रोज़ रात को कोई मेरे सपने में आकर मेरी चादर खींचता है, जैसे मुझे नींद से जगाने की कोशिश कर रहा हो। लेकिन जैसे ही मैं जागता हूं, चारों तरफ फिर से वही अंधेरा छा जाता है जो मेरी जिंदगी में छाया हुआ है।
"ऐसा होना कबसे शुरू हुआ आप के साथ?"
लगभग 10 दिन हो गए। पहली, दूसरी रात को तो मुझे लगा कि सच में कोई है... मैंने डर के बिस्तर से लात हवा में चलाई, लेकिन लात किसी के नहीं लगी। मुझे लगा वो जो कोई भी है पीछे हट गया होगा, मैं झट से मेरे सिरहाने रखी छड़ी की ओर झपटा और पूरे कमरे में चलाने लगा। मैं आवाज लगा रहा था - कौन है ? कौन है ? लेकिन कोई नहीं था, ना कदमों की आहट और ना हीं किसी की आवाज़। थोड़ी देर बाद थक कर, मैं अपने बिस्तर पर चौकन्ना हो कर बैठ गया कि शायद किसी के चलने की आहट हो, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मुझे बैठे-बैठे सुबह हो गई और सुबह तक भी कोई आहट नहीं हुई।
सुबह दूध वाला आया, तो मैंने सोचा की कोई होगा तो शायद दूध वाले को दिख जाए। दरवाज़े से किचन एक सीध में है, इसलिए मैंने पहले दरवाज़ा खोला और किचन की तरफ बढ़ कर दूध का बर्तन ढूंढने का नाटक करने लगा। थोड़ी देर बाद मैंने दूध वाले से कहा, "भैया मैं बर्तन ढूंढ नहीं पा रहा हूं, रखकर भूल गया हूं, आज किचन में ही बर्तन ढूंढ कर दूध रख दो।
दूध वाला किचन में आया और गैस के पास बर्तन देखकर बोला "अरे बाबू, दूध का बर्तन तो यहीं रखा है, गैस के बगल
में"।
"ओह..अच्छा, अरे पता नहीं चला ऐसा कैसे हुआ..मुझे मिल ही नहीं रहा था, कोई नहीं धन्यवाद दद्दा"।
"बाबा, सब ठीक है? कुछ परेशान लग रहे हो आज"।
मैंने कहा "नहीं तो! सब ठीक है", दूध वाला चला गया और मैंने कमरे की अंदर से कुंडी लगा दी। उस दिन में निश्चिंत था कि घर में कोई नहीं है। मेरे ट्यूशन के बच्चे आए और चले गए। मैं बांसुरी और हरमोनिका (माउथ ऑर्गन) सिखाता हूं। मैंने शाम का खाना बनाया, खाया और सो गया। अगली रात को फिर वही एहसास हुआ, इस बार मैं कल से ज़्यादा डर गया था...लेकिन हिम्मत करके कमरे का एक-एक कोना टटोला, पर कोई नहीं था। मैं सोचने लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि जब घर अंदर से बंद हो तब रात में कोई घर में घुसा चला आए और अगर दिन में भी आया हो तो इतने सब्र से मेरे सोने का इंतजार करें, जब मैं सो जाऊं तो सिर्फ जगाने आए और फिर से गायब हो जाए। ऐसा कैसे हो सकता है? या तो सच में कोई दोस्त बहुत ही मेहनत से मज़ाक कर रहा है या मेरे घर में कोई भूत है।
लेकिन जब ऐसा रोज़ होने लगा, तब मुझे ये यकीन हो गया कि इसके पीछे कोई दोस्त तो नहीं है और वैसे भी ज़्यादा दोस्त नहीं है मेरे।
"देखिए आप परेशान मत होइए, हम आपकी समस्या का समाधान ढूंढ लेंगे"।
"प्लीज़ डॉक्टर, मेरी जिंदगी में अब कोई नहीं है जिसको मेरी इतनी चिंता हो... और संध्या मेरी बहुत फिक्र करती है, मैं उसे परेशान नहीं देख सकता। उसे लगता है कि मैं पागल हो रहा हूं। उसे लगता है यह जो कुछ भी है, सिर्फ मेरे दिमाग की कोरी कल्पना है। संध्या सोचती है कि मेरी लाइफ में इतने ब्रेकडाउंस की वजह से ऐसा हो रहा है... देखिए मैं मानता हूं कि उस एक्सीडेंट में सिर पर चोट लगने की वजह से मेरी आंखें चली गई, लेकिन यह जो कुछ भी हो रहा है यह उस वजह से नहीं है"।
