुर्गा आए...

सोमवार, 22 जून 2020

मौका परस्त काले नाग

पुरुषार्थ से भरा पुरुष देखना चाहते हैं
चरित्रवान, धैर्यवान, रघुकुल राम देखना चाहते हैं

हम धर्म वीर देखना चाहते हैं
हम तुम में सारी वीरता देखना चाहते हैं

तुम उठो बढ़ो और कहो 
बस यही हम तुम से चाहते हैं

महान उद्देश्य है हमारा
कुर्बानी हम तुम से चाहते हैं

आओ चलो साथ हमारे 
वीर तुम्हें बनाना चाहते हैं

नहीं हम में सवाल न दागो
सवाल तो हम दागने जाते हैं

तुम आखें मूंदे साथ दो
बस यही हम तुमसे चाहते हैं

हम ही सत्य की कसौटी हैं
ये समझना चाहते हैं

उठो तुम वीर बनो 
हम तुम को दागना चाहते हैं

हमारा नपुंसक हुआ पुरुषार्थ 
अब हम तुम्हारे भीतर चाहते हैं

तुम फूल सा नाज़ुक न समझो
फूल है तुम्हारे सीने में

हमारी मोटी चमड़ी न बदल सकी
तुम्हारी नाज़ुक खाल वो बदलेगी

हम तो यहीं है बैठे
और सदैव ही पांव जमाएंगे

हम तो काले नाग हैं
पुरुषार्थ की दुहाई से
तुम को डसते जाएंगे

आओ हमारे पास तुम 
तुमको जीवन का मूल्य हम सिखाएंगे...

गुरुवार, 18 जून 2020

एक कलाकार के नाम

कौन सही कौन ग़लत ये तो बस वो ही जाने
मेरा ख़ुदा तो बस किरदार का ईमान माने

बहस तुम्हारे जाने से भी छिड़ गई
मेरी वैचारिक क्षमता फिर एक साथी से भिड़ गई

उसने कहा तुम में कुछ अंश राजनीति का भी होना था
मैंने कहा मेरे दोस्त तुमको राजनीति में होना था

कलाकार से सिर्फ कला की मांग होती है
क्योंकि वही उसकी पहचान होती है

कला में राजनीति सिर्फ मक्कार करते हैं
क्योंकि वो कलाकार की ताक़त से डरते हैं

हर बाज़ी जीत जाएं ऐसा भी नहीं होता है 
कभी मंज़िल तो कभी रास्ता भी खोता है

ऐसे ज़िन्दगी से मुंह मोड़
कोई कब सोता है

शायद जब  सपनों का महल डेहता नज़र आए 
तभी ऐसा होता है ...

बुधवार, 17 जून 2020

मुलाक़ात

एक रोज़ उसने जब तुम्हारे बारे में बात की
उसके माध्यम से मैंने तुमसे मुलाक़ात की

तभी सोचा था कि एक रोज़ 
हकीक़त में मुलाक़ात होगी

उस रोज़ हम दोनों की 
जिज्ञासाओं और खोजों की भी बात होगी

सिर्फ तुम उस फेहरिस्त में शामिल थे
ऐसा भी नहीं था

एक मकबूल भी था 
तो एक इशान भी था

ख़ैर रह जाते है कई ख़्वाब अधूरे
कुछ आधे कुछ पूरे

एक रोज़ मिलेंगे वहां 
जहां सब को मिलना है 

ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी बाद भी चलना है
ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी बाद भी चलना है

शुक्रवार, 29 मई 2020

कमी तुम में नहीं है

कमी तुम में नहीं है 
कमी उन में है जो तुम में कमी ढूंढते हैं
क्योंकि वो सिर्फ तुम्हारे में ही नहीं
सभी में कमी ढूंढते हैं

पूरा तो कोई भी नहीं है
बेदाग तो चांद भी नहीं है
तुम कभी उनको चांद दिखा कर देखना
और कभी दिखा देना ताज महल भी

मेरे शहर में है 
दुनिया का एक नायाब अजूबा
उनका सवाल उल्टे तुम से ही होगा
उस दाग से भरे पिंड में क्या सुंदर दिखा
कैसी ये सफेद पत्थर की इमारत तुमने दिखाई
इस मकबरे में क्या खूबसूरती तुम को नज़र आई
ज़ालिम था वो जिसने इसे बनवाया
इसे बनाने वालों के हाथों को था उसने कटवाया

वो कहेंगे तुमको पहचान नहीं है
कभी चलो उनके मकान पर
वहां बनाई है उन्होंने छप्पर की एक झोंपड़ी
तुम एक बार को चकरा जाओगे
सीधे शाहजहां से सवालों की झड़ी लगाओगे

 ठहरो ख़ुद को यूं न उलझाओ
 कुछ पल दिल हटा कर दिमाग़ लगाओ
 कल जो कहा था उसने क्या वो आज निभाया
 अपनी बात पर क्या वो टिक पाया
 
तुमसे भी कभी किसी की शिकायत उसने लगाई थी
कल उन्हीं से उसने पहचान बढ़ाई थी
जो हर बात पर शिकायत लगाएगा
वह अपने साथ तुम्हें भी फंसाएगा

उनसे ख़ुद को बचाओ
ख़ुद पर भरोसा दिखाओ
उसे शिकायत है वो रहेगी 
तुम बस अपनी पहचान बनाओ
ख़ुद को आगे बढ़ाओ
ख़ुद को आगे बढ़ाओ

सोमवार, 18 मई 2020

एक दूजे के बिना पड़ता नहीं खाएगा

मुझे लगता है नागरिक और सरकार
मियां बीवी हैं
कभी मियां रूठें तो बीवी मनाएं
और बीवी रूठे, तो मियां

एक दूजे के बिना पड़ता नहीं खाएगा
अर्थव्यवस्था तो क्या
कुछ भी नहीं चल पाएगा

फिर भी हर सुबह होम मिनिस्ट्री के बाहर मियां जी आएंगे
आटा, दाल, चावल, सड़क और शर्ट के दाग़ की शिकायत लगाएंगे
फिर मिनिस्ट्री से कभी जवाब, कभी फ़रमान तो कभी कानून आएगा
मियांजी कभी खुश तो कभी मायूस नज़र आयेंगे

बेचारे मियां जी तो हमेशा बेबस नज़र आते हैं
घर में कभी चीखते- चिल्लाते, कभी धरना
तो कभी उपद्रव करते नज़र आते हैं,

लेकिन बाहर हमेशा ये बताते हैं
हम तो लाचार हैं 
हमने तो बस इनको चुना है
हमारी ज़िन्दगी का ताना बाना तो इन्हीं ने बुना है,

अब सरकार को भी तो गाड़ी चलानी है
बस फ़र्क इतना है कि इन्हें पांच साल
और हमें ज़िन्दगी भर दौड़ानी है

शनिवार, 16 मई 2020

कसौटी

कुछ तो है जो अखरता है
पता नहीं हमें क्या खटकता है
कहें कैसे ये मालूम नहीं
कौन सुनेगा ये भी जानें नहीं
डर लगता है कि अगर 
आपको मेरा प्रश्न करना भाया नहीं
तो क्या होगा... 

बचपन में सुना था कि पत्थर मारे वो
जिसने पाप ना किया हो
चौक चौराहे पर कुछ चीटियां मैंने भी मारी हैं
कुछ मिठाई के डिब्बों का मैं भी दोषी हूं
तो सवाल मैं कैसे करूं ये सोचता हूं
ख़ुद को कटघरे में रखा है
अब क्या होगा...

मैं सम्पन्न नहीं हूं
ये कहने से गुनाह कम तो नहीं होता
चाहें चींटी मारो या हाथी
दोष कम तो नहीं होता
हां माना गरीब की मजबूती होती है
कुछ चीजें हैं जो व्यवस्था में ज़रूरी होती हैं
और मैं क्या सब इसी व्यापार को निभाते हैं
कुछ हैं एक आध जो कभी कभी
राजधानी की सड़कों पर आते हैं
फिर क्या होता है...

ये तो सब को पता होता है
दोष हर किसी का होता है
ईमानदारी, सत्य और निष्ठा 
ये कसौटी तो सब चाहते हैं
लेकिन ख़ुद के अलावा 
सब कसौटी पर तोले जाते हैं
फिर क्या होता है...

