शुक्रवार, 29 मई 2020

कमी तुम में नहीं है

कमी तुम में नहीं है 
कमी उन में है जो तुम में कमी ढूंढते हैं
क्योंकि वो सिर्फ तुम्हारे में ही नहीं
सभी में कमी ढूंढते हैं

पूरा तो कोई भी नहीं है
बेदाग तो चांद भी नहीं है
तुम कभी उनको चांद दिखा कर देखना
और कभी दिखा देना ताज महल भी

मेरे शहर में है 
दुनिया का एक नायाब अजूबा
उनका सवाल उल्टे तुम से ही होगा
उस दाग से भरे पिंड में क्या सुंदर दिखा
कैसी ये सफेद पत्थर की इमारत तुमने दिखाई
इस मकबरे में क्या खूबसूरती तुम को नज़र आई
ज़ालिम था वो जिसने इसे बनवाया
इसे बनाने वालों के हाथों को था उसने कटवाया

वो कहेंगे तुमको पहचान नहीं है
कभी चलो उनके मकान पर
वहां बनाई है उन्होंने छप्पर की एक झोंपड़ी
तुम एक बार को चकरा जाओगे
सीधे शाहजहां से सवालों की झड़ी लगाओगे

 ठहरो ख़ुद को यूं न उलझाओ
 कुछ पल दिल हटा कर दिमाग़ लगाओ
 कल जो कहा था उसने क्या वो आज निभाया
 अपनी बात पर क्या वो टिक पाया
 
तुमसे भी कभी किसी की शिकायत उसने लगाई थी
कल उन्हीं से उसने पहचान बढ़ाई थी
जो हर बात पर शिकायत लगाएगा
वह अपने साथ तुम्हें भी फंसाएगा

उनसे ख़ुद को बचाओ
ख़ुद पर भरोसा दिखाओ
उसे शिकायत है वो रहेगी 
तुम बस अपनी पहचान बनाओ
ख़ुद को आगे बढ़ाओ
ख़ुद को आगे बढ़ाओ

सोमवार, 18 मई 2020

एक दूजे के बिना पड़ता नहीं खाएगा

मुझे लगता है नागरिक और सरकार
मियां बीवी हैं
कभी मियां रूठें तो बीवी मनाएं
और बीवी रूठे, तो मियां

एक दूजे के बिना पड़ता नहीं खाएगा
अर्थव्यवस्था तो क्या
कुछ भी नहीं चल पाएगा

फिर भी हर सुबह होम मिनिस्ट्री के बाहर मियां जी आएंगे
आटा, दाल, चावल, सड़क और शर्ट के दाग़ की शिकायत लगाएंगे
फिर मिनिस्ट्री से कभी जवाब, कभी फ़रमान तो कभी कानून आएगा
मियांजी कभी खुश तो कभी मायूस नज़र आयेंगे

बेचारे मियां जी तो हमेशा बेबस नज़र आते हैं
घर में कभी चीखते- चिल्लाते, कभी धरना
तो कभी उपद्रव करते नज़र आते हैं,

लेकिन बाहर हमेशा ये बताते हैं
हम तो लाचार हैं 
हमने तो बस इनको चुना है
हमारी ज़िन्दगी का ताना बाना तो इन्हीं ने बुना है,

अब सरकार को भी तो गाड़ी चलानी है
बस फ़र्क इतना है कि इन्हें पांच साल
और हमें ज़िन्दगी भर दौड़ानी है

शनिवार, 16 मई 2020

कसौटी

कुछ तो है जो अखरता है
पता नहीं हमें क्या खटकता है
कहें कैसे ये मालूम नहीं
कौन सुनेगा ये भी जानें नहीं
डर लगता है कि अगर 
आपको मेरा प्रश्न करना भाया नहीं
तो क्या होगा... 

बचपन में सुना था कि पत्थर मारे वो
जिसने पाप ना किया हो
चौक चौराहे पर कुछ चीटियां मैंने भी मारी हैं
कुछ मिठाई के डिब्बों का मैं भी दोषी हूं
तो सवाल मैं कैसे करूं ये सोचता हूं
ख़ुद को कटघरे में रखा है
अब क्या होगा...

