गुरुवार, 27 मई 2021

पीले दुपट्टे वाली

101...102...103...104...105... हाह...आज इससे ज्यादा नहीं हो पाएंगी,
हे बजरंगबली अपने भक्त की मदद करो!
क्या कमी रह गई मेरी श्रद्धा भक्ति में? 
बराबर तुम्हारी पूजा करता हूं, 
रोज़ बिलानागा सुबह 4:30 बजे उठ कर बराबर बर्जिस करता हूं,
इस ब्रज में कनहिया जी की धरती पर मैं तुम्हारा भक्त...
लेकिन फिर भी सौ से ज्यादा दंड नहीं मार पाता हूं,
क्यों प्रभु...क्यों? 
सक्ति दो प्रभु!
सक्ति दो!
.
.
.
ऐसा ही मगन मैं उस दिन अपनी बर्जिस में था। अपने बजरंगबली से बात कर रहा था, तभी पता नहीं कहां से हवा में उड़ता हुआ दुपट्टा मेरे ऊपर आकर गिर गया। ऐसी खुसबू तो मैंने आज तक नहीं सूंघी थी... अच्छा लगा पल भर के लिए, 
आहा, हा हा हा
तभी अचानक पता चला,
साला अपराध हो गया, हमसे तो घोर पाप हो गया!
ऊपर छज्जे से मौसी चिल्ला कर बोली, 
'अरे ओह पहलवान, जरा यह दुपट्टा तो ऊपर फेंकियो'  
हम तो एकदम सकपका गए... हमने दुपट्टे को गोल-मोल, गद-मद किया और जैसे ही ऊपर देखा, हाय... जिंदगी में पहली दफा हमारे मुंह से अंग्रेजी निकली...ओ-माय-गॉड...पीले दुपट्टे वाली कन्या मौसी के पीछे पीले सूट में खड़ी थी! 
अरे हम तो अटक गए।
मौसी फिर बोली, 
'अरे फेंक पहलवान, कैसे बुत बन कर खड़ा है' 
हमने दुपट्टा तुरंत ऊपर फेंका, ससुर मौसी की उंगलियों से छुलते-छुलते रह गया... हवा चली, फिर ऊपर आकर गिर गया, दुपट्टा हमारे चेहरे पर ऐसे गिरा जैसे हिमालय के पहाड़ों पर बर्फ़, आहा...हा...हा...हा...
ऐसा लगा जैसे किसी ठोस पत्थर पर सूरजमुखी का फूल उग आया हो। 
तभी अचानक मुंह से निकला, 
"जय बजरंगबली की" और हमें समझ आया कि ये तो हमारा धर्मांतरण होने जा रहा था! हम बजरंगबली के भक्त, श्री कृष्ण के मोहन रूप में प्रवेश होने जा रहे थे।
हमने तुरंत दुपट्टे को चेहरे से दूर किया, गद-मद किया, एक कस कर गांठ मारी और सीधा मौसी के मुंह पर निशाना लगा कर फेंक दिया।
बड़ा अपराध बोध फील हो रहा था।
हमने बजरंगबली से माफी मांगी और लगे दंड पेलने और पता ही नहीं चला, कब पेलते-पेलते हम दो सौ के पार हो गए, इतने दिन से सौ के पार करने की कोशिश कर रहे थे और आज एक सांस में दो सौ दंड मार लिए!
सोचने लगे पहले सौ और अब दो, बराबर हुए तीन सौ... वाह प्रभु वाह.. प्रभु हमसे नाराज नहीं हैं। 
अब ये दुपट्टे की शक्ति थी या बजरंगबली की भक्ति... नहीं बजरंगबली की भक्ति तो थी ही।
सोच रहे हैं कल भी दुपट्टा गिर जाए तो क्या पता 500 के पार हो जाए... हम बड़े प्रसन्न घर पहुंचे,

अम्मा ने कहा,
'लाला बाहर बरामदे में मिलबे बाए आए हैं, जाकर नेक बैठ जा बिन के बीच' 
और हम आज्ञाकारी भीम जाकर बैठ गए बरामदे में,
हाय... देखा पीले दुपट्टे वाली कन्या बैठी है हमारे सामने...
हमाए घर में, हमाए खिलाफ साजिस,
लेकिन इस साजिस का हम सिकार होना चाहते थे...

14 टिप्‍पणियां:

  1. सोच रहे हैं कल भी दुपट्टा गिर जाए तो क्या पता 500 के पार हो जाए.
    Dhashu line maze aa gye..... suparb��

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  2. बहुत सुंदर आज के इस दौर में ऐसे सीधे साधे कहानियां पढ़ कर अच्छा लगता हैं लगता आज के इस तनाव भरे मोहाल मैं भी सादगी है

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  3. वाह क्या बात है भाई..., बहुत शानदार 😍😍

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