"देखो अमित, तुम अपने दिमाग पर ज़्यादा लोड मत लो, हम किस लिए हैं, संध्या मेरी अच्छी दोस्त है और यकीन करो, हम इसका इलाज निकाल लेंगे"।
उसने घंटी बजाई और कहा, "इनके साथ बाहर वेटिंग रूम में संध्या जी हैं, उनको बुलाओ"।
डॉक्टर संध्या को एक तरफ लेकर गई और उसने कहा "देखो संध्या...यह अपने सपने को सच मानना चाहते हैं और इनके बिलीव को हमें स्ट्रांग नहीं होने देना है"।
"लेकिन प्रिया, ये घर पर अकेले रहते हैं और मुझे डर है कि कुछ हो गया तो जब तक कुछ पता चलेगा तब तक कहीं देर नहीं हो जाए"। डॉ० प्रिया ने कहा, तुम घबराओ मत और ये दवाइयां अमित को खाने के लिए दो।
जब हम घर आए तो संध्या मेरे घर रुकने की ज़िद करने लगी, मैंने कहा "देखो संध्या मुझे इस बात से खुशी है कि तुम को मेरी फिक्र है लेकिन मैं अपना ख़्याल अकेले रख सकता हूं"I संध्या ने मुझ पर आवाज़ से चढ़ बनाते हुए कहा "नहीं तुम नहीं रख सकते", मैंने कहा "रख सकता हूं और अब तुम अपने घर जाओ",
"ठीक है रख सकते हो...मैं मानती हूं, लेकिन मुझे तुम्हारा ख़्याल रखना है"।
"एक दोस्त होने के नाते तुम जितना ख़्याल रख रही हो, उस नाते यह बहुत है... मेरे साथ हमेशा कोई नहीं रहता, मुझे अकेले रहने की आदत है, तो प्लीज..."
उसने अपनी उंगली मेरे होठों पर रख दी और बोली "देखो अमित तुम मुझसे जीत नहीं सकते, मैं एक लॉयर हूं और यह बहस तुमसे सारी रात कर सकती हूं। तो इस देश के एक अच्छे, समझदार और जिम्मेदार नागरिक होने के नाते चुपचाप मैं जहां बिठा रही हूं बैठ जाओ और अब यह लो", उसने मेरे हाथ में एक गोली दी, मैंने पूछा "यह क्या है?"
"नहीं कोई सवाल नहीं, चुपचाप आप इसे एक गिलास पानी से लेंगे"।
मैंने कहा "I object my lord"
उसने कहा "कोई होशियारी नहीं, सर। मुझे पता है आप बहुत स्मार्ट है, लेकिन यह होशियारी यहां नहीं चलेगी। यहां जज भी हम हैं और वकील भी ।
"तो मेरे पास बहस करने के लिए कोई मौका भी नहीं है?" "जी बिल्कुल नहीं"।
"यह तो तुगलकी फरमान हुआ"
"हां, कुछ ऐसा ही समझ लो"
"और अगर मैं ना मानूं तो?"
"सॉरी माई फ्रेंड, यू हैव नो चॉइस"
"यार देखो, मुझे दवाई नहीं खानी। मुझे बस उस सपने का मतलब समझना है... क्यों एक ही सपना हर रात मुझे आता है और कुछ नहीं करता सिर्फ मेरे ऊपर से चादर हटाता है?"
"तो तुम इतना डरते क्यों हो फिर, देखो अमित...सुनो, तुम्हारे सब पास विज़न (Vision) नहीं है, लेकिन तुम सपने देख रहे हो...क्यों ?
"वही तो मैं समझाना चाहता हूं तुमको, विज़न नहीं है इन आंखों के पास... लेकिन कहीं और विज़न बन रहा है और यार मैं जन्मजात अंधा नहीं हूं, मैंने पहले दुनिया देखी है। मैं आवाज़ के आधार पर तो कल्पना कर ही सकता हूं। I can imagine things, I can imagine you" मैं आवेग में बोल गया।
"Oh seriously! can you imagine me?"
