कहां से लाते हो हिम्मत जुर्म करने की
किसी बेगुनाह के साथ गुनाह करने की
ख़्याल क्या एक बार भी नहीं आता होगा
घर पर इनके भी तो माता, बहन, बेटी का साया होगा
ज़रूर उस मां ने आज सूनी कोख़ की गुहार की होगी
जब औलाद की ऐसी हैवानियत देखी होगी
अब दिन का जागना रात का सोना भी
कितना खौफ़नाक होगा
अपने ही जिस्म से दरिंदों की हवस की बास का एहसास
हर पल ज़हन और जिस्म पर पड़े निशान
सवाल तो ख़ुदा से होगा उसका
किस गुनाह की सज़ा मिली उसको
औरत होना गुनाह हो गया उसका
क्यो सीता का तिनका उसको जन्म से ही न मिला
ये कैसा ईश्वर का अन्याय
एक ओर सीता की छाया में भी इतना तेज
त्रिलोक विजयी छुए तो जल जाए
पर यहां जिसका मन वो तार तार कर जाए
उस दरिंदे ने भी कभी शायद
दुर्गा के आगे सिर झुकाया होगा
पर वहां माता ने भी अपना फरसा नहीं चलाया होगा
सज़ा काफ़ी नहीं है दरिंदों की
इसलिए रोज़ ये सिर उठाते हैं
काश कोई ऐसा वक्त आए जहां ये कभी सिर ना उठाएं
फिर कोई फूलन, निर्भया या दामिनी
हवस की शिकार न होने पाए
अब जब भी ऐसा कोई सामने आए
तो सिर्फ दुर्गा आए
तो सिर्फ दुर्गा आए...
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