फिर सड़कों पर जनता आती है
कभी शांत तो कभी उग्र हो जाती है
हमारी तो सब करतूतें माफ़ हैं
भीड़ में किस किस की शक्लें साफ हैं
अब कौन पहचानेगा
बसों में आग, सड़कों पर मार काट
मांगे पूरी होंगी जब होंगी तब होंगी
इसी बीच कितनी मांगे उजड़ चुकी होंगी
किसी ने बताया था 
कोई देश है जहां हड़तालें शांति से होती हैं,
हमारी बाजुओं पर काला कपड़ा होता है और
सरकारें दहल जाती हैं
ख्याल काल्पनिक हो तब भी अच्छा है
अगर ये सच्चा हो तब कितना अच्छा है
अब सोचा मैंने...

मैं आम नागरिक
दोष सरकारों को दूं, हुक्मरानों को दूं या ख़ुद को 
अब हर कोई तो अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाता
और फिर
व्यवहार शिष्टाचार भी बीच में है आता
नहीं तो नागरिक ही नागरिक को समझाता
लेकिन अधिकतर तो 
मैं यही हूं चाहता 
क्यों नहीं सब काम सरकार के जिम्मे आता
और मैं...मैं तो आम नागरिक हूं
कभी सरकारें कहती हैं मैं तो सरकार हूं
दोनों को मिलना होगा, तभी तरक्की का साथ चलना होगा
वरना कुछ नहीं बस रोज़ का धरना होगा....

मंगलवार, 12 मई 2020

मेरा साथी

एक रोज़ सफ़र में एक साथी मिला
बिन कुछ कहे मीलों तक चला

राह में एक मोड़ पर मैंने पूंछा
मेरा सफ़र लंबा है कहां तक आओगी

धूप भी तेज़ है
कब तक ख़ुद को तपाओगी

मैं तो पैदल हूं 
और मंज़िल का भी पता नहीं
रास्ते संकरे हैं
कंटक भरे

तुम कमल सी कोमल हो
शिशु सी नाज़ुक

कब तक ख़ुद को जलाओगी
इन तेज़ गर्म हवाओं में बीमार हो जाओगी

देखो मुसाफ़िर और भी हैं राहों में
जो अपनी राहें तुम्हारे लिए बिछादेंगे

तुम नज़र घुमाओगी और ये 
इन राहों पर ही जाम लगा देंगे

पहले वो थोड़ा झल्लाई
उसके तपते लाल चेहरे से घुर्राई

मुझे लगा की अब चिल्लाई
पर वो होले से मुसकाई
और बोली...
पगलू हो तुम कौन तुम्हे समझाए
साथ तुम्हारा अच्छा है ये मुसाफ़िर मुझको भाए

क्यों हर बार तुम यही राग सुनाते हो
कुछ दूर चलते ही फिर शुरू हो जाते हो

खुशियों का साथ तुम को भाता नहीं है क्या
साथी से बात कैसे करते है, ये भी तुमको आता नहीं है हां

अबकी कुछ बोला तो सच में गुस्सा हो जाऊंगी
लेकिन खुश ना होना चिपक हूं मैं छोड़ कर नहीं जाऊंगी

चलो अब तुमको इन रास्तों पर ऐसे ही सताऊंगी
रास्ता लंबा हुआ तो क्या मुझसे पीछा छुड़ाओगे

कहां तक तुम जाओगे 
कब तक पीछा छुड़ाओगे

मैं तो साथ ही आऊंगी
मैं तो साथ ही आऊंगी...

रविवार, 10 मई 2020

Maa

पहली दफा सुना होगा जब 
इस संसार के शोर को
ज़रूर सहम गया होंगा मैं
तुम्हारी कोख में,
ज़रूर तुमने हाथ फिरा कर कहा होगा
डर मत मेरे बहादुर बच्चे
तू सुरक्षित है हर ख़तरे से मेरी कोख में,

लेकिन जब इस दुनिया में आया
डर से रोता हुआ
तुमने अपने सीने से लगाया
और कहा चुप होजा मेरे बच्चे क्यों रोता है
मैं हूं,
तुझे बलशाली बनाऊंगी
तेरे साए में बड़ा हुआ
तू ने बोलना सिखाया,
उंगली पकड़ कर चलना सिखाया,
उस उंगली को जिस दिन तुम ने छुड़ाया
याद है बहुत रोया था मैं स्कूल के पहले दिन
डर से क्या क्या सोचा था मैंने
तुमने शाम को गले से लगाया
हर मोड़ पर लड़ना सिखाया

मेरी हर जीत की खुशी को 
तुमने मुझ से ज़्यादा मनाया
जब पहली बार मैं बोला, चला, और दौड़ा
जब कलेजे पर पत्थर रख कर 
तुमने मुझे स्कूल में छोड़ा
मेरी हर परीक्षा में हमेशा 
तुम पास और फेल होती हो मेरे साथ
चाहे स्कूल, कॉलेज हो या मेरा जीवन

जीवन तुमने दिया मुझे
लेकिन कभी अपना नहीं कहा उसे
शिक्षा, शक्ति और जीवन के मूल्य
सभी तो तुम्हारे हैं
आसान तो कतई नहीं रहा होगा मुझे संभालना
और अपने संस्कारों से मुझे पोषित करना
हर पांच कदम की दूरी पर मुझे गोदी लेना
और फिर मीलों का सफ़र पैदल तय करना
मैं तो आज भी इस संसार से भय खाता हूं
सुरक्षित स्वयं को सिर्फ तुम्हारी गोदी में पाता हूं
जब तुम मेरे सिर पर उतने ही प्यार से
हाथ फिरा कर मुझे सुलाती हो
जब पहली दफा डरा था 
और तुमने मुझे बहादुर बच्चा कहा था
नींद तो तुम्हारी गोद में ही आती है
जो सारी चिंताओं से पल भर में मुक्ति दिलाती है।

मंगलवार, 5 मई 2020

अंतर लॉ

जब चारों ओर अंधेरा हो
बस एक छोटे से दिए का सवेरा हो
हवा भी आएगी 
हिम्मत भी घबराएगी
तू उस दिए की लॉ को बचाना
तेरी लॉ ही तुझ को मंज़िल तक ले जाएगी
आसान है अपनी लॉ को बुझाना
और अंधकार में मिल जाना
निश्चित ही अंधकार चहूं ओर है
अभी भोर का सवेरा भी दूर है

लेकिन उस लॉ को छूना 
अनंत अंधकार के लिए भी सम्भव नहीं
इसलिए छलने का प्रयत्न करता है अंधकार
तेरी जीत की संभावनाएं हैं अपार
बस अंधकार का कर तिरस्कार 
अपनी अंतर लॉ से कर प्रहार
अपनी अंतर लॉ से कर प्रहार 
    

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

कुछ ऐसी व्यवस्था बनाते हैं

 चलो कुछ ऐसी व्यवस्था बनाते हैं
हर रोज़ धरा दिवस मनाते हैं, 

चलो कुछ ऐसी व्यवस्था बनाते हैं
प्रदूषण कम और वृक्ष ज़्यादा लगाते हैं,

चलो कुछ ऐसी व्यवस्था बनाते हैं
कंक्रीट के जंगलों में 
धरती माता का हरा आंचल बिखराते हैं,

चलो कुछ ऐसी व्यवस्था बनाते हैं
चलो कुछ ऐसी व्यवस्था बनाते हैं...

सावधान!

यदि मैं कहूं के सारे संसार का ज्ञान तुम्हारा है
और सभी प्रश्नों के उत्तर तुम को मिलजाएंगे 
आनन्द और धन भी अपार होगा 
शायद तुम्हारी बुद्धि से यही विकास व्यवहार होगा

लेकिन इसकी कीमत होगी तुम्हारी प्राण शक्ति
अब जी सकते हो केवल कुछ घंटे या दिन
कहो क्या भरोगे हामी ?

ना कहेंगे आप, मैं, सभी बुद्धिमान और धनवान
परंतु भविष्य यही है हमारे क्रिया कलापों का
आज घर है छिपने, जीने, सांस लेने को
सोचो अगर कल ये भी ना रहे तो कहां जाओगे 
शायद अंतरिक्ष में ही कहीं बस्ती बसाओगे 
पर क्या सभी को वहां लेजा पाओगे ?
वो तो अवश्य यहीं रह जाएगा 
जो तुम्हारी सेवा के काम ना आएगा

कुछ सीमित संसाधन ही आवश्यक हैं जीने के लिए
ये प्रकृति अपनी भाषा में समझा रही है
अब भी समझलो धरा क्या कहना चाह रही है

याचक थी दोनों हाथ जोड़े जो अब तक 
वो प्रकृति अब प्रहार की नीति अपना रही है
सावधान! 
क्योंकि अब मनुष्यों कि बारी आ रही है
विकल्प और भी हो सकते हैं सिवाय धरा के सौदे के
अभी समय है
सावधान!
याचक अब प्रहार की नीति अपना रही है।
हमारी खोजें, चाही और अनचाही रचनाएं
हमारे ही आड़े आ रहीं हैं
हो सकता है कि ये मात्र एक चेतावनी हो
सावधान!
क्या पता भविष्य में कोई संकट इससे भी भारी हो
सावधान...

