मंगलवार, 23 दिसंबर 2014


सलाम...



कभी-कभी कई सवाल दिल और दिमाग में आते हैं। जब छोटे बच्चे होते हैं तब तो कई सवाल होते हैं लेकिन बड़े होते-होते ये भी खत्म हो जाते हैं। पहले कभी-कभी विचार आता था की जितने भी धर्म हैं वो एक टीम हैं और हर धर्म की जाती जो है वो उस टीम के खिलाडी खिलाड़ियों में सिर्फ रंग का फर्क है जो अलग अलग जात हैं, नही तो सब का मकसद एक ही है इंसानियत। ये सब बनाई हम सभी ने हैं अपने-अपने स्वार्थ के लिए, नही तो कौन-सा ऊपर वाला कोई ठप्पा लगा कर भेजता है। आज ऐसी ही एक फिल्म देखी पीके। राज कुमार हिरानी और अभिजीत जोशी द्वारा लिखित तथा  राजकुमार हिरानी दवारा निर्देशित। फिल्म में आमिर खान के सावल, हम सब को उनके सवालों के साथ कई जवाब भी देकर जाते हैं, जो शायद हमारी मदद कर सकते हैं हमारे समाज को और सुन्दर बनाने में। बहुत मुश्किल होता है अपनी मांन्यताओं के ऊपर उठ कर किसी बात को मानना और समझना लेकिन जो बात अच्छी लगे उसको काबुल भी करना चाहिए और शायद अब वक्त है इस सब से ऊपर सोचने का, ये सच है हम को उम्मीद चाहिए होती है लेकिन डर्र कि क्या ज़रूरत। सच में फिल्म में आमिर सर एक बच्चे कि तरह सवाल करते नज़र आते हैं और हर पहलु को समझाते हैं।  और सच में कुछ लोग रोंग नंबर लगाकर हमारी फिरकी भी लेते हैं।  ऐसी अधभुद सोच,लेखन, और दिखाने के तरीके को सलाम।

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

आवारा बचपन


     

ये खामोशी भी आवाज़ करती है,
क्यों हर एक आँख फ़रियाद करती है,
क्यों दिखता है किसी का बचपन लाचार,
कि बेबसी भी अब बस करने की फरियाद करती है,
क्यों नन्हे हाथों में मेहनत के छाले हैं,
क्यों बच्चे जो सब की आँखों के तारे हैं,
आज सड़कों  के अवारा पत्थर बेचारे हैं ... 


गुरुवार, 1 मई 2014

लक्ष्य

लक्ष्य 

लक्ष्य एक ऐसा शब्द है जिसके कानों मे पड़ते ही बेजान से बेजान व्यक्ति के बदन में सरसरी सी दौड जाती है। इंसान अपने लक्ष्य के प्रति जब तक संवेदनशील नही होता तब तक अपने लक्ष्य को पाना उसके लिये नामुमकिन होत है।  लक्ष्य जैसा कि शब्द से ही पता चलता है यदि  लक्ष्य में 'ल' हटा दिया जाये तो मात्रा क्ष्य रह जाता है। अर्थात व्यक्ति का क्ष्य नही उस के अंदर के उनसभी दोषों का क्ष्य जो उसे उसके लक्ष्य तक पहुँचने से रोकते है। उस के आराम का क्ष्य होजाता है उसके सभी शौक -मौज का क्ष्य होजाता है लक्ष्य मनुष्य को तब प्राप्त होता है जब वो उस के लक्ष्य के लिये रोता है , दुख सहता है , कुर्बानियां देता है। तब कहीं जाकर  लक्ष्य मनुष्य को प्राप्त होता है। लक्ष्य मात्र एक शब्द नही है ,  लक्ष्य एक ताकत है , एक शक्ति है यदी आप रोज़ अपने लक्ष्य के बारे मे सोँचते हो , रोज़ २४ घंटे अपने  लक्ष्य को पाने के लिये लालायित रहते हो आप के सभी प्रयास जितने भी हों सभी आप के  लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये हों , सभी आप को पल - पल आप के  लक्ष्य की ओर - और नज़दीक ले जायें। तभी लक्ष्य प्राप्त होता है। 