तो बताओ मेरी आवाज़ के आधार पर, मैं क्या लगती हूं...
I mean कैसी लगती हूं?"
"तुम बिल्कुल तुम्हारी आवाज़ की तरह हो... मुझे लगता है तुम थोड़ी सी सॉलिड होगी, थोड़ी सी बॉडीबिल्डर टाइपस, जिस के डोले शोले होंगे, जो थोड़ी सी मोटी होगी और थोड़ी सी भारी भी"।
उसने चिढ़ते हुए कहा "अच्छा",
मैंने कहा "हां, अब तुम्हारी आवाज़ इतनी भारी और मर्दानी है, उस पर तुम इतना रोब जमाती हो, तो उस हिसाब से मुझे लगता है ऐसा ही होगा। वह चिढ़ते हुए बोली "just shut up", अब अभी के अभी तुमको ये खानी पड़ेगी। "Now take it and sleep"
मैंने कहा,
"नहीं यार सुनो मैं तो मज़ाक कर रहा था, मैं अपनी बात चेंज करना चाहता हूं"...लेकिन अब वह कहां मानने वाली थी।
"ना ! कोई सॉरी नहीं, बस यह गोली अंदर और तुम बिस्तर पर"।
मैंने गोली खा ली, मैंने कहा "देखा इसलिए बोला था कि मत रुको मेरे घर, अब सोओगी कहां?"
"Oh Shut up, तुम्हारे यहां डबल बेड है...तुम इधर, मैं उधर और बीच में तकिए...Now Sleep"
मैं लेट गया, उसने तकिये बीच में लगाए और वह भी लेट गई। मुझे काफी देर तक ऐसा लगता रहा कि वह मुझे देख रही है। थोड़ी देर बाद, मैंने गर्दन उसकी तरफ घुमाई तो उसने हल्की सी हरकत की, उसे ज़रूर लगा होगा कि मैं उसे देख रहा हूं और अब वह मुझसे शायद नज़र हटा चुकी थी ।
रात को तकरीबन दो बजे, नीचे सीढ़ियों के दरवाज़े पर आवाज़ हुई। मैं उठा.. चलता हुआ दरवाजे पर पहुंचा... दरवाजा खोला, तो देखा वहां कोई नहीं था। अचानक मुझे याद आया कि संध्या कमरे में अकेली है, मैं दौड़ता हुआ ऊपर आया और मैंने देखा कि कोई एक साया संध्या की चादर खींच रहा था। मैंने तुरंत मेरी छड़ी को ढूंढना शुरू कर दिया और मुझे याद आया कि छड़ी मेरे सिरहाने रखी होती है । मैं छड़ी की ओर बढ़ा और मैंने पकड़ ली। छड़ी पकड़ते ही मुझे एहसास हुआ कि मैं देख नहीं सकता और चारों तरफ अंधेरा छाने लगा। मैं उस साए को मारने के लिए छड़ी घुमाने लगा और बोल रहा था कि "कौन... कौन है?" संध्या भड़भड़ा कर उठी और उसने उठते ही मेरी छड़ी पकड़ ली और बोली "कोई नहीं है, नहीं है कोई... नहीं बस... शांत...सब सपना था... कोई नहीं है"।
"मैंने कहा नहीं वहीं था, इस बार तुम्हारी चादर खींच रहा था"। संध्या ने कहा "मेरे पास चादर नहीं है अमित, शांत हो जाओ"।
वह लगातार मेरे सिर पर हाथ फिरा रही थी, उसने मेरा सिर अपनी छाती से लगा रखा था। थोड़ी देर बाद उसने मुझे पास में रखे जग से गिलास में पानी डाल कर दिया, "लो, पानी पी लो"। पानी पीने के थोड़ी देर बाद उसने पूछा "अब कैसा महसूस हो रहा है...बैटर ?"
मैंने कहा "हां !" थोड़ी देर बाद मैंने उससे कहा "सुनो मुझे लगता है तुम ठीक थी... शायद यह मुझे कोई दिमागी परेशानी ही है, कल चलकर डॉक्टर को दिखाऊंगा, अब दवाई भी खाऊंगा। मैंने दवाई दांतो के बीच फंसा कर पानी पी लिया था, बाद में थूक दी थी...सॉरी !"
