गुरुवार, 6 अगस्त 2020

मृणाली

वो शक्ल से मासूम-सी, भोली-सी दिखने वाली साफ़ दिल की लड़की जिसने जिंदगी का लगभग हर दौर देखा था, लेकिन उसकी हल्की-सी भी झलक उसके चेहरे पर नहीं दिखती थी। लंबा-सा गोरा चेहरा, पतली-सी पीपनी जैसी मधुर आवाज़ और बनावटी मर्दानापन। 
अक्कड़ मिजाज़ी ही मेरे लिए उसकी पहचान थी।

मेरी दोस्ती किसी से जल्दी नहीं होती, लेकिन उससे पहली नज़र टकराते ही दोस्ती हो गई। मेरे दोस्तों ने मेरी खिंचाई शुरू कर दी, कि कॉलेज के फर्स्ट ईयर में ही थर्ड ईयर की सीनियर को फंसा लिया और फंसाया भी तो उसे जिसके आस-पास लड़के फटकने से भी डरते हैं। मैंने उन्हें समझाया, 
"अबे कमीनों, सिर्फ अच्छी दोस्त है मेरी",
तो उन्होंने उल्टा मुझे बॉलीवुड फिल्मों का एगज़ामप्ल देते हुए समझाया कि बेटे, "एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं होते"। आधा कचरा तो इन बॉलीवुड फिल्मों ने फैलाया है, पहले तो गुस्सा आया कि किस वाहियात-सी फिल्म का वाहियात-सा डायलॉग है? लेकिन फिर पता चला कि सल्लू भाई की फिल्म है, सोचा जाने दो, जब भाई को डायलॉग मारने से नहीं छोड़ा तो तुम क्या चीज हो प्रयाग पांडे।  गोली मारो ! हाथी चले बाजार, कुत्ते भौंके हज़ार। 
हमारी दोस्ती भी बड़ी ही अजीब तरह से हुई, मैडम ने हमारे भोले- भाले दोस्त सतीश इलाहबादी के सबके सामने चांटा मार दिया। अब सतीश इलाहबादी जो हैं वो तोतले हैं, बेचारे कहना कुछ चाहते हैं और मुख-मंडल से निकलता कुछ और ही है। अब बेचारे ने मैडम को बोला, "गुड मॉर्निंग" लेकिन मुंह से निकला कुछ, मैडम ने समझा कुछ और धर दिया चांटा गाल पर बेचारे के...बस फिर क्या था, मियां इलाहबादी हमारे पास आए रोनी-सी सूरत लेकर। अब हमारे दोस्त के कोई चांटा मार दे, ये हमसे बर्दाश्त नहीं।  अब पिता जी हमारे दरोगा... आधे से ज़्यादा सीनियर तो हमारे मोहल्ले के थे, जिनमें से तीन-चार स्कूल में हमारे जूनियर थे। 
लेकर गए कैंटीन इलाहबादी को और कहा, 
"बताओ कौन है?" इलाहाबादी ने उंगली का इशारा किया। हमारा गुस्से से तिलमिलाता चेहरा देखकर कॉलेज में इलाके के सीनियर भी खड़े हो गए। उनके सामने जैसे ही हम खड़े हुए, उन्होंने तो कोई भाव ही नहीं दिया। 
हमने कहा, "सुनिए"... 
क्या एटीट्यूड था उनका, हमारी आवाज का तो मानो दम ही निकल गया। फिर तो हमारे मुंह से सिर्फ इतना निकला 

"गुड मॉर्निंग मैडम! हम प्रयाग पांडे, फ्रॉम फर्स्ट ईयर। उधर से सीनियर ने बोला था कि मैडम को विश करके आओ, विश कर दिया अब चलते हैं"। 

