मैं रोज़ सोचता हूं कि सिगरेट छोड़ दूंगा, लेकिन क्लास के बाद पता नहीं क्यों सिगरेट की ऐसी तलब लगती है कि सीधा बाहर सिगरेट पीने दौड़ता हूं। अब या तो क्लास इतनी बोझिल होती है या फिर मुझे लत लग गई है, शायद लत ही लग गई है। कुछ दिन अगर ये सिगरेट छूट भी जाए तो ये दोस्त छूटने नहीं देते। एक-आध कमीना ऐसा निकल ही आता है जो आपको ये बोल कर साथ ले ही जाएगा,
"अबे चल ना सिगरेट छोड़ कर भी क्या कर लेगा"
"कल से छोड़ लियो"
"आज चल, आज तेरा भाई पिला रहा है"
लेकिन उस दिन अकेला ही था। एक दोस्त सामने वाली नाई की दुकान पर बाल बनवा रहा था, तो दूसरा पहले से ही पास वाली दुकान पर चाय पी रहा था। मैंने दद्दू की दुकान से सिगरेट ली और पीनी शुरू की, वहां उसको देखा... उसने मुझे देखा... तो मैंने कहीं और देखा... अब फिर जब मैंने देखा... तो उसने कहीं और देखा।
वैसे तो मैं चाय पीना पसंद नहीं करता, लेकिन अब मैंने एक चाय भी खरीद ली और अपने दोस्तों के पास जाकर बैठ गया जो पहले से वहां बैठ के चाय पी रहे थे।
चाय पीते-पीते हम दोनों ने आंखों-आंखों से करीब 25-30 बार पकड़म-पकड़ाई खेली।
एकदम पतली सी माथे पर चोट का निशान और शरारत भरी उसकी आंखें, आंखों से खेलना बहुत अच्छे से जानती थी वो। हमारा क्रिकेट शुरू हो गया था, अब देखना था कि आउट पहले कौन होता है...ना वह आउट हो और ना हम... आंखों-आंखों का खेल खत्म हो तो बातचीत पर भी आएं। अब तो सिगरेट और चाय भी खत्म हो गई थी, उसकी सहेली भी जाने को तैयार थी और मेरे दोस्त भी। तो आउट होना मंजूर नहीं था, इसलिए हम वहां से निकल गए। टाइम नोट किया कि शायद वह कल यहां आए तब आएंगे...12:15 दोपहर के थे।
वैसे मेरी गर्लफ्रेंड है लेकिन पता नहीं क्यों मैं उसकी तरफ खिंचा चला गया ।
अगले दो-तीन रोज़ तक उसी वक्त पहुंचा पर वह नहीं आई, फिर अचानक लगभग हफ्ते भर बाद वह जूस की दुकान पर मिली। हमारी नजरें फिर मिलीं, मुझे थोड़ी सी घबराहट हुई कि इतना नज़दीक से क्रिकेट शुरू ना कर दे...मैं इतना नज़दीक से नहीं खेल पाता...लेकिन उसने नजरें झुका लीं...मानो पहली ही बॉल पर आउट और हम ने सीधा सिक्सर मारा बाउंड्री के बाहर।
जूस वाले भैया ने पूछा,
"मैडम कौन सा"
मैडम बोली "मैंगो शेक"
जूस वाले ने हम से पूंछा, "भईया आज कौन सा बनाएं"
"मैंगो" मैंने उसी की तरफ एक नज़र घुमा कर कहा।
आम फलों का राजा क्यों होता है पता है?
देखा जूस वाले की तरफ लेकिन सवाल मैडम से था।
"नहीं भईया" जूस वाले ने कहा
और मैडम ने उत्सुकता भरी निगाहों से देखा...
