मुझे लगता है नागरिक और सरकार
मियां बीवी हैं
कभी मियां रूठें तो बीवी मनाएं
और बीवी रूठे, तो मियां
एक दूजे के बिना पड़ता नहीं खाएगा
अर्थव्यवस्था तो क्या
कुछ भी नहीं चल पाएगा
फिर भी हर सुबह होम मिनिस्ट्री के बाहर मियां जी आएंगे
आटा, दाल, चावल, सड़क और शर्ट के दाग़ की शिकायत लगाएंगे
फिर मिनिस्ट्री से कभी जवाब, कभी फ़रमान तो कभी कानून आएगा
मियांजी कभी खुश तो कभी मायूस नज़र आयेंगे
बेचारे मियां जी तो हमेशा बेबस नज़र आते हैं
घर में कभी चीखते- चिल्लाते, कभी धरना
तो कभी उपद्रव करते नज़र आते हैं,
लेकिन बाहर हमेशा ये बताते हैं
हम तो लाचार हैं
हमने तो बस इनको चुना है
हमारी ज़िन्दगी का ताना बाना तो इन्हीं ने बुना है,
अब सरकार को भी तो गाड़ी चलानी है
बस फ़र्क इतना है कि इन्हें पांच साल
और हमें ज़िन्दगी भर दौड़ानी है
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