गुरुवार, 11 नवंबर 2021

ज़मीर

 ॐ श्री गणेशाय नमः

Screenplay

ज़मीर


Written By

Bhishak Mohan Sharma

bhishakmohan@gmail.com

9999401648




1. INT. A DARK ROOM, Day


(एक आदमी वाईट शर्ट ब्लैक पेंट में एक चेयर से बंधा है, बेशोह है, कोई ज़ोरदार पानी उसके चेहरे पर मरता है)


( पानी से Mr. MJ की बेहोशी टूटती है, थोड़ी सी आंखें खोल कर ऊपर देखता है)


(कैमरा सिर्फ एम जे को ही रिकॉर्ड के रहा है अभी)


एमजे: तुम...?

ज़मीर: तुम को क्या लगा था, इतने सालों की क़ैद और तुम्हारी मनमानी से में मर जाऊंगा?

एमजे: नहीं, तुम गलत समझ रहे हो

ज़मीर: समझ तो मुझे तब ही जाना चाहिए था, जब तुमने मुझे पहली बार मारने की कोशिश की थी, पर तब लगा की कर ही क्या सकते हो, यह काम ले चुके हो, ज़बान से फिर नहीं सकते।

लेकिन बाद में तो ये तुम्हारी आदत हो गई!

इसलिए वकील बने थे तुम?

एमजे: देखो हम आराम से भी बात कर सकते हैं...Man to Man talk?

ज़मीर: मेरी शक्ल पर चूतिया लिखा है? की मैं तुझे खोलूं और तू मुझ पर हमला कर दे?

एमजे: नहीं तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो, तुम को क्यों मरूंगा मैं?

ज़मीर: (एक ज़ोरदार तमाचा एमजे के चेहरे पर मरता है)

झूठ से सख़्त नफ़रत है मुझे!

(एमजे गुस्से से आग बबूला हो कर ज़मीर की तरफ़ देखता है) 

(अब कैमरा ज़मीर को एमजे के (आई एंगल) लो एंगल से रिकॉर्ड करेगा, ज़मीर एमजे का हम शक्ल है, उसका आधा चेहरा जला हुआ है)

(ज़मीर उसकी आंखों में आंखें डाल कर, जले चेहरे से मुस्कुराते हुए देखता है, फिर जोर से उसके ऊपर दहाड़ता है, फिर हंसने लगता है)

ज़मीर: देख क्या रहे हो, यह मैं नहीं तुम हो।

जितनी ही बार तुम ने मेरे खिलाफ़ जा कर काम किया, हर बार तुम ने अपनी रूह को जलाया, मुझे जलाया।

अपनी आत्मा पर एक कला दाग लगाया...


याद है उस बूढ़ी औरत का चेहरा, जो लगातार तुम से, उस जज से, उन गवाहों से मदद मांग रही थी?

इंसाफ मिलेगा इस उम्मीद में, कचहरी में आई थी, भारत के संविधान पर भरोसा करके।

लेकिन तुम्हारे जैसे लालचखोरों की वजह से उस बुढ़िया की तरह हर बार भारत माता खून के आंसू रोती है।

एमजे: नहीं तुम सही कहते हो, मेरे से गलती हुई है मुझे पछतावा है।

अब खोल दो मुझे?

ज़मीर: (एक चांटा और मारते हुए) फिर झूंठ, तुम क्यों भूल जाते हो की मैं तुम्हारा ही हिस्सा हूं, 

एमजे: हां तो क्या हुआ...?, इस दुनिया में इतने सारे वकील हैं, जज हैं, इंजीनियर है, डॉक्टर हैं, घूसखोर अधिकारी हैं!

उनके पास जा! मेरे पास क्यों आता है।

ज़मीर: क्योंकि मैं तुम्हारा ज़मीर हूं ?

एमजे: तो मैं क्या करूं? वकील हूं मैं। मेरा पेशा है, गलत को सही और सही को गलत साबित करना? 