बस बातें करने का मौका मिल गया और नज़रें झुका कर के तो हमारी सत्ता वो पहले ही स्वीकार कर चुकीं थी।
उसकी मुस्कुराहट बड़ी मीठी सी थी।
मेरी हर बात पर वह हंसती थी, थोड़ा कम बोलती थी लेकिन गाड़ी पटरी पर आ रही थी। उसके साथ बातें करने में, वक्त गुजारने में, मुझे मज़ा आता था...एक रोमांचक एहसास होता था...दिल की धड़कन थोड़ी अलग सी धड़कती थी और उसके परफ्यूम की खुशबू तो एकदम नशीली थी।
लेकिन दिल में एक अजीब सा डर था, वह डर इसलिए था क्योंकि मेरी गर्लफ्रेंड थी, मेरे गांव में।
ऐसा नहीं था कि मैं उससे प्यार नहीं करता था, उसके बिना तो मैं अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता था। लेकिन अब, मैं दो नावों में सवार हो चुका था।
यहां मेरी एक जिंदगी थी और वहां मेरे गांव में दूसरी।
हमने कई बार अकेले वक्त गुजारा था, लेकिन कभी भी रिचा के साथ किसी भी तरह का जिस्मानी रिश्ता बनाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। एक दो बार उसने पहल भी की, लेकिन मैं ख़ुद ही पीछे हट गया।
ऐसा नहीं है कि मैं बहुत अच्छा हूं या सत्यवान हूं... कभी-कभी सोचता हूं कि अगर इतना ही अच्छा होता तो सरस्वती को धोख़ा देकर रिचा की तरफ एक नए रिश्ते की शुरुआत ही नहीं करता, लेकिन मैंने ऐसा किया था। सरस्वती से रोज़ बात होती थी, उसको सब बताता था... रिचा के बारे में भी बताया था लेकिन सिर्फ इतना कि रिचा अच्छी दोस्त है, लड़कियों के पास शायद सिक्स सेंस होता है, इसलिए सरू से चाहे किसी भी लड़की के बारे में बात कर लो उसे कोई दिक्कत नहीं थी, बस रिचा का नाम सुनते ही वह पता नहीं क्यों चिड सी जाती थी।
अपने ख़्यालों में तो मैं रिचा के साथ भी बहुत कुछ कर गया था, लेकिन उन ख़्यालों को हकीक़त बनाने की हिम्मत कभी नहीं हुई ।
इन 4 महीनों में रिचा ने मुझे इतना जान लिया था जितना सरु को जानने में 4 साल लग गए थे । रिचा ने अपने जन्मदिन की पार्टी दी थी, पार्टी में उसके सारे दोस्त आए थे लेकिन वो सिर्फ मेरे साथ ही अपना वक्त बिताना चाहती थी। इसलिए अपने सारे दोस्तों को ख़ुद की पार्टी में छोड़ कर मेरे पास आई और बोली,
"यार यहां मन नहीं लग रहा है, मुझे कहीं बाहर ले चलो" मैंने पूछा "कहां चलोगी यहां पर सारे दोस्त हैं तुम्हारे, तुम ही पार्टी से चली जाओगी तो उनको अच्छा नहीं लगेगा"।
वह बोली "उसकी चिंता तुम छोड़ो और यहां से बाहर चलो"।
मेरी बाइक पर हम दोनों यूं ही दिल्ली की सड़कों पर निकल गए। मोटरसाइकिल पर मेरे पीछे मुझसे इतना सट कर बैठी थी कि उसके दिल की धड़कन तक महसूस हो रही थी और सीट पर पीछे इतनी जगह थी कि 2 लोग आराम से सीट पर आ जाएं। उसने एक बीयर बार देखा और गाड़ी रुकवा दी, वह मेरे साथ लगातार चार बियर की केन के बॉटमसिप गटक गई लेकिन बिल्कुल भी लड़खड़ाई नहीं। हम वहां से बाहर निकले और रात के 11:30 बजे बाहर घूमने लगे, कनॉट प्लेस की सड़क पर मेट्रो गेट नंबर 7 की सीढ़ियों के बाहर बेंच पर बैठे थे।
मैं बिल्कुल शांत उसे देख रहा था, दुकानें सारी बंद हो गई थीं, पूरी सीपी में सन्नाटा था, इधर-उधर कोई एक आदमी दिखाई दे जाता था बस। मैंने कहा चलो कहीं और चलते हैं, "आई थिंक! दिस इज़ नॉट सो सेफ"।