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

विज़न


रोज़ रात को कोई मेरे सपने में आकर मेरी चादर खींचता है, जैसे मुझे नींद से जगाने की कोशिश कर रहा हो। लेकिन जैसे ही मैं जागता हूं, चारों तरफ फिर से वही अंधेरा छा जाता है जो मेरी जिंदगी में छाया हुआ है।

"ऐसा होना कबसे शुरू हुआ आप के साथ?"

लगभग 10 दिन हो गए। पहली, दूसरी रात को तो मुझे लगा कि सच में कोई है... मैंने डर के बिस्तर से लात हवा में चलाई, लेकिन लात किसी के नहीं लगी। मुझे लगा वो जो कोई भी है पीछे हट गया होगा, मैं झट से मेरे सिरहाने रखी छड़ी की ओर झपटा और पूरे कमरे में चलाने लगा। मैं आवाज लगा रहा था - कौन है ? कौन है ? लेकिन कोई नहीं था, ना कदमों की आहट और ना हीं किसी की आवाज़। थोड़ी देर बाद थक कर, मैं अपने बिस्तर पर चौकन्ना हो कर बैठ गया कि शायद किसी के चलने की आहट हो, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मुझे बैठे-बैठे सुबह हो गई और सुबह तक भी कोई आहट नहीं हुई।
सुबह दूध वाला आया, तो मैंने सोचा की कोई होगा तो शायद दूध वाले को दिख जाए। दरवाज़े से किचन एक सीध में है, इसलिए मैंने पहले दरवाज़ा खोला और किचन की तरफ बढ़ कर दूध का बर्तन ढूंढने का नाटक करने लगा। थोड़ी देर बाद मैंने दूध वाले से कहा, "भैया मैं बर्तन ढूंढ नहीं पा रहा हूं, रखकर भूल गया हूं, आज किचन में ही बर्तन ढूंढ कर दूध रख दो।
दूध वाला किचन में आया और गैस के पास बर्तन देखकर बोला "अरे बाबू, दूध का बर्तन तो यहीं रखा है, गैस के बगल
में"।
"ओह..अच्छा, अरे पता नहीं चला ऐसा कैसे हुआ..मुझे मिल ही नहीं रहा था, कोई नहीं धन्यवाद दद्दा"।
"बाबा, सब ठीक है? कुछ परेशान लग रहे हो आज"।
मैंने कहा "नहीं तो! सब ठीक है", दूध वाला चला गया और मैंने कमरे की अंदर से कुंडी लगा दी। उस दिन में निश्चिंत था कि घर में कोई नहीं है।  मेरे ट्यूशन के बच्चे आए और चले गए। मैं बांसुरी और हरमोनिका (माउथ ऑर्गन) सिखाता हूं। मैंने शाम का खाना बनाया, खाया और सो गया। अगली रात को फिर वही एहसास हुआ, इस बार मैं कल से ज़्यादा डर गया था...लेकिन हिम्मत करके कमरे का एक-एक कोना टटोला, पर कोई नहीं था। मैं सोचने लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि जब घर अंदर से बंद हो तब रात में कोई घर में घुसा चला आए और अगर दिन में भी आया हो तो इतने सब्र से मेरे सोने का इंतजार करें, जब मैं सो जाऊं तो सिर्फ जगाने आए और फिर से गायब हो जाए। ऐसा कैसे हो सकता है? या तो सच में कोई दोस्त बहुत ही मेहनत से मज़ाक कर रहा है या मेरे घर में कोई भूत है।
लेकिन जब ऐसा रोज़ होने लगा, तब मुझे ये यकीन हो गया कि इसके पीछे कोई दोस्त तो नहीं है और वैसे भी ज़्यादा दोस्त नहीं है मेरे।

"देखिए आप परेशान मत होइए, हम आपकी समस्या का समाधान ढूंढ लेंगे"।

"प्लीज़ डॉक्टर, मेरी जिंदगी में अब कोई नहीं है जिसको मेरी इतनी चिंता हो... और संध्या मेरी बहुत फिक्र करती है, मैं उसे परेशान नहीं देख सकता। उसे लगता है कि मैं पागल हो रहा हूं। उसे लगता है यह जो कुछ भी है, सिर्फ मेरे दिमाग की कोरी कल्पना है। संध्या सोचती है कि मेरी लाइफ में इतने ब्रेकडाउंस की वजह से ऐसा हो रहा है... देखिए मैं मानता हूं कि उस एक्सीडेंट में सिर पर चोट लगने की वजह से मेरी आंखें चली गई, लेकिन यह जो कुछ भी हो रहा है यह उस वजह से नहीं है"।
"देखो अमित, तुम अपने दिमाग पर ज़्यादा लोड मत लो, हम किस लिए हैं, संध्या मेरी अच्छी दोस्त है और यकीन करो, हम इसका इलाज निकाल लेंगे"।
उसने घंटी बजाई और कहा, "इनके साथ बाहर वेटिंग रूम में संध्या जी हैं, उनको बुलाओ"।
डॉक्टर संध्या को एक तरफ लेकर गई और उसने कहा "देखो संध्या...यह अपने सपने को सच मानना चाहते हैं और इनके बिलीव को हमें स्ट्रांग नहीं होने देना है"।
"लेकिन प्रिया, ये घर पर अकेले रहते हैं और मुझे डर है कि कुछ हो गया तो जब तक कुछ पता चलेगा तब तक कहीं देर नहीं हो जाए"। डॉ० प्रिया ने कहा, तुम घबराओ मत और ये दवाइयां अमित को खाने के लिए दो।

जब हम घर आए तो संध्या मेरे घर रुकने की ज़िद करने लगी, मैंने कहा "देखो संध्या मुझे इस बात से खुशी है कि तुम को मेरी फिक्र है लेकिन मैं अपना ख़्याल अकेले रख सकता हूं"I संध्या ने मुझ पर आवाज़ से चढ़ बनाते हुए कहा "नहीं तुम नहीं रख सकते", मैंने कहा "रख सकता हूं और अब तुम अपने घर जाओ",
"ठीक है रख सकते हो...मैं मानती हूं, लेकिन मुझे तुम्हारा ख़्याल रखना है"।
"एक दोस्त होने के नाते तुम जितना ख़्याल रख रही हो, उस नाते यह बहुत है... मेरे साथ हमेशा कोई नहीं रहता, मुझे अकेले रहने की आदत है, तो प्लीज..."
उसने अपनी उंगली मेरे होठों पर रख दी और बोली "देखो अमित तुम मुझसे जीत नहीं सकते, मैं एक लॉयर हूं और यह बहस तुमसे सारी रात कर सकती हूं। तो इस देश के एक अच्छे, समझदार और जिम्मेदार नागरिक होने के नाते चुपचाप मैं जहां बिठा रही हूं बैठ जाओ और अब यह लो", उसने मेरे हाथ में एक गोली दी, मैंने पूछा "यह क्या है?"
"नहीं कोई सवाल नहीं, चुपचाप आप इसे एक गिलास पानी से लेंगे"।
मैंने कहा "I object my lord"
उसने कहा "कोई होशियारी नहीं, सर। मुझे पता है आप बहुत स्मार्ट है, लेकिन यह होशियारी यहां नहीं चलेगी। यहां जज भी हम हैं और वकील भी ।
"तो मेरे पास बहस करने के लिए कोई मौका भी नहीं है?" "जी बिल्कुल नहीं"।
"यह तो तुगलकी फरमान हुआ"
"हां, कुछ ऐसा ही समझ लो"
"और अगर मैं ना मानूं तो?"
"सॉरी माई फ्रेंड, यू हैव नो चॉइस"
"यार देखो, मुझे दवाई नहीं खानी। मुझे बस उस सपने का मतलब समझना है... क्यों एक ही सपना हर रात मुझे आता है और कुछ नहीं करता सिर्फ मेरे ऊपर से चादर हटाता है?"
"तो तुम इतना डरते क्यों हो फिर, देखो अमित...सुनो, तुम्हारे सब पास विज़न (Vision) नहीं है, लेकिन तुम सपने देख रहे हो...क्यों ?
"वही तो मैं समझाना चाहता हूं तुमको, विज़न नहीं है इन आंखों के पास... लेकिन कहीं और विज़न बन रहा है और यार मैं जन्मजात अंधा नहीं हूं, मैंने पहले दुनिया देखी है। मैं आवाज़ के आधार पर तो कल्पना कर ही सकता हूं। I can imagine things, I can imagine you" मैं आवेग में बोल गया।