मैं सम्पन्न नहीं हूं
ये कहने से गुनाह कम तो नहीं होता
चाहें चींटी मारो या हाथी
दोष कम तो नहीं होता
हां माना गरीब की मजबूती होती है
कुछ चीजें हैं जो व्यवस्था में ज़रूरी होती हैं
और मैं क्या सब इसी व्यापार को निभाते हैं
कुछ हैं एक आध जो कभी कभी
राजधानी की सड़कों पर आते हैं
फिर क्या होता है...

ये तो सब को पता होता है
दोष हर किसी का होता है
ईमानदारी, सत्य और निष्ठा 
ये कसौटी तो सब चाहते हैं
लेकिन ख़ुद के अलावा 
सब कसौटी पर तोले जाते हैं
फिर क्या होता है...

फिर सड़कों पर जनता आती है
कभी शांत तो कभी उग्र हो जाती है
हमारी तो सब करतूतें माफ़ हैं
भीड़ में किस किस की शक्लें साफ हैं
अब कौन पहचानेगा
बसों में आग, सड़कों पर मार काट
मांगे पूरी होंगी जब होंगी तब होंगी
इसी बीच कितनी मांगे उजड़ चुकी होंगी
किसी ने बताया था 
कोई देश है जहां हड़तालें शांति से होती हैं,
हमारी बाजुओं पर काला कपड़ा होता है और
सरकारें दहल जाती हैं
ख्याल काल्पनिक हो तब भी अच्छा है
अगर ये सच्चा हो तब कितना अच्छा है
अब सोचा मैंने...

मैं आम नागरिक
दोष सरकारों को दूं, हुक्मरानों को दूं या ख़ुद को 
अब हर कोई तो अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाता
और फिर
व्यवहार शिष्टाचार भी बीच में है आता
नहीं तो नागरिक ही नागरिक को समझाता
लेकिन अधिकतर तो 
मैं यही हूं चाहता 
क्यों नहीं सब काम सरकार के जिम्मे आता
और मैं...मैं तो आम नागरिक हूं
कभी सरकारें कहती हैं मैं तो सरकार हूं
दोनों को मिलना होगा, तभी तरक्की का साथ चलना होगा
वरना कुछ नहीं बस रोज़ का धरना होगा....

मंगलवार, 12 मई 2020

मेरा साथी

एक रोज़ सफ़र में एक साथी मिला
बिन कुछ कहे मीलों तक चला

राह में एक मोड़ पर मैंने पूंछा
मेरा सफ़र लंबा है कहां तक आओगी

धूप भी तेज़ है
कब तक ख़ुद को तपाओगी

मैं तो पैदल हूं 
और मंज़िल का भी पता नहीं
रास्ते संकरे हैं
कंटक भरे

तुम कमल सी कोमल हो
शिशु सी नाज़ुक

कब तक ख़ुद को जलाओगी
इन तेज़ गर्म हवाओं में बीमार हो जाओगी

देखो मुसाफ़िर और भी हैं राहों में
जो अपनी राहें तुम्हारे लिए बिछादेंगे

तुम नज़र घुमाओगी और ये 
इन राहों पर ही जाम लगा देंगे

पहले वो थोड़ा झल्लाई
उसके तपते लाल चेहरे से घुर्राई

मुझे लगा की अब चिल्लाई
पर वो होले से मुसकाई
और बोली...
पगलू हो तुम कौन तुम्हे समझाए
साथ तुम्हारा अच्छा है ये मुसाफ़िर मुझको भाए

क्यों हर बार तुम यही राग सुनाते हो
कुछ दूर चलते ही फिर शुरू हो जाते हो

खुशियों का साथ तुम को भाता नहीं है क्या
साथी से बात कैसे करते है, ये भी तुमको आता नहीं है हां

अबकी कुछ बोला तो सच में गुस्सा हो जाऊंगी
लेकिन खुश ना होना चिपक हूं मैं छोड़ कर नहीं जाऊंगी

चलो अब तुमको इन रास्तों पर ऐसे ही सताऊंगी
रास्ता लंबा हुआ तो क्या मुझसे पीछा छुड़ाओगे

कहां तक तुम जाओगे 
कब तक पीछा छुड़ाओगे

मैं तो साथ ही आऊंगी
मैं तो साथ ही आऊंगी...

