कौन सही कौन ग़लत ये तो बस वो ही जाने
मेरा ख़ुदा तो बस किरदार का ईमान माने
बहस तुम्हारे जाने से भी छिड़ गई
मेरी वैचारिक क्षमता फिर एक साथी से भिड़ गई
उसने कहा तुम में कुछ अंश राजनीति का भी होना था
मैंने कहा मेरे दोस्त तुमको राजनीति में होना था
कलाकार से सिर्फ कला की मांग होती है
क्योंकि वही उसकी पहचान होती है
कला में राजनीति सिर्फ मक्कार करते हैं
क्योंकि वो कलाकार की ताक़त से डरते हैं
हर बाज़ी जीत जाएं ऐसा भी नहीं होता है
कभी मंज़िल तो कभी रास्ता भी खोता है
ऐसे ज़िन्दगी से मुंह मोड़
कोई कब सोता है
शायद जब सपनों का महल डेहता नज़र आए
तभी ऐसा होता है ...
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