"Oh seriously! can you imagine me?"
तो बताओ मेरी आवाज़ के आधार पर, मैं क्या लगती हूं...
I mean कैसी लगती हूं?"
"तुम बिल्कुल तुम्हारी आवाज़ की तरह हो... मुझे लगता है तुम थोड़ी सी सॉलिड होगी, थोड़ी सी बॉडीबिल्डर टाइपस, जिस के डोले शोले होंगे, जो थोड़ी सी मोटी होगी और थोड़ी सी भारी भी"।
उसने चिढ़ते हुए कहा "अच्छा",
मैंने कहा "हां, अब तुम्हारी आवाज़ इतनी भारी और मर्दानी है, उस पर तुम इतना रोब जमाती हो, तो उस हिसाब से मुझे लगता है ऐसा ही होगा। वह चिढ़ते हुए बोली "just shut up", अब अभी के अभी तुमको ये खानी पड़ेगी।  "Now take it and sleep"
मैंने कहा,
"नहीं यार सुनो मैं तो मज़ाक कर रहा था, मैं अपनी बात चेंज करना चाहता हूं"...लेकिन अब वह कहां मानने वाली थी।
 "ना ! कोई सॉरी नहीं, बस यह गोली अंदर और तुम बिस्तर पर"।
मैंने गोली खा ली, मैंने कहा "देखा इसलिए बोला था कि मत रुको मेरे घर, अब सोओगी कहां?"
"Oh Shut up, तुम्हारे यहां डबल बेड है...तुम इधर, मैं उधर और बीच में तकिए...Now Sleep"
मैं लेट गया, उसने तकिये बीच में लगाए और वह भी लेट गई। मुझे काफी देर तक ऐसा लगता रहा कि वह मुझे देख रही है। थोड़ी देर बाद, मैंने गर्दन उसकी तरफ घुमाई तो उसने हल्की सी हरकत की, उसे ज़रूर लगा होगा कि मैं उसे देख रहा हूं और अब वह मुझसे शायद नज़र हटा चुकी थी ।

रात को तकरीबन दो बजे, नीचे सीढ़ियों के दरवाज़े पर आवाज़ हुई। मैं उठा.. चलता हुआ दरवाजे पर पहुंचा... दरवाजा खोला, तो देखा वहां कोई नहीं था। अचानक मुझे याद आया कि संध्या कमरे में अकेली है, मैं दौड़ता हुआ ऊपर आया और मैंने देखा कि कोई एक साया संध्या की चादर खींच रहा था।  मैंने तुरंत मेरी छड़ी को ढूंढना शुरू कर दिया और मुझे याद आया कि छड़ी मेरे सिरहाने रखी होती है । मैं छड़ी की ओर बढ़ा और मैंने पकड़ ली। छड़ी पकड़ते ही मुझे एहसास हुआ कि मैं देख नहीं सकता और  चारों तरफ अंधेरा छाने लगा। मैं उस साए को मारने के लिए छड़ी घुमाने लगा और बोल रहा था कि "कौन... कौन है?" संध्या भड़भड़ा कर उठी और उसने उठते ही मेरी छड़ी पकड़ ली और बोली "कोई नहीं है, नहीं है कोई... नहीं बस... शांत...सब सपना था... कोई नहीं है"।
"मैंने कहा नहीं वहीं था, इस बार तुम्हारी चादर खींच रहा था"। संध्या ने कहा "मेरे पास चादर नहीं है अमित, शांत हो जाओ"।
वह लगातार मेरे सिर पर हाथ फिरा रही थी, उसने मेरा सिर अपनी छाती से लगा रखा था। थोड़ी देर बाद उसने मुझे पास में रखे जग से गिलास में पानी डाल कर दिया, "लो, पानी पी लो"। पानी पीने के थोड़ी देर बाद उसने पूछा "अब कैसा महसूस हो रहा है...बैटर ?"
मैंने कहा "हां !" थोड़ी देर बाद मैंने उससे कहा "सुनो मुझे लगता है तुम ठीक थी... शायद यह मुझे कोई दिमागी परेशानी ही है, कल चलकर डॉक्टर को दिखाऊंगा, अब दवाई भी खाऊंगा। मैंने दवाई दांतो के बीच फंसा कर पानी पी लिया था, बाद में थूक दी थी...सॉरी !"
संध्या ने कोई हार्ड रिएक्शन नहीं दिया और बोली,"कोई बात नहीं"। मैंने फिर थोड़ी देर बाद पूछा "तुम क्यों मेरी इतनी चिंता करती हो?"
उसने कहा "क्योंकि तुम मेरे दोस्त हो इसलिए और एक दोस्त हमेशा दूसरे दोस्त की मदद के लिए तैयार रहता है। तुमको याद है, हम पहली बार कब मिले थे ?" मैंने कहा "हां! पार्क में जब तुम्हारा कुत्ता मुझ पर भोंकते हुए झपट पड़ा था और तुम बार-बार सॉरी- सॉरी बोल रहीं थीं...फिर तुमने पूछा कि अब आप क्या करते हैं तो मैंने बताया, Now I follow my another dream...मैं बच्चों को बांसुरी और हर्मोनिका सिखाता हूं"।
संध्या बोली "हां, फिर तुम ने बताया कि तुम वहां पॉकेट 'C' में रहते हो और मेरे पड़ोसी भाटिया अंकल का पोता भी तुम से सीखता है।"
मैंने कहा "हां"
वो बोली "लेकिन मैं तुमको उससे भी पहले से जानती हूं।" मैंने पूछा, "मतलब?"
उसने कहा "मतलब यह कि मैं राजीव की लॉयर थी, उस दिन जब तुम अपने वकील को केस वापस लेने के लिए बोलने आए थे, तब मैं तुम्हारे लॉयर से बात कर रही थी। तुम आए और तुम ने कहा, वकील साहब केस वापस ले लीजिए मुझे राजीव से कोई शिकायत नहीं है, उसने जो किया गलती से किया जानबूझकर नहीं। तुम्हारे वकील ने तुमको बहुत कन्वेंस करने की कोशिश की, कि तुम्हारा केस बहुत स्ट्रॉन्ग है। लेकिन तुम डिसाइड करके आए थे, तुमने कहा मुझे उससे कोई शिकायत नहीं है और जब शिकायत नहीं है तो उसे सजा किस बात के लिए दिलवाऊं।
उस दिन मैंने एक ऐसा इंसान देखा, जो मैंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा था। मैं आज तक सोचती हूं कि कोई किसी इतना बुरा करने वाले के साथ ऐसा कैसे कर सकता है । जबकि उसकी गलती थी, वो ड्रिंक करके ड्राइविंग कर रहा था, तो उसको सजा मिलनी चाहिए थी।
मैंने कहा "उसको जितनी सज़ा मिलनी थी मिल गई और मुझे सच में उससे कोई शिकायत नहीं थी, इसलिए मैंने केस वापस ले लिया। दूसरा मौका सबको मिलना चाहिए, उसे सजा दिलवाकर मेरी आंखें वापस नहीं आ सकती। केस वापस लेने के बाद वो मेरे घर आया था, रो रहा था। उसे सच में अपनी गलती का एहसास था और पश्चाताप करने वाले को तो मौका मिलना ही चाहिए ना । वैसे भी संजना के जाने के बाद, मैं जिंदगी को अलग तरह से देखने लगा हूं"।