संध्या ने कोई हार्ड रिएक्शन नहीं दिया और बोली,"कोई बात नहीं"। मैंने फिर थोड़ी देर बाद पूछा "तुम क्यों मेरी इतनी चिंता करती हो?"
उसने कहा "क्योंकि तुम मेरे दोस्त हो इसलिए और एक दोस्त हमेशा दूसरे दोस्त की मदद के लिए तैयार रहता है। तुमको याद है, हम पहली बार कब मिले थे ?" मैंने कहा "हां! पार्क में जब तुम्हारा कुत्ता मुझ पर भोंकते हुए झपट पड़ा था और तुम बार-बार सॉरी- सॉरी बोल रहीं थीं...फिर तुमने पूछा कि अब आप क्या करते हैं तो मैंने बताया, Now I follow my another dream...मैं बच्चों को बांसुरी और हर्मोनिका सिखाता हूं"।
संध्या बोली "हां, फिर तुम ने बताया कि तुम वहां पॉकेट 'C' में रहते हो और मेरे पड़ोसी भाटिया अंकल का पोता भी तुम से सीखता है।"
मैंने कहा "हां"
वो बोली "लेकिन मैं तुमको उससे भी पहले से जानती हूं।" मैंने पूछा, "मतलब?"
उसने कहा "मतलब यह कि मैं राजीव की लॉयर थी, उस दिन जब तुम अपने वकील को केस वापस लेने के लिए बोलने आए थे, तब मैं तुम्हारे लॉयर से बात कर रही थी। तुम आए और तुम ने कहा, वकील साहब केस वापस ले लीजिए मुझे राजीव से कोई शिकायत नहीं है, उसने जो किया गलती से किया जानबूझकर नहीं। तुम्हारे वकील ने तुमको बहुत कन्वेंस करने की कोशिश की, कि तुम्हारा केस बहुत स्ट्रॉन्ग है। लेकिन तुम डिसाइड करके आए थे, तुमने कहा मुझे उससे कोई शिकायत नहीं है और जब शिकायत नहीं है तो उसे सजा किस बात के लिए दिलवाऊं।
उस दिन मैंने एक ऐसा इंसान देखा, जो मैंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा था। मैं आज तक सोचती हूं कि कोई किसी इतना बुरा करने वाले के साथ ऐसा कैसे कर सकता है । जबकि उसकी गलती थी, वो ड्रिंक करके ड्राइविंग कर रहा था, तो उसको सजा मिलनी चाहिए थी।
मैंने कहा "उसको जितनी सज़ा मिलनी थी मिल गई और मुझे सच में उससे कोई शिकायत नहीं थी, इसलिए मैंने केस वापस ले लिया। दूसरा मौका सबको मिलना चाहिए, उसे सजा दिलवाकर मेरी आंखें वापस नहीं आ सकती। केस वापस लेने के बाद वो मेरे घर आया था, रो रहा था। उसे सच में अपनी गलती का एहसास था और पश्चाताप करने वाले को तो मौका मिलना ही चाहिए ना । वैसे भी संजना के जाने के बाद, मैं जिंदगी को अलग तरह से देखने लगा हूं"।
"तुमने कभी अपनी पास्ट लाइफ के बारे में डिस्कस नहीं किया" संध्या ने जानने के लिए पूछा,
"क्या करोगी जानकर, वह सब इतना इंटरेस्टिंग नहीं है"। उसने जोर देते हुए कहा, "लेकिन फिर भी दोस्त होने के नाते, हमें एक दूसरे के बारे में पता होना चाहिए, बस इसीलिए"।
मैं समझ गया था कि वह संध्या के बारे में जानना चाहती है और वह मानेगी नहीं, धीरे-धीरे कुरेदती रहेगी। तो मैंने सीधे पॉइंट से ही कहानी शुरू की।
"संजना मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती थी, मैं थोड़ा सा पॉपुलर था और कॉलेज में लड़कियां मुझे पसंद करती थी।