पत्रकारिता एवम जनसंचार 
छात्र -भिषाक मोहन शर्मा 

गुरुवार, 13 मार्च 2014

झूटे चेहरे

झूटे चेहरे 



कतारें  लम्बी हैं झूटे सारे चेहरे हैं 
इस झूटी दुनिया में हर चेहरे में राज़ कई गहरे हैं 
 दोस्त कई हैं पर मन में राज़ सबके गहरे हैं
जज़बात कि कमी है मन  काले,पीले गहरे हैं

दिल से सोचना गलती बन जाती हैं 
मतलबी है हर कोई यहाँ 
दोस्ती भी आज तो दिमाग से की जाती है
चेहरे पर जिस के हर तरह का नक़ाब है 
वही आज की फरेबी दुनिया में कामयाब है... 

                                                               B.M.S

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

ज़रा सब्र करो

ज़रा सब्र करो 

हंसते हैं लोग यहाँ मासूम की मासूमियत पर 
करते हैं सवाल उसकी मासूमियत पर 
एक चेहरे के पीछे राज़ कई है 
हर मुस्कराहट में मुखौटों के अंदाज़ कई हैं 
सवाल कई है आँखों में सबकी 
सबके अपने अपने जवाब कईहैं 
सवालों भरी आँखों के लिए मेरे भी जवाब कई हैं 
कहता हूँ सब से रुको ज़रा सब्र से
मेरे भी अंदाज़े बयाँ कई हैं 
वक्त एक सा सब का रहता नहीं है
क्या करूं मेरा खुद पर ज़ोर चलता नही है 
अब अंदाज़ बयाँ बदलता नही है...

बुधवार, 29 जनवरी 2014

आवश्कता है महिलाओं के प्रति मानसिकता में बदलाव की

       