"तुमने कभी अपनी पास्ट लाइफ के बारे में डिस्कस नहीं किया" संध्या ने जानने के लिए पूछा,
"क्या करोगी जानकर, वह सब इतना इंटरेस्टिंग नहीं है"। उसने जोर देते हुए कहा, "लेकिन फिर भी दोस्त होने के नाते, हमें एक दूसरे के बारे में पता होना चाहिए, बस इसीलिए"।
मैं समझ गया था कि वह संध्या के बारे में जानना चाहती है और वह मानेगी नहीं, धीरे-धीरे कुरेदती रहेगी। तो मैंने सीधे पॉइंट से ही कहानी शुरू की।
"संजना मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती थी, मैं थोड़ा सा पॉपुलर था और कॉलेज में लड़कियां मुझे पसंद करती थी।
मेरे और योगी के बीच हमेशा खींच-तान चलती रहती थी, इसकी दो वजह थीं- पहली, कि जिस किसी भी लड़की को वह पसंद करता था, वह या तो मुझे पसंद करती थी या मेरी short-term गर्लफ्रेंड रह चुकी होती थी। दूसरी वजह थी बॉक्सिंग, बॉक्सिंग में हमेशा वो मेरे ऑपोजिट होता था और हर मैच हारता था। हां मैं बॉक्सर था, स्टेट लेवल तक खेला था मैंने । हां तो मैं कह रहा था "कॉलेज में संजना का पहला दिन था। मैं, योगी और चेतन हम तीनों की नज़र उस पर पड़ गई। चेतन तो अपने आप पीछे हट गया, कि चल भाई अमित तेरे लिए। चेतन मेरे लिए कुछ भी कर सकता था। योगी और मेरे बीच शर्त लगी और तय हुआ कि जो भी शर्त हारेगा, वह कभी संजना के सामने नहीं फटकेगा। अब शर्त यह थी कि चेतन ने हम दोनों को एक- एक केला दिया, जो हमें अवंतिका मैम को खिलाना था और जो पहले केला खिलाएगा वो जीतेगा। हर कॉलेज में कोई ना कोई एक ऐसी फैकल्टी होती है जिसके लिए स्टाफ से लेकर स्टूडेंट सब का दिल धड़कता है, आसपास गिटार बजने लगते हैं, पत्ते झड़ने लगते हैं, हमारे कॉलेज में थीं अवंतिका मैम। सच में... मैं हूं ना फिल्म की सुष्मिता सेन लगती थीं। हां, तो अब हम दोनों में दौड़ लगी...योगी शॉर्टकट लेकर admin department में अवंतिका मैम के पास पहुंच गया और सीधे केला उनके सामने करते हुए बोला "मैम आपके लिए"।
हां! उसकी बोलने के कला में कुछ गड़बड़ थी। मैम भड़क गई और उसको डायरेक्टर ऑफिस ले जाने लगीं। मैंने योगी को डांट खाते हुए देखा, तो तुरंत गेंदे का फूल बाहर लगे गमले से तोड़ा, एक कागज में मिट्टी डालकर पुड़िया बनाई और मैम को जाकर गुड मॉर्निंग विश किया,
 "हेलो मैम गुड मॉर्निंग,
 हैप्पी ट्यूसडे"
  मैम ने मुझे देखा और बोली,"ओ! हेलो अमित कैसे हो, आज बड़े खुश लग रहे हो क्या बात है।
  मैंने कहा "जी मैम, वह आज ही मौसी- मौसा जी सीधे वैष्णो देवी से आए हैं और माता का प्रसाद मैं सबसे पहले आपके लिए लाया हूं। मैंने गेंदे का फूल मैम के हाथ में दिया, कागज में जो गमले की मिट्टी डाली थी उससे उनका टीका किया और केले को दो भागों में मैम के हाथ में दे दिया।  मैंने कमरे के बाहर ही केले को स्केल से काट लिया था। Oh! how sweet of you  बच्चा, मैम उम्र में भी ज़्यादा नहीं थीं, मुश्किल से 25-26 की होंगी, लेकिन लड़के हवा में ज़्यादा ना उड़ें इसलिए उनको बच्चा-बच्चा बुलाती थीं।  थोड़ी देर बात-चीत के बाद उनकी नज़र योगी पर पड़ी, जो मुझे देख कर जल रहा था, वो फिर गुस्से से भर कर बोली "चलो हटो, मुझे आज योगी को डायरेक्टर सर के पास ले जाना है...इसके कुछ ज्यादा पर निकल आए हैं"। मैंने कहा "जी मैम, सच में इसके बहुत ज़्यादा पर निकल आए हैं। अब देखिए! यह प्रसाद छीन कर, मुझसे पहले आपको खिलाने आ रहा था। बताइए ऐसे भी कोई करता है। मुझे यकीन है कि जरूर कुछ बदतमीज़ी की होगी इसने"।
 "अमित मुझे पता है, तुम इसको बचाने की कोशिश कर रहे हो"
 "अरे सॉरी मैम... मैं इसको बचा नहीं रहा, यह आपके और मेरे बीच में आ रहा था, मैं क्यों बचाऊंगा इसको।
 मैम मेरी तरफ देख कर अपनी मुस्कुराहट को रोकते हुए बोलीं, तुम सच में बहुत स्मार्ट हो", मैंने स्माइल किया।
मैम योगी से बोलीं, "चलो भागो यहां से और बच्चे कुछ सलीका, कुछ तमीज़ सीखो बात करने की, अमित को देखो। योगी ऐसे भागा जैसे गोली, मैम मेरी तरफ आई, मेरा कान पकड़ा और बोली " मुझे सब पता है...तुम सच में स्मार्ट हो, बचा लिया उसको...चलो अब भागो यहां से ।
उसके बाद मेरे और संजना के बीच में कोई कभी नहीं आया। मैंने अपना बी०ए० पूरा किया और 6 महीने में नेशनल खेलने की तैयारी कर रहा था। हम दोनों का प्लान फिक्स था। वह मेरे साथ लिव-इन में रह रही थी और उसका कॉलेज पूरा होने में सिर्फ 3 महीने बचे थे, उसके बाद हम शादी करने वाले थे। मेरा अपने दोस्तों के साथ किराए पर मीडिया इक्विपमेंट्स देने का बिजनेस था। सब सेट था। उस दिन रात को, मैं और संजना खाना खा कर वॉक पर निकले थे। सड़क पूरी खाली थी, साइड में ऑटो पार्किंग में खड़े थे। सामने एक कार तेज़ रफ़्तार से आ रही थी, उसका बैलेंस खो चुका था।  मैंने कार को हमारी तरफ़ आते देखा और संजना को एक तरफ धकेल दिया। कार ने मुझे साइड से टक्कर मारी और मैं सीधे ऑटो से टकरा गया। होश आया... तो मैं हॉस्पिटल के बिस्तर पर था। मुझे दोस्तों और संजना की आवाज़ सुनाई दे रही थी बस, मैंने बताया कि मैं कुछ देख नहीं पा रहा हूं। चारों तरफ सिर्फ अंधेरा और शोर सुनाई दे रहा था। कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैं चींख रहा था, कुछ हाथों ने मुझे कंधों से पकड़ लिया, कुछ ने मेरा सिर पकड़ा, कुछ ने मेरे पैर पकड़े और मुझे अचानक से नींद आ गई। फिर बाद में जब होश आया तब कान में संजना की आवाज आई, उसने कहा "घबराओ नहीं"। उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ रखा था। मैंने कहा, "मैं कुछ भी नहीं देख पा रहा हूं संजू, इससे तो अच्छा मैं मर जाता"। वह फूट-फूट कर रो पड़ी और बोली "चिंता मत करो अमित... मैं हूं तुम्हारे साथ हमेशा"। जब हॉस्पिटल से छूटा, तो मेरे हाथों में एक छड़ी आ गई। मेरे बिजनेस पार्टनर राजेश ने मुझे एक चश्मा लगा दिया, लेकिन मुझे ये चश्मा बिल्कुल पसंद नहीं था क्योंकि उस चश्मे का मकसद मैं जानता था। बहुत छोटा था, तभी मां को खो बैठा था। जिंदगी को जीना... ज़िन्दगी से लड़ना... सब पापा ने सिखाया। 6 महीने हुए, जब वह भी छोड़ कर चले गए और अब यह आंखें छोड़ कर चली गईं। इतना सब कम था...धीरे-धीरे मुझे वह सब भी छोड़ कर चले गए, जिनको मैं प्यार करता था। जब छड़ी के सहारे चलता था, तो शुरू-शुरू में एक-एक कदम आगे बढ़ना भी मुश्किल लगता था। ऐसा लगता था कि पता नहीं कब कौन सी चीज टकरा जाए, शायद कोई नुकीली चीज़ मेरे लग जाएगी। सीढ़ियों पर जाता था तो ऐसा लगता था कि पता नहीं कब गिर जाऊंगा, कब सीढ़ियां खत्म हो जाएंगी। ज़मीन पर चलते-चलते अगर हल्का सा झटका भी लगता था तो डर से भर जाता था, पता नहीं कब पैरों के नीचे से ज़मीन सरक जाए और मैं हजारों फीट नीचे गिर कर मर जाऊं।  कई बार ऐसा लगाता था कि काश! यह कोई ऐसा टास्क होता, जिसमें दो-तीन दिन, 1 हफ्ते या महीने भर देख नहीं सकते। तब कम से कम एक उम्मीद रहती...एक होप रहती कि कुछ वक्त बाद देख पाऊंगा। लेकिन यहां कोई होप नहीं है... मैं कभी नहीं देख सकता । जब हॉस्पिटल से आया, तो दुनिया इतनी तेज़ी से बदली कि जिसका कभी अंदाजा भी नहीं था। तीसरे दिन ही मौसी- मौसा जी बरेली वापस चले गए। जाने से पहले उन्होंने समझाया, "देखो बेटा अब ज़्यादा शोक ना मनाना.... 'होत वही जो राम रचि राखा', कल सुबह हम और तुम्हारे मौसा जा रहे हैं। लेकिन चिंता ना करना, सब खबर लेते रहेंगे तुम्हारी और कभी जरूरत पड़े तो बता देना हाज़िर हो जाएंगे। जो लोग एक-एक महीना पूरे परिवार के साथ रहकर जाते थे, वो एक हफ्ता भी नहीं रुके। बस इसलिए, क्योंकि तब ऐसे बहुत से काम थे जो मैं नहीं कर पाता था । लेकिन तब संजना ने बहुत कोशिश की मेरा साथ देने की। संजना और दोस्त ही मेरी फैमिली थे... वह मुझे बाहर ले जाते थे, रास्ता याद कराते थे, मुझे पार्क में घूमते थे, मेरे साथ वक्त बिताते थे। संजना ने मुझे बहुत सपोर्ट किया शुरू में, मेरा हर छोटा-बड़ा काम वह अपनी फर्स्ट प्रायोरिटी पर करती थी। लेकिन धीरे-धीरे चीज़ें बदलने लगीं...मुझे भी एहसास होने लगा कि मैं एक बोझ बनता जा रहा हूं...ढ़ाई साल पुराना रिश्ता एक महीने भी नहीं चला।  एक रात मुझे पेशाब लगा, मैंने उसे उठाया "संजू- संजू", वह गहरी नींद में थी। मैंने अपनी छड़ी टटोली, चलता हुआ बाथरूम में गया... पेशाब करके आया और सो गया।  सुबह जब आंख खुली तो वह मेरी छाती को ज़ोर-ज़ोर से पीट-पीटकर रो रही थी। मैं घबरा गया, बहुत दहशत भर गई थी मेरे अंदर... कि क्या हुआ?  वह इतना रो क्यों रही है ? मैं बार-बार उससे पूछ रहा था कि "क्या हुआ बेबी? संजू क्या हुआ?" मैं उसके आंसू भी नहीं पोंछ सकता था। उसका रोना मुझसे सहन नहीं हो रहा था। उसने बताया कि मैं बाथरूम की जगह किचन में पेशाब कर आया हूं। उस दिन मैं सच में दुखी था। जो कुछ भी हुआ उसकी वजह से नहीं, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं उसके आंसू भी नहीं पहुंच सकता था। वह काफ़ी देर तक रोती रही, मैं उसे चुप कराने की कोशिश करता रहा। तब मुझे एहसास हुआ कि यह मेरी दुनिया है...  जो बदल गई है, अब मुझे सब अकेले ही करना है।