वो एकटक मेरी आंखों में देखती रही और थोड़ा सा सरक कर मुझे कस कर गले लगा लिया, काफी देर तक बिना कुछ बोले मेरे कंधे पर अपना माथा टिका कर बैठी रही। मैंने पूंछने की कोशिश की, तो मुझे "शश" कर उसने चुप करा दिया। थोड़ी देर बाद धीरे-धीरे अपना चेहरा ऊपर किया इस तरह जैसे अपना सिर उठाने के लिए भी ताकत मुझ से ही उधार ली हो, उसकी उंगलियां मेरे बालों और गर्दन पर धीरे धीरे नाच रहीं थी। धीरे से उसके होंठ न जाने कब मेरे होठों के करीब आ गए,
मैंने उसे रोका "आं! तुम को कुछ बताना है",
उसने कहा "शू..श...कुछ मत बताओ तुम्हारी आंखें सब बता देती हैं, तुम्हारी जिंदगी में कोई और भी है मुझे पता है"अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा पकड़े हुए उसने मेरी आंखों में आंखें डाल कर कहा।
इससे पहले कि मैं फिर कुछ कहता उसने मेरे होठों पर अपनी उंगली रख दी, बोली "आज कुछ मत कहना... प्लीज" और मैं कुछ भी नहीं कह पाया। मैं ये नहीं कहूंगा कि उसने मुझे किस किया, हम दोनों ने बहुत देर तक एक दूसरे को प्यार किया... अचानक उसी वक्त उससे एक और जुड़ाव हो गया। यह कोई आम साधारण लड़की नहीं है जो मुझे किसी और के साथ होते हुए भी एक्सेप्ट कर रही है और पता नहीं कब से जानती थी वो इस बात को।
एक अलग सा जुनून था उस वक्त हम दोनों में, पता नहीं कब हम दोनों मेरे फ्लैट पर पहुंचे । सुबह आंख खुली तो पाया कि मेरे बिस्तर में वह मुझसे लिपट कर सो रही थी। हमारे बीच सब ठीक था। लेकिन उस रात के बाद मेरे और सरू के बीच चीज़ें बदलने लगी थी, मुझे उससे बात करने में झिझक होती थी, गांव जाता था तो उससे नज़रें मिलाकर बात नहीं कर पाता था।
मेरी इंजीनियरिंग का आखरी साल था। कॉलेज में प्लेसमेंट के लिए कम्पनियां आ रहीं थी, लेकिन मैं अभी भी सरू और रिचा के बीच फंसा था । इंटरव्यू में जवाब आते हुए भी मैं इंटरव्यूअर्स के सवालों के जवाब नहीं दे पाता था । उस रात को 2 महीने बीत चुके थे और रिचा मेरी हालत भी समझ रही थी। इसलिए उसने मुझे एक दिन इस बारे में बात करने के लिए बुलाया,
"देखो आदि मैं समझती हूं कि तुम सरस्वती से बहुत प्यार करते हो और मुझ से भी, लेकिन जैसा कि तुम मुझे पहले ही बता चुके हो कि सरू तुमको किसी से नहीं बांट सकती और तुम्हारी ऐसी हालत मुझ से देखी नहीं जा रही। मुझे सरू से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन तुम्हें किसी एक को ही चुनना पड़ेगा और इस बारे में जल्दी ही सोचना होगा क्योंकि मेरी चेन्नई में प्लेसमेंट हो गई है और मेरी कल सुबह की फ्लाइट है। आदि मैं तुमको खोना नहीं चाहती...तुम्हारे जवाब पर ही डिपेंड करता है कि मैं चेन्नई जाऊंगी या नहीं, तुम क्या चाहते हो" ?
मैं उसकी बातों से अंदर तक घबरा गया था कि दोनों में से किसी एक को चुनना पड़ेगा।
मैंने कहा,
"सरू...
उसने वही पहले वाली स्माइल दी जो पहली दफा जूस की दुकान पर दी थी, अपना बैग उठाया, गाल पर हल्के से किस किया और चली गई ।
मैं उसे बता रहा था,
"सरू! मैंने कल रात सरू को हमारे और उस रात के बारे में सब बता दिया, सरू ने मुझसे सारे रिश्ते ख़त्म करके मुझे सजा दे दी है"।
कनॉट प्लेस के उस कैफे में, मैं उस खाली कुर्सी से बात कर रहा था जिस पर कुछ देर पहले तक रिचा बैठी थी। वेटर ने आकर कहा, "सर आपका ऑर्डर, टू लाटे"।
मैं अचानक जैसे ख़्याल से टूटकर बोला,
"क्या" ?
सामने देखा तो सिर्फ ख़ाली कुर्सी थी, वेटर ने एक कप खाली कुर्सी के सामने रखा और दूसरा मेरे...