लक्ष्य
लक्ष्य एक ऐसा शब्द है जिसके कानों मे पड़ते ही बेजान से बेजान व्यक्ति के बदन में सरसरी सी दौड जाती है। इंसान अपने लक्ष्य के प्रति जब तक संवेदनशील नही होता तब तक अपने लक्ष्य को पाना उसके लिये नामुमकिन होत है। लक्ष्य जैसा कि शब्द से ही पता चलता है यदि लक्ष्य में 'ल' हटा दिया जाये तो मात्रा क्ष्य रह जाता है। अर्थात व्यक्ति का क्ष्य नही उस के अंदर के उनसभी दोषों का क्ष्य जो उसे उसके लक्ष्य तक पहुँचने से रोकते है। उस के आराम का क्ष्य होजाता है उसके सभी शौक -मौज का क्ष्य होजाता है लक्ष्य मनुष्य को तब प्राप्त होता है जब वो उस के लक्ष्य के लिये रोता है , दुख सहता है , कुर्बानियां देता है। तब कहीं जाकर लक्ष्य मनुष्य को प्राप्त होता है। लक्ष्य मात्र एक शब्द नही है , लक्ष्य एक ताकत है , एक शक्ति है यदी आप रोज़ अपने लक्ष्य के बारे मे सोँचते हो , रोज़ २४ घंटे अपने लक्ष्य को पाने के लिये लालायित रहते हो आप के सभी प्रयास जितने भी हों सभी आप के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये हों , सभी आप को पल - पल आप के लक्ष्य की ओर - और नज़दीक ले जायें। तभी लक्ष्य प्राप्त होता है।
पत्रकारिता एवम जनसंचार
छात्र -भिषाक मोहन शर्मा
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