शाम को मैंने उससे कहा, "सुनो! मुझे लगता है कि अब तुमको आगे बढ़ जाना चाहिए, मेरे साथ तुम्हारा कोई भविष्य नहीं है।  उसे लगा जो कुछ सुबह हुआ, उस वजह से मैं यह कह रहा हूं। उसने कहा, "तुमको मैंने जो सुबह कहा उसका इतना बुरा लगा, तो मैं सॉरी बोलती हूं"।
मैंने समझाया "हमारे बीच अब सब चीजें बदल गई हैं...मेरी और तुम्हारी दुनिया का रंग बदल गया है।
सुनो... मैं हर परिस्थिति के लिए तैयार हूं। हमने बड़े ही सम्मान से एक दूसरे को अलविदा कह दिया। उस वक्त मुझे जो भी छोड़ कर गया, उसने वादा किया कि वह जरूर आएगा। लेकिन आज तक कोई एक बार भी मिलने नहीं आया। जो दोस्त चले गए, वह हमेशा के लिए चले गए। लेकिन जो नहीं गए वह किसी भी सूरत-ए-हाल में नहीं गए। योगी, चेतन और राजेश, यह कभी मुझे छोड़कर नहीं गए। राजेश पिछले महीने तक बिजनेस के प्रॉफिट में मेरा हिस्सा भेजता रहा।  लेकिन फिर मैंने उसे मना कर दिया कि बिजनेस में अब मैं पार्टिसिपेट नहीं कर रहा हूं, तो अब मेरा कोई हिस्सा नहीं है। मैं अंधा हूं संध्या...लाचार नहीं। मैं एक बॉक्सर हूं... मैं कभी हार नहीं मानूंगा।

संध्या ने कहा "और तुम कभी हारोगे भी नहीं, मुझे भरोसा है"।
"कॉफी पियोगे?"
सुबह हो गई थी... चिड़ियों के चहचाहने की आवाज़ आ रही थी, दरवाजे पर दूध वाले भैया भी आ गए थे। कॉफी पीने के बाद उसने याद दिलाया कि 10:00 बजे डॉक्टर के पास जाना है।  संध्या कई बार अपने हाथ से खाना बना कर लाती थी मेरे लिए। आज ब्रेकफास्ट उसने ही बनाया था और सच में ब्रेकफास्ट बहुत यम्मी था। ब्रेकफास्ट खाते हुए मुझे याद आया, "ओ माय गॉड!  तुम मुझे पहले से जानती थीं, इसलिए मुझसे म्यूज़िक सीखने आई। है ना, संध्या।
"क्यों, तुमको ऐसा क्यों लगा?" मैंने कहा, "नहीं, बस ऐसे ही"। वह हंसते हुए बोली, "अरे नहीं पागल, मैं सच में सीखना चाहती थी और तुमने जितना फास्ट मेरे पड़ोसी के लड़के को सिखाया था, मैं उससे इंप्रेसड थी बस इसलिए और फिर तुम इतने अच्छे हो कि तुम से दोस्ती हो गई।
अब चलो, वरना लेट हो जाओगे।
रास्ते में मुझे एहसास हुआ कि कोई डॉक्टर की बिल्डिंग की लिफ्ट में बंदूक के साथ जा रहा है और वह डॉक्टर को गोली मारेगा। मैं फिर से घबरा गया, मुझे यह सच में हकीक़त लग रहा था। मैं पसीने से लथपथ था, मेरे दिल की धड़कन भी बहुत बढ़ गई थी। मैंने संध्या से कहा, "गाड़ी साइड में लगाओ"...संध्या मेरी हालत देख कर घबरा गई। मैंने कहा, "डॉ० प्रिया को कॉल करो प्लीज...कॉल करो तुरंत... मुझे बात करनी है।
संध्या ने कहा "पर क्या हुआ?  हम चल तो रहे हैं"।
मैंने कहा, "प्लीज... प्लीज संध्या,  कॉल करो उसे"।
 संध्या ने कॉल किया, डॉक्टर ने जैसे ही कॉल रिसीव किया मैंने संध्या से फोन ले लिया, मैंने कहा "डॉक्टर, हेलो... सुनिए अपने केबिन को अंदर से लॉक कर लीजिए प्लीज... मैं संध्या का फ्रेंड अमित बोल कर रहा हूं...आपके ऑफिस में एक आदमी बंदूक लेकर आप को मारने आ रहा है"।
 डॉक्टर फोन पर कोई रिएक्शन देती, उससे पहले ही उसके ऑफिस में दो गोलियों की आवाज आई... शायद उसके हाथ से फोन छूट गया था... मुझे फोन पर बहुत सारा शोर सुनाई दे रहा था। मैंने तुरंत संध्या से पुलिस को कॉल करने के लिए कहा। जब हम डॉक्टर प्रिया के क्लीनिक पहुंचे, तो पता चला कि उसने दो चौकीदारों को गोली मारकर घायल कर दिया था।  पुलिस ने मौके पर पहुंचकर पिस्टल वाले को हिरासत में ले लिया।  मैं बाहर ही था। संध्या अंदर डॉक्टर से मिलकर आई क्योंकि डॉक्टर उसकी दोस्त थी, तो संध्या का उससे ऐसी हालत में मिलना जरूरी भी था।
संध्या आई, उसने बताया, "प्रिया थोड़े शॉक में है...लेकिन ठीक है"।
संध्या ने मुझसे पूछा, "तुमको अटैक के बारे में कैसे पता चला?"
मैंने कहा, "मुझे नहीं पता..."

