बुधवार, 22 अप्रैल 2020

सावधान!

यदि मैं कहूं के सारे संसार का ज्ञान तुम्हारा है
और सभी प्रश्नों के उत्तर तुम को मिलजाएंगे 
आनन्द और धन भी अपार होगा 
शायद तुम्हारी बुद्धि से यही विकास व्यवहार होगा

लेकिन इसकी कीमत होगी तुम्हारी प्राण शक्ति
अब जी सकते हो केवल कुछ घंटे या दिन
कहो क्या भरोगे हामी ?

ना कहेंगे आप, मैं, सभी बुद्धिमान और धनवान
परंतु भविष्य यही है हमारे क्रिया कलापों का
आज घर है छिपने, जीने, सांस लेने को
सोचो अगर कल ये भी ना रहे तो कहां जाओगे 
शायद अंतरिक्ष में ही कहीं बस्ती बसाओगे 
पर क्या सभी को वहां लेजा पाओगे ?
वो तो अवश्य यहीं रह जाएगा 
जो तुम्हारी सेवा के काम ना आएगा

कुछ सीमित संसाधन ही आवश्यक हैं जीने के लिए
ये प्रकृति अपनी भाषा में समझा रही है
अब भी समझलो धरा क्या कहना चाह रही है

याचक थी दोनों हाथ जोड़े जो अब तक 
वो प्रकृति अब प्रहार की नीति अपना रही है
सावधान! 
क्योंकि अब मनुष्यों कि बारी आ रही है
विकल्प और भी हो सकते हैं सिवाय धरा के सौदे के
अभी समय है
सावधान!
याचक अब प्रहार की नीति अपना रही है।
हमारी खोजें, चाही और अनचाही रचनाएं
हमारे ही आड़े आ रहीं हैं
हो सकता है कि ये मात्र एक चेतावनी हो
सावधान!
क्या पता भविष्य में कोई संकट इससे भी भारी हो
सावधान...

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