ज़रा सब्र करो
हंसते हैं लोग यहाँ मासूम की मासूमियत पर
करते हैं सवाल उसकी मासूमियत पर
एक चेहरे के पीछे राज़ कई है
हर मुस्कराहट में मुखौटों के अंदाज़ कई हैं
सवाल कई है आँखों में सबकी
सबके अपने अपने जवाब कईहैं
सवालों भरी आँखों के लिए मेरे भी जवाब कई हैं
कहता हूँ सब से रुको ज़रा सब्र से
मेरे भी अंदाज़े बयाँ कई हैं
मेरे भी अंदाज़े बयाँ कई हैं
वक्त एक सा सब का रहता नहीं है
क्या करूं मेरा खुद पर ज़ोर चलता नही है
अब अंदाज़ बयाँ बदलता नही है...