बुधवार, 18 मार्च 2020

मौका हमें नहीं मिलपाया



अफ़सोस तो सब जताते हैं
दिल की तक़लीफ़ भी दिखाते हैं
एक अदालत है हम सबके सीने में
उसमें कुछ पल का मुक़दमा भी चलाते हैं
अफ़सोस तो हम सब जताते हैं

यहां दिल के कटघरे में पेशी होती है सभी की
यहां सभी मुल्ज़िम करार भी दिए जाते हैं
सज़ाएं भी सबको तुरंत सुना दी जाती हैं
समाधान भी सब निकल आते हैं
फिर भी अफ़सोस तो हम सब जताते हैं

क्या मंत्री और क्या प्रधानमंत्री, सबको लाइन में लगाते हैं
जब व्यवस्था पर बात आती है, तो सब को समझाते हैं
बुद्धिजीवियों की तरह ज्ञान बरसाते हैं और भाषण भी सुनाते हैं
बस यूं ही एक रात में बदलाव चाहते हैं


सुनो तुम समझ लो तुम को क्या करना है
मुझसे सवाल ना करना कि मैंने क्या किया है
जितना मेरे बस में था उससे कहीं ज़्यादा किया है
चलो एक चाय पिलवाओ फिर आगे का क़िस्सा सुनाते हैं

देश की समस्याओं पर कुछ बात चलाते हैं
चाय के साथ व्यवस्था का गाना गाते हैं
व्यवस्था तो ऐसी ही है और इसी में हमको जीना है
लेकिन चौड़ा अपना सीना है
क्योंकि अब ये ज़हर तुम को पीना है

कान इधर लाओ कुछ पते की बात तुमको बताते हैं
परिवर्तन तो हम सब चाहते हैं
लेकिन ख़ुद में कितना बदलाव लाते हैं
क्रोध तो हमको बहुत आता है
दिल बड़ी ज़ोर से बदलाव चाहता है

ज़िन्दगी गुज़ार दी हमने इसी आस में
अगर ये ताक़त होती पास में
दुनिया को हम सिखाते
कि देश को कैसे हैं चलाते
 बस यही चुनाव कभी हो नहीं पाया
जनता का जमावड़ा कभी हमारे घर नहीं आया
जनता का जमावड़ा कभी हमारे घर नहीं आया...

बुधवार, 11 मार्च 2020

मुश्किल नहीं है कुछ भी

मुश्किल नहीं है कुछ भी इस जग में
मुश्किल नहीं है कुछ भी इस जग में
जो तू ठान ले एक बार अपने मन में
तूफानों को तेरी एक फूंक उड़ा देगी
चट्टानों को तेरी मेहनत पिघला देगी

तू सर्वश्रेष्ठ रचना है उस ईश्वर की
उठ खड़ा हो और ललकार
चल बहुत हुआ अब भर हुंकार
तुझसा बड़ा वीर कौन है इस धरती पर

एकलव्य है तू ख़ुद को कर केंद्रित
बाधाएं क्यों देखता है मूर्ख नहीं है तू
समाधान है आसपास ही,  देख सही
तू है वही वीर जो गिरता है

रेंगता है कुछ क्षण युद्ध भूमि पर
समझाता है ख़ुद को हर बार फिर लड़ता है
जब तक लक्ष्य नहीं कर लेता मुट्ठी में
मुश्किल नहीं है कुछ भी इस जग में
मुश्किल नहीं है कुछ भी इस जग में...

