शनिवार, 16 मई 2020

कसौटी

कुछ तो है जो अखरता है
पता नहीं हमें क्या खटकता है
कहें कैसे ये मालूम नहीं
कौन सुनेगा ये भी जानें नहीं
डर लगता है कि अगर 
आपको मेरा प्रश्न करना भाया नहीं
तो क्या होगा... 

बचपन में सुना था कि पत्थर मारे वो
जिसने पाप ना किया हो
चौक चौराहे पर कुछ चीटियां मैंने भी मारी हैं
कुछ मिठाई के डिब्बों का मैं भी दोषी हूं
तो सवाल मैं कैसे करूं ये सोचता हूं
ख़ुद को कटघरे में रखा है
अब क्या होगा...

मैं सम्पन्न नहीं हूं
ये कहने से गुनाह कम तो नहीं होता
चाहें चींटी मारो या हाथी
दोष कम तो नहीं होता
हां माना गरीब की मजबूती होती है
कुछ चीजें हैं जो व्यवस्था में ज़रूरी होती हैं
और मैं क्या सब इसी व्यापार को निभाते हैं
कुछ हैं एक आध जो कभी कभी
राजधानी की सड़कों पर आते हैं
फिर क्या होता है...

ये तो सब को पता होता है
दोष हर किसी का होता है
ईमानदारी, सत्य और निष्ठा 
ये कसौटी तो सब चाहते हैं
लेकिन ख़ुद के अलावा 
सब कसौटी पर तोले जाते हैं
फिर क्या होता है...

फिर सड़कों पर जनता आती है
कभी शांत तो कभी उग्र हो जाती है
हमारी तो सब करतूतें माफ़ हैं
भीड़ में किस किस की शक्लें साफ हैं
अब कौन पहचानेगा
बसों में आग, सड़कों पर मार काट
मांगे पूरी होंगी जब होंगी तब होंगी
इसी बीच कितनी मांगे उजड़ चुकी होंगी
किसी ने बताया था 
कोई देश है जहां हड़तालें शांति से होती हैं,
हमारी बाजुओं पर काला कपड़ा होता है और
सरकारें दहल जाती हैं
ख्याल काल्पनिक हो तब भी अच्छा है
अगर ये सच्चा हो तब कितना अच्छा है
अब सोचा मैंने...

मैं आम नागरिक
दोष सरकारों को दूं, हुक्मरानों को दूं या ख़ुद को 
अब हर कोई तो अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाता
और फिर
व्यवहार शिष्टाचार भी बीच में है आता
नहीं तो नागरिक ही नागरिक को समझाता
लेकिन अधिकतर तो 
मैं यही हूं चाहता 
क्यों नहीं सब काम सरकार के जिम्मे आता
और मैं...मैं तो आम नागरिक हूं
कभी सरकारें कहती हैं मैं तो सरकार हूं
दोनों को मिलना होगा, तभी तरक्की का साथ चलना होगा
वरना कुछ नहीं बस रोज़ का धरना होगा....

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