मेरे और योगी के बीच हमेशा खींच-तान चलती रहती थी, इसकी दो वजह थीं- पहली, कि जिस किसी भी लड़की को वह पसंद करता था, वह या तो मुझे पसंद करती थी या मेरी short-term गर्लफ्रेंड रह चुकी होती थी। दूसरी वजह थी बॉक्सिंग, बॉक्सिंग में हमेशा वो मेरे ऑपोजिट होता था और हर मैच हारता था। हां मैं बॉक्सर था, स्टेट लेवल तक खेला था मैंने । हां तो मैं कह रहा था "कॉलेज में संजना का पहला दिन था। मैं, योगी और चेतन हम तीनों की नज़र उस पर पड़ गई। चेतन तो अपने आप पीछे हट गया, कि चल भाई अमित तेरे लिए। चेतन मेरे लिए कुछ भी कर सकता था। योगी और मेरे बीच शर्त लगी और तय हुआ कि जो भी शर्त हारेगा, वह कभी संजना के सामने नहीं फटकेगा। अब शर्त यह थी कि चेतन ने हम दोनों को एक- एक केला दिया, जो हमें अवंतिका मैम को खिलाना था और जो पहले केला खिलाएगा वो जीतेगा। हर कॉलेज में कोई ना कोई एक ऐसी फैकल्टी होती है जिसके लिए स्टाफ से लेकर स्टूडेंट सब का दिल धड़कता है, आसपास गिटार बजने लगते हैं, पत्ते झड़ने लगते हैं, हमारे कॉलेज में थीं अवंतिका मैम। सच में... मैं हूं ना फिल्म की सुष्मिता सेन लगती थीं। हां, तो अब हम दोनों में दौड़ लगी...योगी शॉर्टकट लेकर admin department में अवंतिका मैम के पास पहुंच गया और सीधे केला उनके सामने करते हुए बोला "मैम आपके लिए"।
हां! उसकी बोलने के कला में कुछ गड़बड़ थी। मैम भड़क गई और उसको डायरेक्टर ऑफिस ले जाने लगीं। मैंने योगी को डांट खाते हुए देखा, तो तुरंत गेंदे का फूल बाहर लगे गमले से तोड़ा, एक कागज में मिट्टी डालकर पुड़िया बनाई और मैम को जाकर गुड मॉर्निंग विश किया,
"हेलो मैम गुड मॉर्निंग,
हैप्पी ट्यूसडे"
मैम ने मुझे देखा और बोली,"ओ! हेलो अमित कैसे हो, आज बड़े खुश लग रहे हो क्या बात है।
मैंने कहा "जी मैम, वह आज ही मौसी- मौसा जी सीधे वैष्णो देवी से आए हैं और माता का प्रसाद मैं सबसे पहले आपके लिए लाया हूं। मैंने गेंदे का फूल मैम के हाथ में दिया, कागज में जो गमले की मिट्टी डाली थी उससे उनका टीका किया और केले को दो भागों में मैम के हाथ में दे दिया। मैंने कमरे के बाहर ही केले को स्केल से काट लिया था। Oh! how sweet of you बच्चा, मैम उम्र में भी ज़्यादा नहीं थीं, मुश्किल से 25-26 की होंगी, लेकिन लड़के हवा में ज़्यादा ना उड़ें इसलिए उनको बच्चा-बच्चा बुलाती थीं। थोड़ी देर बात-चीत के बाद उनकी नज़र योगी पर पड़ी, जो मुझे देख कर जल रहा था, वो फिर गुस्से से भर कर बोली "चलो हटो, मुझे आज योगी को डायरेक्टर सर के पास ले जाना है...इसके कुछ ज्यादा पर निकल आए हैं"। मैंने कहा "जी मैम, सच में इसके बहुत ज़्यादा पर निकल आए हैं। अब देखिए! यह प्रसाद छीन कर, मुझसे पहले आपको खिलाने आ रहा था। बताइए ऐसे भी कोई करता है। मुझे यकीन है कि जरूर कुछ बदतमीज़ी की होगी इसने"।
"अमित मुझे पता है, तुम इसको बचाने की कोशिश कर रहे हो"
"अरे सॉरी मैम... मैं इसको बचा नहीं रहा, यह आपके और मेरे बीच में आ रहा था, मैं क्यों बचाऊंगा इसको।
मैम मेरी तरफ देख कर अपनी मुस्कुराहट को रोकते हुए बोलीं, तुम सच में बहुत स्मार्ट हो", मैंने स्माइल किया।
मैम योगी से बोलीं, "चलो भागो यहां से और बच्चे कुछ सलीका, कुछ तमीज़ सीखो बात करने की, अमित को देखो। योगी ऐसे भागा जैसे गोली, मैम मेरी तरफ आई, मेरा कान पकड़ा और बोली " मुझे सब पता है...तुम सच में स्मार्ट हो, बचा लिया उसको...चलो अब भागो यहां से ।