रविवार, 10 मई 2020

Maa

पहली दफा सुना होगा जब 
इस संसार के शोर को
ज़रूर सहम गया होंगा मैं
तुम्हारी कोख में,
ज़रूर तुमने हाथ फिरा कर कहा होगा
डर मत मेरे बहादुर बच्चे
तू सुरक्षित है हर ख़तरे से मेरी कोख में,

लेकिन जब इस दुनिया में आया
डर से रोता हुआ
तुमने अपने सीने से लगाया
और कहा चुप होजा मेरे बच्चे क्यों रोता है
मैं हूं,
तुझे बलशाली बनाऊंगी
तेरे साए में बड़ा हुआ
तू ने बोलना सिखाया,
उंगली पकड़ कर चलना सिखाया,
उस उंगली को जिस दिन तुम ने छुड़ाया
याद है बहुत रोया था मैं स्कूल के पहले दिन
डर से क्या क्या सोचा था मैंने
तुमने शाम को गले से लगाया
हर मोड़ पर लड़ना सिखाया

मेरी हर जीत की खुशी को 
तुमने मुझ से ज़्यादा मनाया
जब पहली बार मैं बोला, चला, और दौड़ा
जब कलेजे पर पत्थर रख कर 
तुमने मुझे स्कूल में छोड़ा
मेरी हर परीक्षा में हमेशा 
तुम पास और फेल होती हो मेरे साथ
चाहे स्कूल, कॉलेज हो या मेरा जीवन

जीवन तुमने दिया मुझे
लेकिन कभी अपना नहीं कहा उसे
शिक्षा, शक्ति और जीवन के मूल्य
सभी तो तुम्हारे हैं
आसान तो कतई नहीं रहा होगा मुझे संभालना
और अपने संस्कारों से मुझे पोषित करना
हर पांच कदम की दूरी पर मुझे गोदी लेना
और फिर मीलों का सफ़र पैदल तय करना
मैं तो आज भी इस संसार से भय खाता हूं
सुरक्षित स्वयं को सिर्फ तुम्हारी गोदी में पाता हूं
जब तुम मेरे सिर पर उतने ही प्यार से
हाथ फिरा कर मुझे सुलाती हो
जब पहली दफा डरा था 
और तुमने मुझे बहादुर बच्चा कहा था
नींद तो तुम्हारी गोद में ही आती है
जो सारी चिंताओं से पल भर में मुक्ति दिलाती है।

मंगलवार, 5 मई 2020

अंतर लॉ

जब चारों ओर अंधेरा हो
बस एक छोटे से दिए का सवेरा हो
हवा भी आएगी 
हिम्मत भी घबराएगी
तू उस दिए की लॉ को बचाना
तेरी लॉ ही तुझ को मंज़िल तक ले जाएगी
आसान है अपनी लॉ को बुझाना
और अंधकार में मिल जाना
निश्चित ही अंधकार चहूं ओर है
अभी भोर का सवेरा भी दूर है

लेकिन उस लॉ को छूना 
अनंत अंधकार के लिए भी सम्भव नहीं
इसलिए छलने का प्रयत्न करता है अंधकार
तेरी जीत की संभावनाएं हैं अपार
बस अंधकार का कर तिरस्कार 
अपनी अंतर लॉ से कर प्रहार
अपनी अंतर लॉ से कर प्रहार 
    

चमन चतुर

  चमन चतुर Synopsis चमन और चतुर दोनों बहुत गहरे दोस्त हैं, और दोनों ही एक्टर बनना चाहते हैं. चमन और चतुर जहां भी जाते हैं, वहां कुछ न कु...