ज़मीर: और जज को गुमराह करना, बेगुनाह को सजा दिलवाना, गुनहगारों को बचाना?

एमजे: कौन क्या है? इसका फैसला करने के लिए जज हैं, मेरा जो काम है मैं वो करता हूं...केस लड़ता हूं

ज़मीर: तो हर बार किसी गलत आदमी को जिताने के बाद गरीबों को खाना क्यों खिलाते हो,

अपने ऊपर वाले से माफ़ी क्यों मांगते हो?

एमजे: मन करता है तो खिलाता हूं?

एमजे: तुम मुझे एक बात बताओ, ये तुम्हारे अन्दर बड़ी खुजली है, जो हर बार जाग जाते हो, और इस बार मुझे बांध कर रखा हुआ है, जान से मारने का इरादा है क्या?

ज़मीर: काश मैं ऐसा कर पाता?

एमजे: पर क्यों?, और भी तो लोग है दुनिया में, लेकिन मेरा ही ज़मीर क्यों मुझ से सवाल करता है?

ज़मीर: क्योंकि मैं तुम्हारे अंदर ज़िंदा रहना चाहता हूं, और तुम को भी जिंदा रखना चाहता हूं।

एमजे: अरे मुझे नहीं रहना तुम्हारे साथ ज़िंदा? कोशिश की थी शुरू में हमने, बात नहीं बनी न, भुखमरी में मारने की हालत हो गई थी, और कौन सही है कौन गलत के फेर में पड़ कर मेरा पेशा तो कभी नहीं चल सकता, सारी दुनिया ऐसी है मैं कोई अकेला नहीं हूं।

ज़मीर: पर अब तो तुम वापिस पहले वाले एमजे बन सकते हो, जो सच्चे लोगों के केस लेता था।

एमजे: फिर से सड़क पर आने के लिए, उधारी में जीने के लिए, अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में पढ़ाऊंगा।

ज़मीर: तुम ने कभी सोचा है जिन लोगों को तुम आज़ाद करवाते हो, वो समाज के लिए गटर के कीड़ों से भी भयानक हैं, भेड़ियों से भी खतरनाक हैं।

एमजे: मुझे समाज से कुछ लेना देना नहीं है, Be practical आज का समाज सिद्धांत विद्धांत नहीं पैसा देखता है, इज़्ज़त करता है यह समाज मेरी।

ज़मीर: अगर सभी ऐसा सोचने लगेंगे तो सोचो कैसे रहोगे इस दुनिया में तुम

एमजे: सब ऐसा ही सोचते हैं

ज़मीर: सब ऐसा नहीं सोचते एमजे, अगर सब ऐसा सोचते होते, तो तुम्हारी बेटी रोज स्कूल से घर सही सलामत नहीं आजाती, तुम्हारी बीवी इतनी आज़ादी से लेट नाइट सेफ घर नहीं आ पाती।

एमजे: बस करो, इस सब के बीच में मेरे परिवार को मत लाओ।

ज़मीर: तुम्हारा क्या एमजे, इस सब के बीच में सभी का परिवार आता है।

ज़मीर: जो सड़क डेह जाती है, जो पुल टूट जाता है, उस पर तुम्हारी बीवी भी घर जाती है, और उसी पर तुम्हारी बेटी भी?

एमजे: बस करो ज़मीर, अब तुम लाइन क्रॉस कर रहे हो!

ज़मीर: तुम घूसखोरों को, कानून का उलंघन करने वालों को तुम बचाते हो, और कानून की बाजू बनने की बजाय उसे कमज़ोर करते हो, कभी सोचा है, वो कानून मजबूत रहेगा तभी तुम्हारा परिवार और समाज सुरक्षित रहेगा।

नहीं तो क्या पता समाज का कोई भेड़िया किसी दिन कानून की जंजीर तोड़ कर तुम्हारे ही घर पर हमला कर दे, तुम्हारी बीवी और बेटी को...

