उसके बाप की गांव में एक दुकान थी । पश्चिम बंगाल में हमारा एक छोटा सा गांव हुगली, इस छोटे से गांव में हमारी एक छोटी सी दुनिया। बचपन से मैं और मधु साथ खेलते हुए बड़े हुए थे, मधु का बाप उसे मेरे साथ कहीं भी जाने से नहीं रोकता था ।
वह उम्र में मुझसे एक साल बड़ी थी और दो क्लास आगे, मैं दसवीं में था और वह बारहवीं में।
वह कई बार मुझे चिढ़ाने के लिए बोलती "देख मेरा बापू तेरे से मेरी शादी नहीं करेगा", "तो मैं पूंछता क्यों नहीं कराएगा" ?
वो कहती "क्योंकि तू कीचढ़ सा काला और मैं नदी के जल सी साफ, ऊपर से तू मेरे से एक साल छोटा, कक्षा में दो साल पीछे...इस पानी की तरह मुझे भी बहुत दूर... सागर से मिलने जाना है और सागर में ही समा जाना है, भूपा...तेरा मेरा मेल कहां" उसके इस मज़ाक पर मैं गुस्से में उससे पूंछता तेरे बाप की छोड़, "तू बोल तुझको क्या करना है" तो मधु कहती, 'अरे बापू के आगे मेरी क्या चलेगी अब मां के मरने के बाद बापू ने हीं तो पाला है मुझे, जो उनका फैसला वह मेरा फैसला' और मैं जैसे ही नाराज होकर जाने को होता, वह मेरा हाथ पकड़ लेती लेकिन मैं हाथ छुड़ाकर चल देता, तो सामने मेरा रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती और कहती 'अरे भूपेश बाबू, मेरा सागर तो तुम हो' आंख मारती और गले में हाथ डालकर पूरे जंगल की सैर करती।
हम दोनों नदी के जल में एक दूसरे का हाथ पकड़ कर घंटों लेटे रहते, हमारे आसपास पूरे बदन को छोटी-छोटी मछलियां आकर छूती।
अगर कोई मछली उसे छूती, तो मुझे पता चल जाता और अगर कोई मछली मुझे कहीं भी छूती, तो उसे पता चल जाता।
उसको कटहल बहुत पसंद था, इसलिए चाचा के घर से पका हुआ कटहल चुपचाप पेड़ से चुरा कर लाता और हम दोनों जंगल में बड़े मज़े से कटहल खाते। मैं उसे घुठली के ऊपर का गूदा निकाल कर देता और वह अपने हाथों से खुद भी खाती, मुझे भी खिलाती।
फिर शाम को साइकिल से अपने बाप की दुकान पर जाती और उसका दुकान में हाथ बटाती।
हम दोनों के साथ होने से उसके बाप को कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन उसके बाप की परेशानी का कारण था मेरी लापरवाही।
मुझे पढ़ने में मजा नहीं आता था। पहले मैं और मधु एक ही कक्षा में थे, लेकिन मैं दो बार फेल हो गया। अब जंगल में वह मुझे पढ़ाती भी थी, इसलिए मैं पिछली तीन कक्षाओं में पास हो गया, लेकिन अब मैं भी मेहनत करता था, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मधु का मज़ाक कभी सच हो...उसका समुद्र तो सिर्फ मैं हूं। लेकिन मधु की सौतेली मां और चाचा को मैं पसंद नहीं था, इसलिए नहीं क्योंकि मैं नाकारा हूं बल्कि इसलिए क्योंकि मैं मधु की खुशी था और मधु की खुशी उसकी किस्मत को भी बर्दाश्त नहीं थी ।
मैं जामुन के पेड़ के पास उसका रोज़ इंतज़ार करता था और फिर हम साथ में स्कूल जाते, अभी परीक्षाएं चल रही थी।
उस दिन मैंने बहुत देर तक उसका इंतजार किया लेकिन जब वो नहीं आई तो मैंने उसके घर की ओर दौड़ लगा दी।
उसके घर पहुंचा... उसके दरवाजे के बाहर सफेद कफ़न पड़ा था और वो एकदम टूटी हुई बिना एक आंसू के जमीन पर बैठी बिना पलक झपके उस कफन को देख रही थी। मुझे एहसास हो गया था कि यह मधु का बाप है, मैं उसके पास पहुंचा और जैसे ही उसके बगल में बैठा तो तुरंत उसने मुझे कस कर पकड़ लिया और अब तक जो आंखें सूखी थी उन में बाढ़ आ गई थी, अपने सारे आंसू मेरी छाती से लगाए अपने चेहरे से मेरे सीने में उतार दिये।
अरे कल ही तो मधु के बाप ने हम दोनों को आशीर्वाद दिया था, मेरे से बोला अगर तुझे मधु चाहिए तो जल्दी से काबिल हो जा, मधु कल ही तेरी होगी और अगले दिन तो वह खुद ही इस दुनिया का नहीं रहा ।
मधु की 12वीं नहीं हो पाई लेकिन मैं बराबर परीक्षा देने गया जिस दिन मधु का बाप मरा वह एग्जाम मैंने फिर से दिया, मन में एक अजीब सा डर था कि अभी और भी कुछ भयानक होगा। मैंने काम करना शुरू किया मोटर मैकेनिक का, अच्छा पैसा मिल रहा था ।