उसके बाद मेरे और संजना के बीच में कोई कभी नहीं आया। मैंने अपना बी०ए० पूरा किया और 6 महीने में नेशनल खेलने की तैयारी कर रहा था। हम दोनों का प्लान फिक्स था। वह मेरे साथ लिव-इन में रह रही थी और उसका कॉलेज पूरा होने में सिर्फ 3 महीने बचे थे, उसके बाद हम शादी करने वाले थे। मेरा अपने दोस्तों के साथ किराए पर मीडिया इक्विपमेंट्स देने का बिजनेस था। सब सेट था। उस दिन रात को, मैं और संजना खाना खा कर वॉक पर निकले थे। सड़क पूरी खाली थी, साइड में ऑटो पार्किंग में खड़े थे। सामने एक कार तेज़ रफ़्तार से आ रही थी, उसका बैलेंस खो चुका था। मैंने कार को हमारी तरफ़ आते देखा और संजना को एक तरफ धकेल दिया। कार ने मुझे साइड से टक्कर मारी और मैं सीधे ऑटो से टकरा गया। होश आया... तो मैं हॉस्पिटल के बिस्तर पर था। मुझे दोस्तों और संजना की आवाज़ सुनाई दे रही थी बस, मैंने बताया कि मैं कुछ देख नहीं पा रहा हूं। चारों तरफ सिर्फ अंधेरा और शोर सुनाई दे रहा था। कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैं चींख रहा था, कुछ हाथों ने मुझे कंधों से पकड़ लिया, कुछ ने मेरा सिर पकड़ा, कुछ ने मेरे पैर पकड़े और मुझे अचानक से नींद आ गई। फिर बाद में जब होश आया तब कान में संजना की आवाज आई, उसने कहा "घबराओ नहीं"। उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ रखा था। मैंने कहा, "मैं कुछ भी नहीं देख पा रहा हूं संजू, इससे तो अच्छा मैं मर जाता"। वह फूट-फूट कर रो पड़ी और बोली "चिंता मत करो अमित... मैं हूं तुम्हारे साथ हमेशा"। जब हॉस्पिटल से छूटा, तो मेरे हाथों में एक छड़ी आ गई। मेरे बिजनेस पार्टनर राजेश ने मुझे एक चश्मा लगा दिया, लेकिन मुझे ये चश्मा बिल्कुल पसंद नहीं था क्योंकि उस चश्मे का मकसद मैं जानता था। बहुत छोटा था, तभी मां को खो बैठा था। जिंदगी को जीना... ज़िन्दगी से लड़ना... सब पापा ने सिखाया। 6 महीने हुए, जब वह भी छोड़ कर चले गए और अब यह आंखें छोड़ कर चली गईं। इतना सब कम था...धीरे-धीरे मुझे वह सब भी छोड़ कर चले गए, जिनको मैं प्यार करता था। जब छड़ी के सहारे चलता था, तो शुरू-शुरू में एक-एक कदम आगे बढ़ना भी मुश्किल लगता था। ऐसा लगता था कि पता नहीं कब कौन सी चीज टकरा जाए, शायद कोई नुकीली चीज़ मेरे लग जाएगी। सीढ़ियों पर जाता था तो ऐसा लगता था कि पता नहीं कब गिर जाऊंगा, कब सीढ़ियां खत्म हो जाएंगी। ज़मीन पर चलते-चलते अगर हल्का सा झटका भी लगता था तो डर से भर जाता था, पता नहीं कब पैरों के नीचे से ज़मीन सरक जाए और मैं हजारों फीट नीचे गिर कर मर जाऊं। कई बार ऐसा लगाता था कि काश! यह कोई ऐसा टास्क होता, जिसमें दो-तीन दिन, 1 हफ्ते या महीने भर देख नहीं सकते। तब कम से कम एक उम्मीद रहती...एक होप रहती कि कुछ वक्त बाद देख पाऊंगा। लेकिन यहां कोई होप नहीं है... मैं कभी नहीं देख सकता । जब हॉस्पिटल से आया, तो दुनिया इतनी तेज़ी से बदली कि जिसका कभी अंदाजा भी नहीं था। तीसरे दिन ही मौसी- मौसा जी बरेली वापस चले गए। जाने से पहले उन्होंने समझाया, "देखो बेटा अब ज़्यादा शोक ना मनाना.... 