नारी किसी भी समाज, धर्म, जाति समुदाय का एक बहुत ही मजबूत और अहम हिस्सा है। अगर आसान शब्दों कहें तो नारी एक आधारभूत स्तम्भ है। जी हाँ, नारी वह आधारभूत स्तम्भ है जो एक समाज़, श्रेष्ठ धर्म  श्रेष्ठ सामुदाय के निर्माण में सहायक होती है और  पुरुष जितना भी प्रयास करते है उसके पीछे प्रोत्साहन एक नारी का ही होता है। नारी एक माँ के रूप में जीना सिखाती है।  हमें ज़िंदगी के हर मोड़ पर हमारी परेशानियों से लड़ना और सर उठा कर समाज में चलना सिखाती है। एक बच्चा तो सिर्फ रोने की आवाज़ लेकर संसार में आता है लेकिन उस आवाज़ को एक अर्थ सिर्फ एक नारी ही माता के रूप में देती है। 
हम पुरुषों में बल तो होता है किन्तु उस बल को उसकी सही जगह पर उपयोग करना एक नारी ही बहिन के रूप में रक्षाबंधन का वचन लेकर ही करना सिखाती है और उसी तरह एक नारी ही सुख-दुःख, अमीरी-गरीबी में एक पुरुष का सदेव एक पत्नी और एक दोस्त के रूप में साथ निभाती है।  नारी की इन सभी खूबियों और बलिदान के चलते ही तो उसे भारतीय समाज में एक देवी का स्थान प्राप्त है। 
परन्तु फिर भी जब एक नारी की दयनीय स्थिति दिखती है, जब उस पर अत्यचार होते है, मानसिक और शरीरिक शोषण होता है, कुछ घरों में एक बहिन, बहु, बेटी ये  माँ को उचित स्थान सम्मान प्राप्त नही होता तो नारी को देवी बताने वाली सभी बातें बेमानी और सिर्फ सफ़ेद झूठ सी ही लगती है। 
जो पुरुष किसी नारी के गर्भ से ही जन्म लेता है उसी के अंग का एक हिस्सा होता है और वही  यह कहता है कि नारी को दबा कर रखना चाहिए उन में बुद्धि नही होती, नारी का अपना कोई अस्तित्व नही होता उनसे जाकर यदि कोई ये पूछे के यदि किसी नारी ने माता के रूप में आप को जन्म  दिया होता तो आप का क्या अस्तित्व होता?
वहीँ आश्चर्य ये जन कर  भी होता है कि एक नारी दूसरी नारी के प्रति हीन भावना की शिकार है  और कुछ महिलाएं पुरुषों द्वारा पीटे जाने  को उनके प्यार की शिददत का नाम देती है।  अर्थात फिर तो कोई पत्नी अपने पति से प्यार करती ही नही है, क्योंकि महिलाएं तो अपने पति को पीटती ही नही है। 
आज के वर्तमान समय में जब ऐसी बीमार और जकड़ी हुई मानसिकता का परिचय मिलता है तो आश्चर्य होता है। 
हमें लगता है कि ऐसी सोच मात्र कुछ रूडी वादी बुजुर्गों की ही होगी परन्तु आश्चर्य तो तब होता है जब आज के कुछ युवाओं की भी विचारधारा में ऐसी बीमार सोच का परिचय मिलता है। 
हमें लगता है कि वर्तमान में ही  महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा का ग्राफ बड़ा है लेकिन ऐसा नही है शायद ये सब पहले भी होता था परन्तु ऐसे मामले कुछ कारण वश सामने नही पाते थे। हद तो तब हो जाती है जब दोस्ती, भाई-बहिन और बाप-बेटी जेसे रिश्ते भी शर्मसार होते हुए और सहमे-सहमे से नज़र आते है। 
शायद इस की वजह एक ऐसी मानसिकता है जिस के अंतरगत महिलाओं को बराबरी का नही बल्कि दोयम दर्जे का समझा जाता है, और उसी मानसिकता के चलते कुछ लोग महिलाओं को एक भावनाओं से भरी इंसान kii  जगह उपभोग की कोई वास्तु समझते है, और कुछ लोग तो लड़कियों को बोझ मान कर कन्या भ्रूण हत्या जैसा घोर पाप पर कर बैठते है। परन्तु बिना नारी के हम किसी भी समाज कि कल्पना नही कर सकते। 
नारी प्रकृति के सबसे नजदीक होती है क्योंकि जो काम प्रकृति करती है जीवन देना वही काम करने की शक्ति नारी में होती है। हमें ज़रूरत है तो महिलाओं के प्रति अपनी सोच और विचारधारा बदलने की
हमारे जिन नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है उन के पुनः निर्माण कि आवश्यकता है। 
किसी व्यक्ति को विचार धारा उस के समाज, घर-परिवार स्कूल से ही प्राप्त होती है।
तो विचार धारा बदलाव कि शुरुआत भी घर और स्कूल  से ही होनी चाहिए। यदि घरों में बच्चों को नैतिक मूल्यों और महिलाओं का सम्मान सिखाया जाये विधालय के पाठ्यक्रम में नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहित किया जाये महिलाओं के प्रति छात्रों के विचार जानने का प्रयास किया जाये तो काफी हद तक किसी इंसान को अपराधी बंनने से रोका जा सकता है और एक महिला को शोषित होने से भी बचाया जा सकता है, और हमारा समाज एक बहुत बड़े कलंक से भी बच सकता है। 
             
                                                  जय हिन्द जय भारत। …  छात्र -  पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग 
                                                                                                      द्वितीय सेमिस्टर 
                                                                                          नाम - भिषाक मोहन शर्मा 

चमन चतुर

  चमन चतुर Synopsis चमन और चतुर दोनों बहुत गहरे दोस्त हैं, और दोनों ही एक्टर बनना चाहते हैं. चमन और चतुर जहां भी जाते हैं, वहां कुछ न कु...