(इतना बोलते ही, एमजे कुर्सी से छूट कर ज़मीर पर टूट पड़ता है)

एमजे: (बोलते बोलते ज़मीर को मारता जाता है, और जान से मारने की हद्द तक पीटता है)

बोल रहा हूं, बस कर बस कर, फैमिली को बीच में मत ला, मार दूंगा जान से, मार दूंगा, मार दूंगा...( ज़मीर अधमरा सा हो गया है) मार दिया साले को...मार दिया...



2. INT. BED ROOM, NIGHT

एमजे: (बिस्तर पर बीवी के साथ लेटा है, नींद में, पसीने से तर बडबडा रहा है) मार दिया, मार दिया साले को, अब नहीं बोलेगा

बीवी:(नींद से जागते हुए) एमजे, क्या हुआ? किसे मार दिया।

एमजे:( बीवी को देखता है) तुम ठीक हो?

बीवी: तुम काम का ज्यादा स्ट्रेस मत लिया करो,आज कल ये क्रिमिनल्स के केस ज्यादा लेने लगे हो तुम, इधर आओ, कोई बुरा सपना देखा है तुम ने..

बीवी: (एमजे को गले से लगाती है)

(एमजे उसके गले लगता है, अंधेरे में पीछे दीवार के पास फोकस करता है, देखता है, उसका ज़मीर आधे जले चेहरे के साथ खड़ा है)

(एमजे पलक झपकाता है, ज़मीर एक सेकेंड में उसके नज़दीक आ जाता है: स्क्रीन ऑफ,)

वाइस ओवर: तुम मुझे नहीं मार सकते


टाइटल: ज़मीर

नंबरिंग

The End

सोमवार, 18 अक्टूबर 2021

चोर की मौत

हमारा नाम है गोपी मास्टर उंगलियों का जादूगर हूं मैं कैसे? चलते-चलते पैसे कमा लेता हूं, आदमियों की जेब, औरतों का पर्स, मेरी नजर से कुछ नहीं छुपता। अब तुम कहोगे कि मैं चोर हूं...तो जो आप मुझसे बचकर निकल भी जाएंगे तो इन साहूकार व्हाइट कॉलर, सूट-बूट कुर्ता पजामा पहने लोगों से कैसे बचेंगे इनमें और मुझ में बस इतना फर्क है कि जब यह आपके गली-मोहल्ले से गुजरते हैं तो आप उनके सामने सलाम ठोकते हैं और जब मैं आपके सामने पढ़ता हूं तो आप मुझे सिर्फ ठोकते हैं। रहने दो, अब आगे कहूंगा तो बुरा लग जाएगा... फर्क बस इतना है कि यह पढ़े लिखे पर्दे के पीछे के चोर हैं और मैं खुलेआम सामने चोरी करता हूं। सही-गलत के फर्क में मैं कभी पढ़ा नहीं मां-बाप का प्यार मुझे कभी मिला नहीं और स्कूल कभी गया नहीं