फिर क्या...? फिर तो दोस्ती हो गई, पता चला कि मैडम ने अब तक 200 से ऊपर लड़कों का दिल तोड़ा है और इस कतार में अब हमारा नंबर है।
वह बिल्कुल मेरी तरह थी... कोई नियम-कानून नहीं, बस जब जो करने का मन है वही करना है। अपनी कमाई से कॉलेज में लॉ (वक़ालत) कर रही थी, आठवीं के बाद घर से रुपए लेना बंद कर दिया था... क्योंकि पापा पोस्ट ऑफिस में नौकरी करते थे। दो छोटे-भाई बहन, अब भाई की भी  उम्र हो गई थी स्कूल जाने की, तो मृणाली को स्कूल छोड़ना पड़ा...बस उसकी बगावत वहीं से शुरु हो गई थी।
मैंने आज तक उसके जैसी लड़की नहीं देखी... घर का सारा काम करती थी, छोटे भाई-बहन को पढ़ाती थी, अकेले ही दुकान से घर तक गैस का भरा सिलेंडर लेकर आती थी। मतलब आज कल लड़के भी जितना काम नहीं करते, वो लड़की हो कर चुटकियों में कर देती थी।
मेरे अलावा सारे कॉलेज से अकड़ कर बात करती थी। बस मेरे आगे ही शांत हो जाती थी और मैं...? मैं तो अब मैं से हम पर आ गया था। अब किसी से लड़ाई झगड़ा करने की फुर्सत ही नहीं थी, सारा वक्त उसके साथ निकल जाता था। मैं उससे कहता, "इतना मत अकड़ा कर, कोई किसी दिन तेरी फाइल निपटा देगा।" 
तो वह बोलती, "अरे परागी लाल, अपने दम पर जीती हूं। किसी के बाप का डर नहीं मुझे, किसी माई के लाल की हिम्मत नहीं कि हाथ लगा दे"। सच भी था, किसी की हिम्मत नहीं थी कि उसे हाथ लगा देता। 
उसका मानना था कि रिश्तो में मिलावट नहीं होनी चाहिए, इसलिए कभी अपने दिल की बात नहीं कहती थी। सिर्फ दोस्ती तक ही मामला रखती थी, लेकिन उस पागल को कौन समझाता कि हमारे रिश्ते में मिलावट तो हो चुकी थी। मैं तो फिर भी नहीं कहता, क्योंकि हमारा भी एक सपना था कि हम लड़की को नहीं, बल्कि लड़की हमारे पास आकर हमारा कॉलर पकड़े और बोले, "सुन बे तुझसे प्यार करती हूं, जा... जो करना है कर ले"। 
एक दिन बड़ी उदासी से मेरे पास आई, चेहरा उतरा हुआ था। बड़ी से बड़ी बात पर भी उदास नहीं होती थी। मैं पूछने ही वाला था कि, 
"क्या हुआ?"
उसने मेरा कॉलर पकड़ा, जोर से...थोड़ा मुझे झुकाया, थोड़ा खुद ऊपर उठी, उसकी आंखों में आंसू थे... बोली, "सुन, तुझसे बहुत प्यार करती हूं मैं और हमेशा करती रहुंगी। तुझे जो करना है कर लेना, बस मुझे भूलना मत कभी...थोड़ा सा और ऊपर उठकर मुझे होठों पर किस किया और बिन कुछ कहे उल्टे पांव लौट गई। उस दिन के बाद कॉलेज नहीं आई वो, वापस जाते वक्त उसके कदम बहुत भारी लग रहे थे। मैं उसके घर भी गया पर किसी ने बात नहीं की, दरवाज़े से ही लौटा दिया। बहुत पता करने की कोशिश की लेकिन...फिर कॉलेज में एक दिन उसकी सहेली ने बताया कि उसके पिताजी ने आत्महत्या की धमकी दी थी, क्योंकि वह शादी नहीं करना चाहती थी। उस दिन के बाद वो कहां गई, उसके घर वालों को भी नहीं पता। 
लेकिन मैं उसे आज तक ढूंढ़ रहा हूं...

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