एक दिन उस्मान आया और उसने बताया कि मधु जा रही है... मैंने पूंछा कहां? वो बोला उसकी शादी पक्की हो गई है। मैं दौड़ता हुआ उसके घर पहुंचा तो उसकी मां बोली...तू कोई काम धाम तो करता नहीं है, तुझसे क्यों लड़की बिहाएँगे? पता चला मधु की शादी और विदाई दोनों ही परसों है। लड़का दिल्ली में रहता है, मैंने कहा बात करने दो एक बार मधु से। मधु की कमरे के अंदर से ही बाहर बरामदे में आवाज आई - चला जा क्यों मेरे पीछे मरना चाहता है, जो मेरी मां का फैसला है वही मेरा।
आवाज मधु की थी, शब्द भी उसके थे लेकिन इस बार मैं उससे नाराज नहीं था। मैं उसको खो दूंगा इस बात से मेरे पूरे शरीर में सिहरन उठ गई थी।
मैं उसके कमरे की तरफ बढ़ा कि नहीं, मधु मैं तेरा समुद्र हूं... तुझ को मुझ में मिलना है... किसी और में नहीं। मैंने उसके चाचा को एक तरफ धकेला और उसके दरवाजे को पीटने लगा, बाहर से आवाज लगा रहा था, मधु... मधु... और जैसे ही उसने दरवाजा खोला पीछे से जोरदार झटका मेरे सिर पर लगा, मैं सीधा खड़ा का खड़ा पीठ के बल खुली आंखों से जमीन पर गिर गया। मधु रो रही थी, बुरी तरह चीख रही थी...और उसे देखते देखते मेरी आंखें बंद हो गई।
जब आंख खुली तो पहला चेहरा मेरे सामने मेरी मां का था, मां ने बताया कि मैं पिछले तीन दिनों से बेहोश था।
उसी रात उन लोगों ने मधु को दिल्ली भेज दिया, असलम ने बताया की मधु के बाप को उसकी सौतेली मां और चाचा ने मिलकर मारा था क्योंकि उसकी मां और चाचा का चक्कर चल रहा था। दूसरा इन दोनों ने चुपचाप उसके सारे खेत, मकान, दुकान सब बेच दिया और दोनों गांव से फरार होने वाले थे। उस रात इन दोनों को मधु के बाप ने साथ में पकड़ लिया, तो इन दोनों ने उसको मार दिया, अब दोनों गायब हैं। सच कहूं तो इस बात से मुझे कोई मतलब नहीं था। मधु की शादी हो गई थी और वह मुझसे बहुत दूर जा चुकी थी। मैं मधु को पा नहीं सका लेकिन उसका सपना मुझे सच करना था। काबिल बनना था कि अगर कभी जिंदगी में मिली तो उसको गर्व होगा कि मैं उसके सपने के साथ जी रहा हूं। मैं गांव में अब और रह नहीं सकता था, यह बात मेरा बड़ा भाई भी समझता था। इसलिए उसने मुझे कलकत्ता भेज दिया, पढ़ाई के साथ यहीं काम भी करता था । कलकत्ता में 12वीं के बाद दिल्ली चलाया आया और टैक्सी चलानी शुरू कर दी। दिल में था कि शायद वह मिल जाएगी, कभी किसी सवारी की तरह ही सही।
दिल्ली में तीन साल काम करके मैंने एक खुद का छोटा सा मकान और खुद की गाड़ी ले ली, हालांकि इस सब के लिए लोन भी लिया था लेकिन यह सुकून था कि अपना है ।
एक दिन रात को सड़क किनारे हाथ में बच्चे को लिए एक औरत मेरी गाड़ी के आगे आ गई और मेरी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था। कितनी कमजोर हो गई थी वह, मैंने उसे संभाला... अपनी बाहों में लेकर अपनी कार में बिठाना चाहा तो उसने मुझे झटक दिया, जैसे मुझे पहचाना ही नहीं। मैंने उसे पकड़कर हिलाया और कहा 'मैं हूं मधु तुम्हारा भूपा', उसने नजर उठाई और फिर से उसकी बरसों से सूखी आंखों में बाढ़ आ गई। उसे अपने साथ घर लाया, उसने बताया कि किस तरह से उसे दिल्ली लाया गया और जहां उसको किसी सेठ के यहां बेच दिया गया... उसने मधु के साथ क्या-क्या नहीं किया, इसके बच्चा हुआ तो इसका बच्चा भी गिरवा दिया और मधु को किसी और को बेच दिया। इन तीन सालों में मधु को तीन बार बेचा गया और खुद को बचाते हुए वह किस्मत से मुझ से टकरा गई। वो इतनी डरी हुई थी कि डर से कांप रही थी... मैंने उसका हाथ पकड़ा हुआ था, उसने मुझे कस कर सीने से लगा लिया तकरीबन आधे घंटे तक।
उसने कहा, भूपा मैं अपने समुन्दर में मिलना चाहती हूं। उसकी गोद में जो बच्चा था, वो बच्चा नहीं गुड़िया थी। जिसे शायद उसने अपना ग़म बांटने के लिए अपने सीने से लगा रखा था और इस घर में आने के बाद उसने एक बार भी उस चीज़ के बारे में नहीं पूछा।
हम दोनों की शादी को 2 साल हो गए, पिछले हफ्ते ही उसने हमारी बेटी को जन्म दिया और अस्पताल में मुझसे अपने आखिरी शब्द कहे...
"मैं अपने समुद्र में मिल गई भूपा"
Good one👍
जवाब देंहटाएंBahut khoob
हटाएंBht khub dada...apni kahani yaad a gai...
जवाब देंहटाएंVery nice..
जवाब देंहटाएंदिल को छू गई, प्यार सदैव जीवित रहता है, यह बतला गई ये कहानी
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