पिछले हफ्ते एक बुढ़िया को रोड क्रॉस कराया और उसका मेहनताना उसके पास से ले लिया, इतना बुरा भी नहीं हूं मैं ₹50 उसके पास में छोड़ दिए और मैं वहां से फरार।
कुछ रोज बाद मैंने उस बुढ़िया को सड़क के पास फटे हाल लोगों से खाना मांगते हुए देखा, पिछले हफ्ते ही तो जब उसे देखा था तो एकदम भली चंगी अच्छे घर की लग रही थी आज देखा तो बस ऐसा लगा कि शायद इसे पहचानता हूं थोड़ी देर बाद समझ आया कि यह तो वही बढ़िया है जिससे मेहनताना लिया था। मेरे पैरों के नीचे से जमीन सरक गई कुछ आसपास के लोगों से पूछा तो पता चला दिल्ली गेट के एक हॉस्पिटल में इसका लड़का एडमिट था तकरीबन 1 हफ्ते पहले इन्हीं लोगों से शाम के वक्त रो-रो कर 1800 ₹ मांग रही थी। 
बोल रही थी 'मेरे बेटे के लिए इंजेक्शन खरीदना है कोई कुछ पैसे दे दो नहीं तो मर जाएगा, मैं कल ला कर लौटा दूंगी, मेरे पास पैसे थे लेकिन किसी ने चोरी कर लिए', 
लोगों को ऐसा लगा जैसे भगवान टॉकीज पर 10-20 रुपए मांगने वाले ठोंग कर रहे होते हैं, की कोई भैया 10 रुपए दे दो, 20 रुपए दे दो, घर जाना है जेब कट गई है, ये बुढ़िया भी वैसे ही ढोंग कर रही है। तब किसी ने उसकी मदद नहीं की, लेकिन अगली सुबह उसके बेटे की मौत पता चला तब लोगों को यकीन हुआ, लोगों ने बताया कि बुढ़िया उसके बाद से घर ही नहीं गई, उसके परिवार में शायद बस एक बेटा ही था उसका, उसके बाद से बस अस्पताल के सामने बैठी रही तीन चार रोज़ तक। फिर इसकी जानवरों से भी बदतर हालत हो गई।
   मैंने एक दौना बेड़ई कचौड़ी खरीदी हमारे आगरा मथुरा सुबह का नाश्ता है यह, वो दौना लेकर में उस बुढ़िया के पास गया, हाथ आगे किया, खा लो माई मैं कहने ही वाला था की उसने मेरा बढ़ा हुआ हाथ उसकी ओर देखा और लपक के दोनों हाथों से दौना छीन लिया और खाने लगी। वो अपने बेटे की मौत से अपनी सुध बुध खो चुकी थी उसे खाते देख कर कोई यकीन ही नहीं कर सकता था की यह वही बुढ़िया है जो कुछ रोज़ पहले इतनी अमीर दिख रही थी। मैं उसे अपने साथ अपने कमरे पर ले आया। उसकी हालत देखकर अंदर से फूट-फूट कर रो रहा था बस वह आंसू आंखों से बाहर नहीं आ रहे थे। अब वो मेरे साथ ही रहती है और मैं अब चोरी नहीं करता मेहनत करता हूं। मेरी चोरी की वजह से एक मौत ने मेरे उस ज़मीर को ज़िंदा कर दिया जिसको में जनता भी नहीं था। लेकिन इन सफेदपोशों, air कंडीशन कमरों में बैठे मेहनतकशत लोगों की वजह से जो हजारों मौतें होती हैं उसका इन पर शायद कोई प्रभाव नहीं पड़ता, इनका ज़मीर कभी नहीं पलटता। मेरी जिंदगी का पहला खाना मुझे जो याद है, मैंने चोरी से खाया था लेकिन यह तय है कि मेरी मौत चोरी के खाने से नहीं होगी। उस बुढ़िया के बेटे की मौत के साथ मेरे अंदर के चोर की भी मौत हो गई।

रविवार, 5 सितंबर 2021

शिक्षक जो राह दिखाए

जीवन की राह में जो मार्ग दिखाए
सही गलत की जो पहचान कराए
शिक्षा से जीवन में प्रकाश जगाए
अपने नैतिक ज्ञान से 
जो जनमानस को सिंचता जाए,

स्वहित से परे जो सर्वप्रथम 
राष्ट्रहित सिखाए
वही जो तुम को
सत्यमेव जयते का पढ़ाए,

तिनका तिनका मानस से
वो राष्ट्र निर्माण करता जाए
संपूण जीवन जिसने केवल बांटा
जननी के बाद
जिसने तुम्हारे अवगुणों को छांटा,

सम्पूर्ण ब्रह्मांड में न कोई कर पाया, 
एक मात्र आचार्य हैं वो
जिसने अपने ज्ञान से संसार सजाया
जिसने अपने ज्ञान से संसार सजाया...