रविवार, 23 फ़रवरी 2020

दो नाव

मैं रोज़ सोचता हूं कि सिगरेट छोड़ दूंगा, लेकिन क्लास के बाद पता नहीं क्यों सिगरेट की ऐसी तलब लगती है कि सीधा बाहर सिगरेट पीने दौड़ता हूं। अब या तो क्लास इतनी बोझिल होती है या फिर मुझे लत लग गई है, शायद लत ही लग गई है। कुछ दिन अगर ये सिगरेट छूट भी जाए तो ये दोस्त छूटने नहीं देते। एक-आध कमीना ऐसा निकल ही आता है जो आपको ये बोल कर साथ ले ही जाएगा,
"अबे चल ना सिगरेट छोड़ कर भी क्या कर लेगा" 
"कल से छोड़ लियो" 
"आज चल, आज तेरा भाई पिला रहा है"
लेकिन उस दिन अकेला ही था। एक दोस्त सामने वाली नाई की दुकान पर बाल बनवा रहा था, तो दूसरा पहले से ही पास वाली दुकान पर चाय पी रहा था। मैंने दद्दू की दुकान से सिगरेट ली और पीनी शुरू की, वहां उसको देखा... उसने मुझे देखा... तो मैंने कहीं और देखा... अब फिर जब मैंने देखा... तो उसने कहीं और देखा। 
वैसे तो मैं चाय पीना पसंद नहीं करता, लेकिन अब मैंने एक चाय भी खरीद ली और अपने दोस्तों के पास जाकर बैठ गया जो पहले से वहां बैठ के चाय पी रहे थे। 
चाय पीते-पीते हम दोनों ने आंखों-आंखों से करीब 25-30 बार पकड़म-पकड़ाई खेली।
एकदम पतली सी माथे पर चोट का निशान और शरारत भरी उसकी आंखें, आंखों से खेलना बहुत अच्छे से जानती थी वो। हमारा क्रिकेट शुरू हो गया था, अब देखना था कि आउट पहले कौन होता है...ना वह आउट हो और ना हम... आंखों-आंखों का खेल खत्म हो तो बातचीत पर भी आएं। अब तो सिगरेट और चाय भी खत्म हो गई थी, उसकी सहेली भी जाने को तैयार थी और मेरे दोस्त भी। तो आउट होना मंजूर नहीं था, इसलिए हम वहां से निकल गए। टाइम नोट किया कि शायद वह कल यहां आए तब आएंगे...12:15 दोपहर के थे।
वैसे मेरी गर्लफ्रेंड है लेकिन पता नहीं क्यों मैं उसकी तरफ खिंचा चला गया ।
अगले दो-तीन रोज़ तक उसी वक्त पहुंचा पर वह नहीं आई, फिर अचानक लगभग हफ्ते भर बाद वह जूस की दुकान पर मिली। हमारी नजरें फिर मिलीं, मुझे थोड़ी सी घबराहट हुई कि इतना नज़दीक से क्रिकेट शुरू ना कर दे...मैं इतना नज़दीक से नहीं खेल पाता...लेकिन उसने नजरें झुका लीं...मानो पहली ही बॉल पर आउट और हम ने सीधा सिक्सर मारा बाउंड्री के बाहर।
जूस वाले भैया ने पूछा,
"मैडम कौन सा"
मैडम बोली "मैंगो शेक"  
जूस वाले ने हम से पूंछा, "भईया आज कौन सा बनाएं"
"मैंगो" मैंने उसी की तरफ एक नज़र घुमा कर कहा।
आम फलों का राजा क्यों होता है पता है?
देखा जूस वाले की तरफ लेकिन सवाल मैडम से था।
"नहीं भईया" जूस वाले ने कहा
और मैडम ने उत्सुकता भरी निगाहों से देखा...
बस बातें करने का मौका मिल गया और नज़रें झुका कर के तो हमारी सत्ता वो पहले ही स्वीकार कर चुकीं थी।
उसकी मुस्कुराहट बड़ी मीठी सी थी।
मेरी हर बात पर वह हंसती थी, थोड़ा कम बोलती थी लेकिन गाड़ी पटरी पर आ रही थी। उसके साथ बातें करने में, वक्त गुजारने में, मुझे मज़ा आता था...एक रोमांचक एहसास होता था...दिल की धड़कन थोड़ी अलग सी धड़कती थी और उसके परफ्यूम की खुशबू तो एकदम नशीली थी। 
लेकिन दिल में एक अजीब सा डर था, वह डर इसलिए था क्योंकि मेरी गर्लफ्रेंड थी, मेरे गांव में। 
ऐसा नहीं था कि मैं उससे प्यार नहीं करता था, उसके बिना तो मैं अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता था। लेकिन अब, मैं दो नावों में सवार हो चुका था।
यहां मेरी एक जिंदगी थी और वहां मेरे गांव में दूसरी।
हमने कई बार अकेले वक्त गुजारा था, लेकिन कभी भी रिचा के साथ किसी भी तरह का जिस्मानी रिश्ता बनाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। एक दो बार उसने पहल भी की, लेकिन मैं ख़ुद ही पीछे हट गया।
ऐसा नहीं है कि मैं बहुत अच्छा हूं या सत्यवान हूं... कभी-कभी सोचता हूं कि अगर इतना ही अच्छा होता तो सरस्वती को धोख़ा देकर रिचा की तरफ एक नए रिश्ते की शुरुआत ही नहीं करता, लेकिन मैंने ऐसा किया था। सरस्वती से रोज़ बात होती थी, उसको सब बताता था... रिचा के बारे में भी बताया था लेकिन सिर्फ इतना कि रिचा अच्छी दोस्त है, लड़कियों के पास शायद सिक्स सेंस होता है, इसलिए सरू से चाहे किसी भी लड़की के बारे में बात कर लो उसे कोई दिक्कत नहीं थी, बस रिचा का नाम सुनते ही वह पता नहीं क्यों चिड सी जाती थी।
अपने ख़्यालों में तो मैं रिचा के साथ भी बहुत कुछ कर गया था, लेकिन उन ख़्यालों को हकीक़त बनाने की हिम्मत कभी नहीं हुई ।
 इन 4 महीनों में रिचा ने मुझे इतना जान लिया था जितना सरु को जानने में 4 साल लग गए थे । रिचा ने अपने जन्मदिन की पार्टी दी थी, पार्टी में उसके सारे दोस्त आए थे लेकिन वो सिर्फ मेरे साथ ही अपना वक्त बिताना चाहती थी। इसलिए अपने सारे दोस्तों को ख़ुद की पार्टी में छोड़ कर मेरे पास आई और बोली,
"यार यहां मन नहीं लग रहा है, मुझे कहीं बाहर ले चलो" मैंने पूछा "कहां चलोगी यहां पर सारे दोस्त हैं तुम्हारे, तुम ही पार्टी से चली जाओगी तो उनको अच्छा नहीं लगेगा"।
 वह बोली "उसकी चिंता तुम छोड़ो और यहां से बाहर चलो"।
 मेरी बाइक पर हम दोनों यूं ही दिल्ली की सड़कों पर निकल गए। मोटरसाइकिल पर मेरे पीछे मुझसे इतना सट कर बैठी थी कि उसके दिल की धड़कन तक महसूस हो रही थी और सीट पर पीछे इतनी जगह थी कि 2 लोग आराम से सीट पर आ जाएं। उसने एक बीयर बार देखा और गाड़ी रुकवा दी, वह मेरे साथ लगातार चार बियर की केन के बॉटमसिप गटक गई लेकिन बिल्कुल भी लड़खड़ाई नहीं। हम वहां से बाहर निकले और रात के 11:30 बजे बाहर घूमने लगे, कनॉट प्लेस की सड़क पर मेट्रो गेट नंबर 7 की सीढ़ियों के बाहर बेंच पर बैठे थे।
 मैं बिल्कुल शांत उसे देख रहा था, दुकानें सारी बंद हो गई थीं, पूरी सीपी में सन्नाटा था, इधर-उधर कोई एक आदमी दिखाई दे जाता था बस। मैंने कहा चलो कहीं और चलते हैं, "आई थिंक! दिस इज़ नॉट सो सेफ"।
वो एकटक मेरी आंखों में देखती रही और थोड़ा सा सरक कर मुझे कस कर गले लगा लिया, काफी देर तक बिना कुछ बोले मेरे कंधे पर अपना माथा टिका कर बैठी रही। मैंने पूंछने की कोशिश की, तो मुझे "शश" कर उसने चुप करा दिया। थोड़ी देर बाद धीरे-धीरे अपना चेहरा ऊपर किया इस तरह जैसे अपना सिर उठाने के लिए भी ताकत मुझ से ही उधार ली हो, उसकी उंगलियां मेरे बालों और गर्दन पर धीरे धीरे नाच रहीं थी। धीरे से उसके होंठ न जाने कब मेरे होठों के करीब आ गए,
मैंने उसे  रोका "आं! तुम को कुछ बताना है",
उसने कहा "शू..श...कुछ मत बताओ तुम्हारी आंखें सब बता देती हैं, तुम्हारी जिंदगी में कोई और भी है मुझे पता है"अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा पकड़े हुए उसने मेरी आंखों में आंखें डाल कर कहा। 
इससे पहले कि मैं फिर कुछ कहता उसने मेरे होठों पर अपनी उंगली रख दी, बोली "आज कुछ मत कहना... प्लीज" और मैं कुछ भी नहीं कह पाया। मैं ये नहीं कहूंगा कि उसने मुझे किस किया, हम दोनों ने बहुत देर तक एक दूसरे को प्यार किया... अचानक उसी वक्त उससे एक और जुड़ाव हो गया। यह कोई आम साधारण लड़की नहीं है जो मुझे किसी और के साथ होते हुए भी एक्सेप्ट कर रही है और पता नहीं कब से जानती थी वो इस बात को। 
एक अलग सा जुनून था उस वक्त हम दोनों में, पता नहीं कब हम दोनों मेरे फ्लैट पर पहुंचे । सुबह आंख खुली तो पाया कि मेरे बिस्तर में वह मुझसे लिपट कर सो रही थी। हमारे बीच सब ठीक था। लेकिन उस रात के बाद मेरे और सरू के बीच चीज़ें बदलने लगी थी, मुझे उससे बात करने में झिझक होती थी, गांव जाता था तो उससे नज़रें मिलाकर बात नहीं कर पाता था। 
मेरी इंजीनियरिंग का आखरी साल था। कॉलेज में प्लेसमेंट के लिए कम्पनियां आ रहीं थी, लेकिन मैं अभी भी सरू और रिचा के बीच फंसा था । इंटरव्यू में जवाब आते हुए भी मैं इंटरव्यूअर्स के सवालों के जवाब नहीं दे पाता था । उस रात को 2 महीने बीत चुके थे और रिचा मेरी हालत भी समझ रही थी। इसलिए उसने मुझे एक दिन इस बारे में बात करने के लिए बुलाया,
"देखो आदि मैं समझती हूं कि तुम सरस्वती से बहुत प्यार करते हो और मुझ से भी, लेकिन जैसा कि तुम मुझे पहले ही बता चुके हो कि सरू तुमको किसी से नहीं बांट सकती और  तुम्हारी ऐसी हालत मुझ से देखी नहीं जा रही। मुझे सरू से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन तुम्हें किसी एक को ही चुनना पड़ेगा और इस बारे में जल्दी ही सोचना होगा क्योंकि मेरी चेन्नई में प्लेसमेंट हो गई है और मेरी कल सुबह की फ्लाइट है। आदि मैं तुमको खोना नहीं चाहती...तुम्हारे जवाब पर ही डिपेंड करता है कि मैं चेन्नई जाऊंगी या नहीं, तुम क्या चाहते हो" ?
मैं उसकी बातों से अंदर तक घबरा गया था कि दोनों में से किसी एक को चुनना पड़ेगा।
मैंने कहा,
"सरू...
उसने वही पहले वाली स्माइल दी जो पहली दफा जूस की दुकान पर दी थी, अपना बैग उठाया, गाल पर हल्के से किस किया और चली गई ।
मैं उसे बता रहा था,
"सरू! मैंने कल रात सरू को हमारे और उस रात के बारे में सब बता दिया, सरू ने मुझसे सारे रिश्ते ख़त्म करके मुझे सजा दे दी है"।
कनॉट प्लेस के उस कैफे में, मैं उस खाली कुर्सी से बात कर रहा था जिस पर कुछ देर पहले तक रिचा बैठी थी। वेटर ने आकर कहा, "सर आपका ऑर्डर, टू लाटे"।
मैं अचानक जैसे ख़्याल से टूटकर बोला, 
"क्या" ?
सामने देखा तो सिर्फ ख़ाली कुर्सी थी, वेटर ने एक कप खाली कुर्सी के सामने रखा और दूसरा मेरे... 

चमन चतुर

  चमन चतुर Synopsis चमन और चतुर दोनों बहुत गहरे दोस्त हैं, और दोनों ही एक्टर बनना चाहते हैं. चमन और चतुर जहां भी जाते हैं, वहां कुछ न कु...