'होत वही जो राम रचि राखा', कल सुबह हम और तुम्हारे मौसा जा रहे हैं। लेकिन चिंता ना करना, सब खबर लेते रहेंगे तुम्हारी और कभी जरूरत पड़े तो बता देना हाज़िर हो जाएंगे। जो लोग एक-एक महीना पूरे परिवार के साथ रहकर जाते थे, वो एक हफ्ता भी नहीं रुके। बस इसलिए, क्योंकि तब ऐसे बहुत से काम थे जो मैं नहीं कर पाता था । लेकिन तब संजना ने बहुत कोशिश की मेरा साथ देने की। संजना और दोस्त ही मेरी फैमिली थे... वह मुझे बाहर ले जाते थे, रास्ता याद कराते थे, मुझे पार्क में घूमते थे, मेरे साथ वक्त बिताते थे। संजना ने मुझे बहुत सपोर्ट किया शुरू में, मेरा हर छोटा-बड़ा काम वह अपनी फर्स्ट प्रायोरिटी पर करती थी। लेकिन धीरे-धीरे चीज़ें बदलने लगीं...मुझे भी एहसास होने लगा कि मैं एक बोझ बनता जा रहा हूं...ढ़ाई साल पुराना रिश्ता एक महीने भी नहीं चला। एक रात मुझे पेशाब लगा, मैंने उसे उठाया "संजू- संजू", वह गहरी नींद में थी। मैंने अपनी छड़ी टटोली, चलता हुआ बाथरूम में गया... पेशाब करके आया और सो गया। सुबह जब आंख खुली तो वह मेरी छाती को ज़ोर-ज़ोर से पीट-पीटकर रो रही थी। मैं घबरा गया, बहुत दहशत भर गई थी मेरे अंदर... कि क्या हुआ? वह इतना रो क्यों रही है ? मैं बार-बार उससे पूछ रहा था कि "क्या हुआ बेबी? संजू क्या हुआ?" मैं उसके आंसू भी नहीं पोंछ सकता था। उसका रोना मुझसे सहन नहीं हो रहा था। उसने बताया कि मैं बाथरूम की जगह किचन में पेशाब कर आया हूं। उस दिन मैं सच में दुखी था। जो कुछ भी हुआ उसकी वजह से नहीं, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं उसके आंसू भी नहीं पहुंच सकता था। वह काफ़ी देर तक रोती रही, मैं उसे चुप कराने की कोशिश करता रहा। तब मुझे एहसास हुआ कि यह मेरी दुनिया है... जो बदल गई है, अब मुझे सब अकेले ही करना है।
शाम को मैंने उससे कहा, "सुनो! मुझे लगता है कि अब तुमको आगे बढ़ जाना चाहिए, मेरे साथ तुम्हारा कोई भविष्य नहीं है। उसे लगा जो कुछ सुबह हुआ, उस वजह से मैं यह कह रहा हूं। उसने कहा, "तुमको मैंने जो सुबह कहा उसका इतना बुरा लगा, तो मैं सॉरी बोलती हूं"।
मैंने समझाया "हमारे बीच अब सब चीजें बदल गई हैं...मेरी और तुम्हारी दुनिया का रंग बदल गया है।
सुनो... मैं हर परिस्थिति के लिए तैयार हूं। हमने बड़े ही सम्मान से एक दूसरे को अलविदा कह दिया। उस वक्त मुझे जो भी छोड़ कर गया, उसने वादा किया कि वह जरूर आएगा। लेकिन आज तक कोई एक बार भी मिलने नहीं आया। जो दोस्त चले गए, वह हमेशा के लिए चले गए। लेकिन जो नहीं गए वह किसी भी सूरत-ए-हाल में नहीं गए। योगी, चेतन और राजेश, यह कभी मुझे छोड़कर नहीं गए। राजेश पिछले महीने तक बिजनेस के प्रॉफिट में मेरा हिस्सा भेजता रहा। लेकिन फिर मैंने उसे मना कर दिया कि बिजनेस में अब मैं पार्टिसिपेट नहीं कर रहा हूं, तो अब मेरा कोई हिस्सा नहीं है। मैं अंधा हूं संध्या...लाचार नहीं। मैं एक बॉक्सर हूं... मैं कभी हार नहीं मानूंगा।
संध्या ने कहा "और तुम कभी हारोगे भी नहीं, मुझे भरोसा है"।
"कॉफी पियोगे?"