रविवार, 22 अगस्त 2021

मेरे पड़ोस में

मेरे पड़ोस में 
एक मकान छोड़ कर दूसरे मकान में
मुहम्मद अली उस्बेक का मकान है
मुहल्ले में मेरे कई कौमों के कई मकान हैं
अली की मुहल्ले में एक छोटी-सी दुकान है
उसके अब्बा-अम्मी, चार भाई शादी-शुदा,
चार बहनें कुंवारी, एक बीवी और बाक़ी औलादें हैं

माली हालत उसकी थोड़ी ख़ाली थी
नदी के उस पार चचा एंथोनी ने 
उसके घर की कश्ती संभाली थी,
घर का राशन, अस्पताली इलाज़ 
और चौथ वसूली वालों से 
चचा को सुरक्षा दिलानी थी

सेवादार थे 
अली के दो भाई, एक बीवी चचा के यहां
हमारे शहर में चचा का एक रुतबा है,
कई संस्थाएं हैं चचा की इन वसूलीदारों के खिलाफ

एक रोज़ वसूलीदार मुहम्मद अली उस्बेक के 
घर में घुस आए,
अली का बाप, जिसकी जिम्मेदारी थी घर को बचाना,
परिवार के लिए जरूरत पड़े तो मिट जाना,
वो छत छलांगता दूसरों के मकानों में 
छिपता नज़र आता है

मुहम्मद को चचा का भरोसा था कि चचा आयेंगे
लेकिन चचा का एक संदेशा आया
बच्चा वसूलीदाराें ने तुम्हारा घर है हथियाया
अब तुम को खुद ही लड़ना होगा 
नहीं तो उनके सामने सरेंडर करना होगा

दाने-दाने को मोहताज अली का परिवार,
बूढ़ी मां देखती है 
अपनी औलादों का नरसंहार
घर के कुछ मर्दों ने घोल दी अपनी खुद्दारी 
कुछ ने अपनी जान गवां दी बेचारी

उस्बेक ने एक परिंदे के पैरों में लंगर लटकाया,
आसमान में भर के उड़ान 
भाग निकलने का सपना सजाया,
बीच सफ़र में कहीं उसका हाथ छूटा 
नीचे जमीन पर गिरा वो 
जिंदगी से उसका साथ छूटा


वसूलीदारों ने मुहल्ले में विश्वास दिखाया
कहा घर चाहिए हमें ये
अब इसको हम पहले से बेहतर चलाएंगे
कुछ न कहेंगे इन औरतों को 
बस अपनी बात मनवायेंगे

मुहल्ले के भी कुछ घरों से आवाज़ आई
कोई बात नहीं भाई 
ये घर तो एक गुलाम था
तुमने इसे हथिया कर इसे आज़ादी है दिलाई
उस घर में औरतों को नोचा जा रहा था
मासूम बच्चियों को भी दबोचा जा रहा था
चीखों से सारा मोहल्ला देहला जा रहा था
मेरे और कुछ बाक़ी के घरों में भी बैचेनी थी
बच्चों के आंसू भी अब मकान से बाहर 
लाल रंग में 
बहते नज़र आते थे

लेकिन कुछ पड़ोसी थे जो अब भी 
उस मकान का मज़ाक उड़ा रहे थे,

उनके दर्द से मुहल्ले की दीवारें भी रो रहीं थीं,
दीवारों में दरारें थी मोहल्ले की
रात और दिन उस मकान से निकलती 
औरतों की चीखें थी,

मुहल्ले के कई घरों में 
अली के मकान की चिंता थी,
जिन-जिन को नहीं है हो सकता है 
कल उनके मकानों से भी वही चीखें न आएं, 
खैर ऐसा कभी न हो 

लेकिन
अब उस घर की कमज़ोर औरतों ने 
मुंह खोला था
साफ लफ्जों में खुल कर बोला था
मौत दो एक बार मंज़ूर है हमें,
तुम्हारी गुलामी में रोज़ नहीं मरना है
ये घर मेरा है
अब इसी में लड़ना है, 
इसी में मरना है

