बुधवार, 17 जून 2020

मुलाक़ात

एक रोज़ उसने जब तुम्हारे बारे में बात की
उसके माध्यम से मैंने तुमसे मुलाक़ात की

तभी सोचा था कि एक रोज़ 
हकीक़त में मुलाक़ात होगी

उस रोज़ हम दोनों की 
जिज्ञासाओं और खोजों की भी बात होगी

सिर्फ तुम उस फेहरिस्त में शामिल थे
ऐसा भी नहीं था

एक मकबूल भी था 
तो एक इशान भी था

ख़ैर रह जाते है कई ख़्वाब अधूरे
कुछ आधे कुछ पूरे

एक रोज़ मिलेंगे वहां 
जहां सब को मिलना है 

ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी बाद भी चलना है
ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी बाद भी चलना है

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