रविवार, 22 अगस्त 2021

मेरे पड़ोस में

मेरे पड़ोस में 
एक मकान छोड़ कर दूसरे मकान में
मुहम्मद अली उस्बेक का मकान है
मुहल्ले में मेरे कई कौमों के कई मकान हैं
अली की मुहल्ले में एक छोटी-सी दुकान है
उसके अब्बा-अम्मी, चार भाई शादी-शुदा,
चार बहनें कुंवारी, एक बीवी और बाक़ी औलादें हैं

माली हालत उसकी थोड़ी ख़ाली थी
नदी के उस पार चचा एंथोनी ने 
उसके घर की कश्ती संभाली थी,
घर का राशन, अस्पताली इलाज़ 
और चौथ वसूली वालों से 
चचा को सुरक्षा दिलानी थी

सेवादार थे 
अली के दो भाई, एक बीवी चचा के यहां
हमारे शहर में चचा का एक रुतबा है,
कई संस्थाएं हैं चचा की इन वसूलीदारों के खिलाफ

एक रोज़ वसूलीदार मुहम्मद अली उस्बेक के 
घर में घुस आए,
अली का बाप, जिसकी जिम्मेदारी थी घर को बचाना,
परिवार के लिए जरूरत पड़े तो मिट जाना,
वो छत छलांगता दूसरों के मकानों में 
छिपता नज़र आता है

मुहम्मद को चचा का भरोसा था कि चचा आयेंगे
लेकिन चचा का एक संदेशा आया
बच्चा वसूलीदाराें ने तुम्हारा घर है हथियाया
अब तुम को खुद ही लड़ना होगा 
नहीं तो उनके सामने सरेंडर करना होगा

दाने-दाने को मोहताज अली का परिवार,
बूढ़ी मां देखती है 
अपनी औलादों का नरसंहार
घर के कुछ मर्दों ने घोल दी अपनी खुद्दारी 
कुछ ने अपनी जान गवां दी बेचारी

उस्बेक ने एक परिंदे के पैरों में लंगर लटकाया,
आसमान में भर के उड़ान 
भाग निकलने का सपना सजाया,
बीच सफ़र में कहीं उसका हाथ छूटा 
नीचे जमीन पर गिरा वो 
जिंदगी से उसका साथ छूटा


वसूलीदारों ने मुहल्ले में विश्वास दिखाया
कहा घर चाहिए हमें ये
अब इसको हम पहले से बेहतर चलाएंगे
कुछ न कहेंगे इन औरतों को 
बस अपनी बात मनवायेंगे

मुहल्ले के भी कुछ घरों से आवाज़ आई
कोई बात नहीं भाई 
ये घर तो एक गुलाम था
तुमने इसे हथिया कर इसे आज़ादी है दिलाई
उस घर में औरतों को नोचा जा रहा था
मासूम बच्चियों को भी दबोचा जा रहा था
चीखों से सारा मोहल्ला देहला जा रहा था
मेरे और कुछ बाक़ी के घरों में भी बैचेनी थी
बच्चों के आंसू भी अब मकान से बाहर 
लाल रंग में 
बहते नज़र आते थे

लेकिन कुछ पड़ोसी थे जो अब भी 
उस मकान का मज़ाक उड़ा रहे थे,

उनके दर्द से मुहल्ले की दीवारें भी रो रहीं थीं,
दीवारों में दरारें थी मोहल्ले की
रात और दिन उस मकान से निकलती 
औरतों की चीखें थी,

मुहल्ले के कई घरों में 
अली के मकान की चिंता थी,
जिन-जिन को नहीं है हो सकता है 
कल उनके मकानों से भी वही चीखें न आएं, 
खैर ऐसा कभी न हो 

लेकिन
अब उस घर की कमज़ोर औरतों ने 
मुंह खोला था
साफ लफ्जों में खुल कर बोला था
मौत दो एक बार मंज़ूर है हमें,
तुम्हारी गुलामी में रोज़ नहीं मरना है
ये घर मेरा है
अब इसी में लड़ना है, 
इसी में मरना है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चमन चतुर

  चमन चतुर Synopsis चमन और चतुर दोनों बहुत गहरे दोस्त हैं, और दोनों ही एक्टर बनना चाहते हैं. चमन और चतुर जहां भी जाते हैं, वहां कुछ न कु...