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

हेयर कट

साला कान पर से टोपा हटाता तब सुनाई देता ना, 
उसे चार बार बोला था 
'बाल छोटे मत करियो' 
एक बार तो उसके बॉस ने भी कह दिया 
भईया बाल बड़े रखते हैं छोटे मत करियो, जैसे कह रहे हैं वैसे ही करियो, 
साला पता नहीं क्या नशा करके बैठा था, कैंची ली और गुद्दी पर से कट...एक सेकंड में साला चार शॉट मार गया कच-कच-कच-कच, मैंने फिर कहा 'भाई छोटे नहीं करने हैं'
तो कहता है, 'नहीं भैया बस कर्ली बाल हटा रहा हूं'
फिर साला चार शॉट मार गया
कच-कच-कच-कच, 
मैंने कहा 'रुक जा, रुक जा काका रुक जा, कान पर से टोपा हटा और रुक जा' 
लेकिन क्या फायदा? तब तक तो भाई साहब बाल छोटे कर चुके थे। 
क्या फायदा?
इतने सालों से मेंटेन किया हुआ लुक, उस लॉलीपॉप-सी शक्ल वाले ने कर दिया खराब, फिर बाद में जैसे-तैसे सेट करवा कर यह ऊपर के चांद के बाल बचाये हैं, जो आपको यह मेरे सिर पर खड़े घौंसले जैसे दिखाई दे रहे हैं, उसके बॉस शंकर ने ही सेट किए थे। 

कहता है, 'भैया इसमें बड़े डीसेंट लग रहे हो'

दिल मैं आया एक झापड़ खींच कर दूं, 
'अबे लॉलीपॉप, तेरे चूज़े जैसे चेले ने मेरे इतने सालों का मेंटेन किया हुआ लुक खराब कर दिया... पैसे तो पूरे लेगा तू लपड़ झन्ने...
बहरहाल हम अपने नए लुक के साथ कॉलेज पहुंचे, ऐसा रिस्पांस तो हमें कभी नहीं मिला था, जिसे देखो वह कन्या हमारे विषय में वार्तालाप कर रही थी...

और फिर आई हमारे दिल की धड़कन...
वह सामने आती है तो बसंत ऋतु का आगमन हो जाता है, पेड़ों से पत्ते झड़ने लगते हैं...हवाएं चलने लगती हैं...और जैसा बॉलीवुड फिल्मों में होता है, गिटार और वायलिन बजने लगते हैं, वैसे ही मेरे दिल की धड़कन भी गिटार की स्ट्रिंग्स की तरह बजने लगती हैं
तिडिंग-तिडिंग-तिंग-तिंग-तिंग,
तिडिंग-तिडिंग-तिंग-तिंग-तिंग...

इतने सारे शोर के बीच उसने हल्के-से धीरे-से अपनी मधुर आवाज में कहा
'सुनो अच्छे लग रहे हो', 
'आय-हाय...अब तो तय कर लिया है, हेयर स्टाइल हमारा यही रहेगा... वैसे इतने बुरे भी नहीं काटे हैं, हमने अपने मोटरसाइकिल के शीशे में बालों को देखा...अरे ठीक नहीं बहुत अच्छे हैं।
चलिए अभी निकलते हैं, मैडम को ज़रा छोड़ कर आना है...
फिर मिलेंगे.