सुबह हो गई थी... चिड़ियों के चहचाहने की आवाज़ आ रही थी, दरवाजे पर दूध वाले भैया भी आ गए थे। कॉफी पीने के बाद उसने याद दिलाया कि 10:00 बजे डॉक्टर के पास जाना है। संध्या कई बार अपने हाथ से खाना बना कर लाती थी मेरे लिए। आज ब्रेकफास्ट उसने ही बनाया था और सच में ब्रेकफास्ट बहुत यम्मी था। ब्रेकफास्ट खाते हुए मुझे याद आया, "ओ माय गॉड! तुम मुझे पहले से जानती थीं, इसलिए मुझसे म्यूज़िक सीखने आई। है ना, संध्या।
"क्यों, तुमको ऐसा क्यों लगा?" मैंने कहा, "नहीं, बस ऐसे ही"। वह हंसते हुए बोली, "अरे नहीं पागल, मैं सच में सीखना चाहती थी और तुमने जितना फास्ट मेरे पड़ोसी के लड़के को सिखाया था, मैं उससे इंप्रेसड थी बस इसलिए और फिर तुम इतने अच्छे हो कि तुम से दोस्ती हो गई।
अब चलो, वरना लेट हो जाओगे।
रास्ते में मुझे एहसास हुआ कि कोई डॉक्टर की बिल्डिंग की लिफ्ट में बंदूक के साथ जा रहा है और वह डॉक्टर को गोली मारेगा। मैं फिर से घबरा गया, मुझे यह सच में हकीक़त लग रहा था। मैं पसीने से लथपथ था, मेरे दिल की धड़कन भी बहुत बढ़ गई थी। मैंने संध्या से कहा, "गाड़ी साइड में लगाओ"...संध्या मेरी हालत देख कर घबरा गई। मैंने कहा, "डॉ० प्रिया को कॉल करो प्लीज...कॉल करो तुरंत... मुझे बात करनी है।
संध्या ने कहा "पर क्या हुआ? हम चल तो रहे हैं"।
मैंने कहा, "प्लीज... प्लीज संध्या, कॉल करो उसे"।
संध्या ने कॉल किया, डॉक्टर ने जैसे ही कॉल रिसीव किया मैंने संध्या से फोन ले लिया, मैंने कहा "डॉक्टर, हेलो... सुनिए अपने केबिन को अंदर से लॉक कर लीजिए प्लीज... मैं संध्या का फ्रेंड अमित बोल कर रहा हूं...आपके ऑफिस में एक आदमी बंदूक लेकर आप को मारने आ रहा है"।
डॉक्टर फोन पर कोई रिएक्शन देती, उससे पहले ही उसके ऑफिस में दो गोलियों की आवाज आई... शायद उसके हाथ से फोन छूट गया था... मुझे फोन पर बहुत सारा शोर सुनाई दे रहा था। मैंने तुरंत संध्या से पुलिस को कॉल करने के लिए कहा। जब हम डॉक्टर प्रिया के क्लीनिक पहुंचे, तो पता चला कि उसने दो चौकीदारों को गोली मारकर घायल कर दिया था। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर पिस्टल वाले को हिरासत में ले लिया। मैं बाहर ही था। संध्या अंदर डॉक्टर से मिलकर आई क्योंकि डॉक्टर उसकी दोस्त थी, तो संध्या का उससे ऐसी हालत में मिलना जरूरी भी था।
संध्या आई, उसने बताया, "प्रिया थोड़े शॉक में है...लेकिन ठीक है"।
संध्या ने मुझसे पूछा, "तुमको अटैक के बारे में कैसे पता चला?"
मैंने कहा, "मुझे नहीं पता..."