गुरुवार, 27 मई 2021

पीले दुपट्टे वाली

101...102...103...104...105... हाह...आज इससे ज्यादा नहीं हो पाएंगी,
हे बजरंगबली अपने भक्त की मदद करो!
क्या कमी रह गई मेरी श्रद्धा भक्ति में? 
बराबर तुम्हारी पूजा करता हूं, 
रोज़ बिलानागा सुबह 4:30 बजे उठ कर बराबर बर्जिस करता हूं,
इस ब्रज में कनहिया जी की धरती पर मैं तुम्हारा भक्त...
लेकिन फिर भी सौ से ज्यादा दंड नहीं मार पाता हूं,
क्यों प्रभु...क्यों? 
सक्ति दो प्रभु!
सक्ति दो!
.
.
.
ऐसा ही मगन मैं उस दिन अपनी बर्जिस में था। अपने बजरंगबली से बात कर रहा था, तभी पता नहीं कहां से हवा में उड़ता हुआ दुपट्टा मेरे ऊपर आकर गिर गया। ऐसी खुसबू तो मैंने आज तक नहीं सूंघी थी... अच्छा लगा पल भर के लिए, 
आहा, हा हा हा
तभी अचानक पता चला,
साला अपराध हो गया, हमसे तो घोर पाप हो गया!
ऊपर छज्जे से मौसी चिल्ला कर बोली, 
'अरे ओह पहलवान, जरा यह दुपट्टा तो ऊपर फेंकियो'  
हम तो एकदम सकपका गए... हमने दुपट्टे को गोल-मोल, गद-मद किया और जैसे ही ऊपर देखा, हाय... जिंदगी में पहली दफा हमारे मुंह से अंग्रेजी निकली...ओ-माय-गॉड...पीले दुपट्टे वाली कन्या मौसी के पीछे पीले सूट में खड़ी थी! 
अरे हम तो अटक गए।
मौसी फिर बोली, 
'अरे फेंक पहलवान, कैसे बुत बन कर खड़ा है' 
हमने दुपट्टा तुरंत ऊपर फेंका, ससुर मौसी की उंगलियों से छुलते-छुलते रह गया... हवा चली, फिर ऊपर आकर गिर गया, दुपट्टा हमारे चेहरे पर ऐसे गिरा जैसे हिमालय के पहाड़ों पर बर्फ़, आहा...हा...हा...हा...
ऐसा लगा जैसे किसी ठोस पत्थर पर सूरजमुखी का फूल उग आया हो। 
तभी अचानक मुंह से निकला, 
"जय बजरंगबली की" और हमें समझ आया कि ये तो हमारा धर्मांतरण होने जा रहा था! हम बजरंगबली के भक्त, श्री कृष्ण के मोहन रूप में प्रवेश होने जा रहे थे।
हमने तुरंत दुपट्टे को चेहरे से दूर किया, गद-मद किया, एक कस कर गांठ मारी और सीधा मौसी के मुंह पर निशाना लगा कर फेंक दिया।
बड़ा अपराध बोध फील हो रहा था।
हमने बजरंगबली से माफी मांगी और लगे दंड पेलने और पता ही नहीं चला, कब पेलते-पेलते हम दो सौ के पार हो गए, इतने दिन से सौ के पार करने की कोशिश कर रहे थे और आज एक सांस में दो सौ दंड मार लिए!
सोचने लगे पहले सौ और अब दो, बराबर हुए तीन सौ... वाह प्रभु वाह.. प्रभु हमसे नाराज नहीं हैं। 
अब ये दुपट्टे की शक्ति थी या बजरंगबली की भक्ति... नहीं बजरंगबली की भक्ति तो थी ही।
सोच रहे हैं कल भी दुपट्टा गिर जाए तो क्या पता 500 के पार हो जाए... हम बड़े प्रसन्न घर पहुंचे,

अम्मा ने कहा,
'लाला बाहर बरामदे में मिलबे बाए आए हैं, जाकर नेक बैठ जा बिन के बीच' 
और हम आज्ञाकारी भीम जाकर बैठ गए बरामदे में,
हाय... देखा पीले दुपट्टे वाली कन्या बैठी है हमारे सामने...
हमाए घर में, हमाए खिलाफ साजिस,
लेकिन इस साजिस का हम सिकार होना चाहते थे...

चमन चतुर

  चमन चतुर Synopsis चमन और चतुर दोनों बहुत गहरे दोस्त हैं, और दोनों ही एक्टर बनना चाहते हैं. चमन और चतुर जहां भी जाते हैं, वहां कुछ न कु...